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पटेल ने तो गोडसे समर्थकों को 1948 में ही पागलों का झुंड और कायर कहा था

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संसद में 27 नवंबर को भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर द्वारा गोडसे के महिमामंडन पर देश मे व्यापक निदात्मक प्रतिक्रिया हुयी और कल ही सरकार ने इन सारी प्रतिक्रियाओं से असहज होते हुये, आज 28 नवम्बर को बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर को रक्षा मंत्रालय की समिति से हटा दिया गया है। सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर द्वारा नाथूराम गोडसे को ‘देशभक्त’ बताने के संदर्भ में बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि संसद में कल उनका बयान निंदनीय है.बीजेपी कभी भी इस तरह के बयान या विचारधारा का समर्थन नहीं करती है। उन्होंने कहा कि हमने तय किया है कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर को रक्षा की सलाहकार समिति से हटा दिया जाएगा और इस सत्र में उन्हें संसदीय पार्टी की बैठकों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

इस संबंध में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जी ने जो कहा है वह महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा,

“नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहे जाने की बात तो दूर हम उन्हें देशभक्त मानने  की सोच को ही कंडेम ( निंदा ) करते हैं। महात्मा गांधी हम लोगों के आदर्श हैं । वे पहले भी हमारे मार्गदर्शक थे और भविष्य में भी मार्गदर्शक रहेंगे।”

जब 30 जनवरी 1948 को दिल्ली में महात्मा गांधी की मृत्यु हुयी थी, तो उस समय पूरा देश ही नहीं पुरी दुनिया स्तब्ध हो गयी थी। जैसे ही गांधी के हत्या की खबर लॉर्ड माउंटबेटन को मिली, उन्होंने तुरन्त हत्यारे का धर्म पूछा। जब उन्हें बताया गया कि हत्यारा नाथूराम गोडसे है और एक हिन्दू तो माउंटबेटन ने ऊपर देखा और कहा, हे ईश्वर तुमने देश को बचा लिया। भारत उस समय अपने इतिहास के साम्प्रदायिक उन्माद के  सबसे बुरे दौर में चल रहा था। माउंटबेटन को लगा कि अगर कही हत्यारा मुस्लिम होता तो देश मे भयंकर खूनखराबा हो जाता। वैसे भी उस समय देश विभाजन के बाद के दंगे भारत और पाकिस्तान दोनों ही नवस्वतंत्र देशों में चल ही रहे थे। देश कानून व्यवस्था के साथ साथ लाखो शरणार्थियों के निरापद पुनर्वास की समस्या से जूझ रहा था।
सरदार पटेल उस समय देश के गृहमंत्री थे। गृहमंत्री होने के नाते वे खुद को गांधी जी के प्रति, इस सुरक्षा चूक के लिये जब कि इस घटना के पहले भी गांधी हत्या के कुछ विफल प्रयास हो चुके थे, दोषी मान रहे थे। पर उस समय तक वीआईपी सुरक्षा का उतना तामझाम होता नहीं था और गांधी तो ऐसे सुरक्षा इंतजाम चाहते भी नहीं थे। हत्या के बाद 2 फरवरी को गांधी जी की स्मृति में,  दिल्ली में एक शोकसभा हुयी। उसमे नेहरू, पटेल, सहित कांग्रेस के सभी बड़े नेता उपस्थित थे। नेहरू के भाषण के बाद पटेल ने जो कहा वह हत्यारे और हत्यारे के गिरोह की मानसिकता को उजागर कर देता है।
गांधी की हत्या के बाद आयोजित उस शोकसभा में सरदार पटेल के दिए गए भाषण को प्रज्ञा ठाकुर द्वारा संसद में हत्यारे नाथूराम गोडसे के महिमामंडन के बाद याद करना महत्वपूर्ण  है। सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू के बाद उस शोकसभा में, जब अपनी बात कहने खड़े हुए तो उनकी आंखों में आंसू थे। उनकी आवाज़ लरज रही थी। वह बोलने की हालत में नहीं थे। लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें ढाढस बढ़ाया और उन्हें कुछ कहने के लिये कहा। वे उस समय, नेहरू के बाद, देश के दूसरे सबसे बड़े नेता थे। उनका बोलना ज़रूरी भी था और उनकी मजबूरी भी
उन्होंने कहा था ” जब दिल दर्द से भरा होता है, तब जबान खुलती नहीं है और कुछ कहने का दिल नहीं होता है. इस मौके पर जो कुछ कहने को था, जवाहरलाल  ने कह दिया, मैं क्या कहूं ? ”

