Share

नज़रिया – भाजपा से क्यों किनारा कर रहे हैं बड़े क्षेत्रीय दल?

by Khushdeep Sehgal · May 20, 2018

अटल जी एनडीए में मतभेद होते हुए भी कई बड़े क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर चलने में कामयाब हुए थे. सहयोगी दल भी उन्हें अपने लीडर के तौर पर पूरा सम्मान देते थे. कर्नाटक अध्याय के बाद बीजेपी को सोचना होगा कि आखिर क्यों वो ऐसी स्थिति में आ गई कि अब कोई बड़ा क्षेत्रीय दल उसके साथ हाथ मिलाने को तैयार नहीं है.
जेडीयू के नीतीश कुमार ने लालू की आरजेडी से पीछा छु़ड़ाने और सत्ता में बने रहने के लिए बिहार में एनडीए से हाथ मिलाया. तेलुगु देशम के चंद्रबाबू नायडू हाल में एनडीए से किनारा कर गए. शिवसेना आए दिन बीजेपी को जितना गरियाती है उतना तो विरोधी दल भी नहीं गरियाते.बिहार से ही पासवान बीजेपी के सहयोगी हैं लेकिन वो मौसम के मिजाज की तरह कब रंग बदल लें कोई नही बता सकता. बड़े क्षेत्रीय दलों में बस अकाली दल बादल ही बीजेपी से सुर में सुर मिलाता है. अकाली दल बादल पंजाब में सत्ता से बाहर होने के बाद खुद ही हाशिए पर है.
हां बीजेेपी एनडीए के सहयोगियों में हेडकाउंट के तौर पर सम्मानजनक आंकड़ा दे सकती है. लेकिन ये सारी पार्टियां एक-दो सीटों वाली ही हैं. इनकी वकत निर्दलीयो से ज़्यादा नहीं है.
दरअसल, बीजेपी पर खुद ही मोदी-शाह की जोड़ी इस कदर हावी है कि पार्टी के अंदर ही दिग्गज से दिग्गज नेता भी गौण हो गए हैं. ऐसे में कोई भी क्षेत्रीय दल बीजेपी से हाथ मिलाने से पहले सौ बार सोचेगा कि जिस पार्टी में खुद ही सारी ताकत एक-दो हाथों में केंद्रित है, वहां सहयोगी दल को क्या भाव मिलेगा भला.
यानी बीजेपी अब बहुमत के आंकड़े से चंद सीट भी दूर रह जाती है तो उसे बाहर से समर्थन जुटाने के लिए साम दाम दंड भेद जैसे तरीके अपनाने पड़ते हैं. लालच में निर्दलीय, छोटे-मोटे दल बेशक बीजेपी से जुड़ जाए लेकिन चुनाव से पहले विचारधारा के स्तर पर कोई बड़ा क्षेत्रीय दल बीजेपी से गठबंधन करने को तैयार नही है.
ये बीजेपी को ही सोचना होगा कि ऐसी ‘Political Untouchability’ जैसी स्थिति उसके साथ क्यों बन रही है. क्या ये सिर्फ पार्टी के एक ही नेता की ‘Larger Than Life’ छवि बनाने की वजह से हो रहा है. इस सवाल का जवाब बीजेपी को खुद ही ढूंढना है.

नोट- यह लेख लेखक की फ़ेसबुक वाल से लिया गया है

Browse

You may also like