0

शहीद उधम सिंह ने कुछ इस तरह लिया था जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड का बदला

Share

जालियांवाला बाग हत्याकांड का दिन भारतीय इतिहास के सबसे काले दिनों में से एक है। आज भी पंजाब में हुए उस नरसंहार कांड की याद कर रूह कांप उठती है। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी, इस सभा को भंग करने के लिए अंग्रेज अफसर जनरल माइकल ओ डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवा दीं।

इस हादसे में हजार से ज्यादा लोग मारे गए और 2000 से ज्यादा जख्मी हुए। सैकड़ों महिलाओं, बूढ़ों और बच्चों ने जान बचाने के लिए कुएं में छलांग लगा दी, हालांकि, जलियांवाला बाग में में मारे लोगों की वास्तविक संख्या कभी सामने नहीं आ पायी अंग्रेज भारतीय स्वतंत्रता के लिए उठ रही आवाजों को दबाना चाहते थे, लेकिन इस घटना ने आजादी की आग को और हवा दे दी।

इस घटना के बाद क्रांतिकारी आंदोलन तेज हो गये,भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की उखाड़ फेंकने की ठान ली। भारत के वीर सपूत उधम सिंह इस बर्बरतापूर्ण हत्या के प्रत्यक्षदर्शी थे। इस घटना ने उधम सिंह को अंदर तक हिलाकर रख दिया। पढ़ाई लिखाई के बीच ही वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े और जनरल डायर को मारना उनका खास मकसद बन गया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को उधम सिंह ने अंग्रेजों की सरजमीं पर जाकर इसका बदला लिया और बिना किसी डर के खुशी खुशी फांसी पर झूल गए।

कैसे लिया उधम सिंह ने बदला

जलियांवाला हत्याकांड ने उधम सिंह को अंदर तक झकझोर कर रख दिया था लिहाजा उन्होंने यहां की मिट्टी हाथ में लेकर उसे सबक सिखाने की कसम खायी और क्रांतिकारी आंदोलन में कूद पड़े। धन की की आवश्यकता पड़ने पर उधम सिंह ने चंदा इकट्ठा किया और देश के बाहर चले गए। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका, जिम्बॉव्बे, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की और क्रांति के लिए धन इकट्ठा किया।

1934 में वह लंदन जाकर रहने लगे. हालांकि उधम सिंह के लंदन पहुंचने से पहले ही जनरल डायर की साल 1927 में बीमारी से मौत हो गई थी लिहाजा उधम सिंह ने अपना पूरा ध्यान माइकल ओ डायर को मारने पर लगाया।

उधम सिंह ने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवॉल्वर भी खरीद ली और माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए सही समय का इंतजार करने लगे।

13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के ‘कॉक्सटन हॉल’ में बैठक थी। यहां पर माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह को वह मौका मिल ही गया जिसका उन्हें लंबे वक्त से इंतजार था। उधम सिंह अपनी रिवॉल्वर को एक मोटी किताब में छिपा ली और इसके लिए उन्होंने किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था ताकि डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।

सभा के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर धुआंधार गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। लेकिन, वह उसी जगह पर खड़े रहे, उधम सिंह को पकड़ लिया गया और मुकदमा चला। 31 जुलाई 1940 को उन्हें फांसी दे दी गई।