आगे सरदार पटेल ने कहा

” हां, हम यह कह सकते हैं कि यह काम एक पागल आदमी ने किया. लेकिन मैं यह काम किसी अकेले पागल आदमी का नहीं मानता. इसके पीछे कितने पागल हैं? और उनको पागल कहा जाए कि शैतान कहा जाए, यह कहना भी मुश्किल है. जब तक आप लोग अपने दिल साफ कर हिम्मत से इसका मुकाबला नहीं करेंगे, तब तक काम नहीं चलेगा. अगर हमारे घर में ऐसे छोटे बच्चे हों, घर में ऐसे नौजवान हों, जो उस रास्ते पर जाना पसंद करते हों तो उनको कहना चाहिए कि यह बुरा रास्ता है और तुम हमारे साथ नहीं रह सकते।” (भारत की एकता का निर्माण, पृष्ठ 158)
उन्होंने कहा था – ” जब मैंने सार्वजनिक जीवन शुरू किया, तब से मैं उनके साथ रहा हूं. अगर वे हिंदुस्तान न आए होते तो मैं कहां जाता और क्या करता, उसका जब मैं ख़्याल करता हूं तो एक हैरानी सी होती है. तीन दिन से मैं सोच रहा हूं कि गांधी जी ने मेरे जीवन में कितना परिवर्तन किया? इसी तरह से लाखों आदमियों के जीवन में उन्होंने किस तरह से बदला? सारे भारतवर्ष के जीवन में उन्होंने कितना बदला. यदि वह हिंदुस्तान में न आए होते तो राष्ट्र कहां जाता? हिंदुस्तान कहां होता? सदियों हम गिरे हुए थे. वह हमें उठाकर कहां तक ले आए? उन्होंने हमें आजाद बनाया। ” (भारत की एकता का निर्माण, पृष्ठ 157)

सरदार पटेल ने गोडसे और उसके समर्थकों को सबसे बड़ा कायर करार दिया था. पटेल ने कहा था,

” उसने एक बूढ़े बदन पर गोली नहीं चलाई, यह गोली तो हिंदुस्तान के मर्म स्थान पर चलाई गई है. और इससे हिंदुस्तान को जो भारी जख्म लगा है, उसके भरने में बहुत समय लगेगा. बहुत बुरा काम किया. लेकिन इतनी शरम की बात होते हुए भी हमारे बदकिस्मत मुल्क में कई लोग ऐसे हैं तो उसमें भी कोई बहादुरी समझते हैं.। ”
महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर 4 फरवरी 1948 को प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस प्रतिबंध के छह महीने बाद सरदार पटेल ने संघ के संस्थापक गोलवलकर को एक पत्र लिखा था। यह पत्र पढ़ कर, यह जाना जा सकता है कि, पटेल की संघ और देश की एकता के बारे में क्या विचार थे।

