फिरोज गांधी चाहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजो से हो,जानते है क्यों ?

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फिरोज गांधी पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के पति थे। जब इंदिरा गांधी ने फिरोज के साथ शादी करने का फैसला लिया तो नेहरू ने इसका विरोध किया था। वो इस शादी के बिल्कुल खिलाफ थे। ऐसा भी नहीं था कि वे फिरोज को नही जानते थे। क्योंकि वे भी कांग्रेस पार्टी का ही हिस्सा थे। अपनी बेटी की जिद के आगे आखिर कब तक नेहरू की चलने वाली थी कुछ समय बाद ही उन्होने दोनो को स्वीकार कर लिया था। दोनो के रिश्ते को लेकर वे कभी भी खुश नहीं थे।

शादी के बाद फिरोज और इंदिरा गांधी के रिश्तों के बीच खटास पैदा हो गयी थी।ससुराल छोडकर इंदिरा गांधी वापिस से इलाहाबाद शिफ्ट हो गयी थी।उनके पति भी नेशनल हेराल्ड अखबार के कार्यभार को संभाल रहे थे।दोनो के बीच रिश्तों में दूरी घटने की बजाय बढती जा रही थी।दोनो ही राजनीति में अग्रणी भूमिका में रहते थे।

फिरोज गांधी कुछ समय से बीमार भी चल रहे थे। जब इंदिरा गांधी 1958 में भूटान जा रही थी तभी उन्हे फिरोज की अचानक दिल का दौरा पडने से तबियत खराब  होने का पता चला तो वे तुरंत भारत वापस चली आयी थी। गमीनत रही थी कि फिरोज गांधी खतरे से बाहर थे। तभी फिरोज ने अपने दोस्तों से सिफारिश की थी कि उनके मरने के बाद उनकी अंतयेष्ठी हिंदू रीति-रिवाज से हो वे पारसी ढंग से अपना अंतिम संस्कार नहीं करवाना चाहते थे। जहां मृत्यु के बाद शव को चीलों को डाल दिया जाता है जो उन्हे बिल्कुल पंसद नहीं था।

फिरोज की तबीयत 1960 में फिर से बिगड गयी थी। उस अंतिम समय में इंदिरा गांधी अपने पति के साथ अस्पताल में ही थी। तब भी वे बहार किसी राज्य के दौरे पर थीं, लेकिन जैसी ही उन्हे पता चला की फिरोज की तबीयत बिगड गयी और हॉस्पिटल में भर्ती तो वे तुरंत त्रिवेंद्रम से दिल्ली पहुंचने के बाद सीधे हॉस्पिटल ही गयी थीं। कुछ ही समय दोनो साथ रह पाये 8 सितंबर 1960 को फिरोज गांधी हमेशा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गये थे।

राइटर कैथरीन फ्रैंक ने अपनी बुक द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी में बताया है कि फिरोज गांधी के दाह संस्कार से पहले उनका संस्कार पारसी रीति-रिवाज से भी किया था जो उस समय इंदिरा गांधी के निर्देशानुसार ही किया गया था। 9 सितंबर को जब निबोधघाट के लिए उनके शव को ले जाया जा रहा था तो सडक के दोनो तरफ उनके चाहने वालो को देखकर खुद नेहरू भी हैरान हो गये थे । उन्हे यकीन नही हो रहा था कि फिरोज इतने प्रसध्दि व्यक्ति थे।

उनकी अंतिम इच्छा को पूरा उनके बडे बेटे राजीव गांधी ने मुखाग्नि देकर पूर्ण किया था । राजीव उस समय केवल 16 साल के ही थे। इंदिरा गांधी फिरोज की मौत के बाद एकदम बिखर गयी थीं। कई वर्षों तक वे सफेद साडी में ही नज़र आती थी।अपने एक साक्षात्कार में दुखी होते हुए उन्होंने कहा था कि , फिरोज गांधी कि मौत ने मुझे अंदर तक तोड दिया था। फिरोज अपने साथ मेरे जीवन के सारे रंग भी ले गये थे।

बर्टिल फाक अपनी बुक फिरोज द फॉरगॉटेन गांधी में लिखते है, फिरोज के शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था तो उस समय नेहरू के मुंह से इतनी तादाद में भीड को देखकर यही निकला था, मुझे पता नहीं था कि फिरोज लोगो के बीच इतने लोकप्रिय थे। फिरोज गांधी का हिंदूत्व रीति-रिवाजों के प्रति आस्था भी थी और जनता के बीच उनकी लोकप्रियता भी थी।