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क्या देश इन बेटियों से आँख मिला कर जवाब दे सकता है?

by Majid Majaz · December 11, 2017

अफ़राजुल खान की बेटियाँ अपने बाप की तस्वीर लेके पूछ रही हैं इस चमकते लोकतंत्र से कि बता मेरे बाप को तूने क्यों मारा? क्या ये देश इन बेटियों से आँख मिला कर जवाब दे सकता है? दूर बैठा कोई बहुसंख्यक वर्ग का शख़्स अगर इस जघन्य अपराध का विरोध करने के बजाय चुप है या मौन होकर समर्थन दे रहा है तो उसे डूब कर मर जाना चाहिए। इन मासूमों की आँसुओं का हिसाब पूरी मानवता मिलकर कभी चुका नहीं सकती।
डूब मरो वहशी दरिंदों। ये तस्वीर इस “नए भारत” की हक़ीक़त बन चुकी है। एक ऐसा नया भारत जहाँ अल्पसंख्यकों को उनकी धार्मिक पहचान की वजह से मारा जा रहा है, उनका व्यवसाय तहस नहस किया जा रहा है। अफ़सोस के साथ ये कहना पड़ रहा है कि ये सब सत्ता की संरक्षण में हो रहा है जहाँ मजलूमों के लिये कोई सुनवाई नहीं है। उलटा जो भीड़ इस लिंचिंग के काम को अंजाम देती है वो रातों रात हीरो भी बन जाती है।

लचर न्याय व्यवस्था के चलते बहुत जल्द ऐसे हत्यारे ज़मानत पर बाहर भी आ जाते हैं जो कि पूरी मानवता पर एक प्रश्नचिन्ह है। कई घटनाओं में ये भी देखने को मिला है कि संसदीय प्रणाली के लोग सार्वजनिक मंचों पर ऐसे हत्यारों को हीरो बताते हैं।
अल्पसंख्यकों के ऊपर हुये लाख ज़ुल्म-ओ-सितम एवं आतंक सहने के बावजूद सिर्फ़ इनका न्यायपालिका पर भरोसा आजतक ज़िंदा है वर्ना विधायिका से लेकर तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं ने बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं। बस आख़िरी उम्मीद न्यायपालिका है जो हमारे संविधान एवं नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षक भी है।
न्यायपालिका के लिए ये इम्तेहान की घड़ी है, न्यायपालिका को आगे आकर अपने नागरिकों के जान-ओ-माल एवं उसके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करनी होगी, वर्ना जिस दिन लोगों का इसपर से भी विश्वास उठ गया तो फिर कुछ भी नहीं बचेगा। राष्ट्र को बचाना होगा.. राष्ट्र की आत्मा पर गहरा संकट आया है। न्यायपालिका को अब मुँह खोलना ही पड़ेगा और बताना होगा कि ये राष्ट्र बाबा साहेब के संविधान से चलेगा या हत्या करके उसपर जश्न मनाने वाली मानसिकता के द्वारा।

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