सरदार पटेल द्वारा संघ के संस्थापक गोलवलकर को लिखा गया पत्र

नई दिल्ली, 11 सितंबर, 1948
औरंगजेब रोड
भाई श्री गोलवलकर,
आपका खत मिला जो आपने 11 अगस्त को भेजा था. जवाहरलाल ने भी मुझे उसी दिन आपका खत भेजा था. आप राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ पर विचार भली-भांति जानते हैं. मैने अपने विचार जयपुर और लखनऊ की सभाओं में भी व्यक्त किए हैं. लोगों ने भी मेरे विचारों का स्वागत किया है. मुझे उम्मीद थी कि आपके लोग भी उनका स्वागत करेंगे, लेकिन ऐसा लगता है मानो उन्हें कोई फर्क ही न पड़ा हो और वो अपने कार्यों में भी किसी तरह का परिवर्तन नहीं कर रहें. इस बात में कोई शक नहीं है कि संघ ने हिंदू समाज की बहुत सेवा की है. जिन क्षेत्रों में मदद की आवश्यक्ता थी उन जगहों पर आपके लोग पहुंचे और श्रेष्ठ काम किया है. मुझे लगता है इस सच को स्वीकारने में किसी को भी आपत्ति नहीं होगी. लेकिन सारी समस्या तब शुरू होती है जब ये ही लोग मुसलमानों से प्रतिशोध लेने के लिए कदम उठाते हैं. उन पर हमले करते हैं. हिंदुओं की मदद करना एक बात है लेकिन गरीब, असहाय लोगों, महिलाओं और बच्चों पर हमले करना बिल्कुल असहनीय है.
इसके अलावा देश की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस पर आपलोग जिस तरह के हमले करते हैं उसमें आपके लोग सारी मर्यादाएं, सम्मान को ताक पर रख देते हैं. देश में एक अस्थिरता का माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही है. संघ के लोगों के भाषण में सांप्रदायिकता का जहर भरा होता है. हिंदुओं की रक्षा करने के लिए नफरत फैलाने की भला क्या आवश्यक्ता है? इसी नफरत की लहर के कारण देश ने अपना पिता खो दिया. महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई. सरकार या देश की जनता में संघ के लिए सहानुभूति तक नहीं बची है. इन परिस्थितियों में सरकार के लिए संघ के खिलाफ निर्णय लेना अपरिहार्य हो गया था.
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ पर प्रतिबंध को छह महीने से ज्यादा हो चुके हैं. हमें ये उम्मीद थी कि इस दौरान संघ के लोग सही दिशा में आ जाएंगे. लेकिन जिस तरह की खबरें हमारे पास आ रही हैं उससे तो यही लगता है जैसे संघ अपनी नफरत की राजनीति से पीछे हटना ही नहीं चाहता. मैं एक बार पुन: आपसे आग्रह करूंगा कि आप मेरे जयपुर और लखनऊ में कही गई बात पर ध्यान दें. मुझे पूरी उम्मीद है कि देश को आगे बढ़ाने में आपका संगठन योगदान दे सकता है बशर्ते वह सही रास्ते पर चले .आप भी ये अवश्य समझते होंगे कि देश एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है. इस समय देश भर के लोगों का चाहे वो किसी भी पद, जाति, स्थान या संगठन में हो उसका कर्तव्‍य बनता है कि वह देशहित में काम करे. इस कठिन समय में पुराने झगड़ों या दलगत राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं है. मैं इस बात पर आश्वस्त हूं कि संघ के लोग देशहित में काम कांग्रेस के साथ मिलकर ही कर पाएंगे न कि हमसे लड़कर. मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि आपको रिहा कर दिया गया है. मुझे उम्मीद है कि आप सही फैसला लेंगे. आप पर लगे प्रतिबंधों की वजह से  मैं संयुक्त प्रांत सरकार के जरिए आपसे संवाद कर रहा हूं. पत्र मिलते ही उत्तर देने की कोशिश करूंगा।
आपका
वल्लभ भाई पटेल
आज पटेल की एक एक बात सच साबित हो रही है। गांधी की आलोचना पर कोई आपत्ति नहीं है। गांधी जी की विफलताओं पर भी चर्चा होती है और होनी भी चाहिये। पर उनकी या किसी की भी हत्या को औचित्यपूर्ण केवल बीमार मानसिकता का व्यक्ति ही ठहरा सकता है। गांधी का जैसा व्यापक जनप्रभाव देश मे था वैसा दुनियाभर में कम ही नेताओ का अपनी जनता पर होता है। आज दुनियाभर में भारत के वे प्रतीक बन चुके हैं। गांधी की विचारधारा, स्वाधीनता संग्राम और समाजोत्थान के लिये किये गए उनके कार्यो  से  कोई सहमत हो, या न हो, उनकी निंदा करे, आलोचना करे, पर आज की स्थिति में गांधी इन सबसे परे जा चुके हैं। कायर और बीमार लोगों का गिरोह ही किसी हत्यारे का महिमामंडन कर सकता है। पटेल ने सच ही कहा था।

© विजय शंकर सिंह