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नज़रिया – कठुआ में क्षद्म राष्ट्रवाद की पोल खुली, इसलिए तुम्हे सासाराम याद आया

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ये निर्भया के लिए भी सड़कों पर थे। ये उन्नाव पर भी आक्रोशित हैं। ये कठुआ पर भी नाराज़ हैं, लेकिन अगर तुम इन्हें किसी तरह सासाराम पर लिखवाकर अपना मन इसलिए संतुष्ट करना चाहते हो क्योंकि वहां आरोपी एक मुसलमान है तो तुरंत आसपास के मानसिक चिकित्सालय में खुद के लिए बेड बुक कराओ.
तुम्हारे अंदर हिंदू-मुस्लिम स्कोर सैटल करा लेने की गहरी शिद्दत है। देश में रोज़ 107 (2016 का आंकड़ा) बलात्कार होते हैं लेकिन सासाराम तुम्हें भी कठुआ के बाद ही याद आया। वो आना ही था। कठुआ पर शोर ना मचता तो तुम्हें  सासाराम का नाम याद नहीं रहता।
बलात्कार पर तुम चीत्कार करते तो उन्नाव को लेकर पहले ही दुखी हो चुके होेते, लेकिन तुम्हें सासाराम को लेकर ज़्यादा फिक्र है। होनी ही है। वहां कथित मुस्लिम आरोपी का इन्वॉल्वमेंट तुम्हारी वो मंशा संतुष्ट करता है जो कठुआ में नए पैदा हुए झूठे राष्ट्रवाद को ढाल प्रदान करता है।
कई लोगों को दर्द है कि जैसी चर्चा कठुआ को मिली वैसी  किसी और रेप केस को नहीं मिली। दरअसल इनको परेशानी है कि इस मामले को चर्चा मिलने से ‘न्यू इंडिया’ में उभरनेवाले ज़हरीले छद्म राष्ट्रवाद की पोल खुल रही है। वो नंगा हो रहा है। हिंदुस्तान देख रहा है कि आठ साल की लड़की के रेप का बचाव भी हो सकता है। वो भी तिरंगा लेकर। वैसे भी हर रेप केस को कितनी चर्चा मिलती है?
रेप तो हिंदू, मुसलमान, सवर्ण, दलित किसी का भी होता ही है। क्या रोज़ 107 के 107 मामलों को उतनी ही चर्चा मिलती है जितनी तुम सासाराम वाले मामले की चाहते हो? दुर्भाग्य है लेकिन सच है कि चर्चा उन्हीं मामलों को मिलती है जो जघन्य होते हैं या फिर खास हालात की वजह से संगीन हो जाते हैं। बलात्कार ही नहीं हत्या के मामले में भी ऐसा ही होता है।
निर्भया हो, उन्नाव हो या फिर अब कठुआ हो उन्हें चर्चा में आने के पूरे कारण थे। ये भी सच है कि उन्नाव और कठुआ को चर्चा में पहले आना चाहिए था, देर से आए। उन्नाव में सीएम योगी आदित्यनाथ के विधायक पर ना सिर्फ रेप का इल्ज़ाम है बल्कि पीड़िता के बाप को बुरी तरह पीटने के बाद दबाव बनाकर अपने खिलाफ सबका मुंह बंद करने की वो नीच साज़िशें भी कर रहा है। पूरा देश फोन पर उसके द्वारा दी जा रही धमकियां और नसीहतें सुन रहा है।
योगी की पुलिस कोर्ट में बेशर्मी से कह रही है कि विधायक के खिलाफ उनके पास सबूत नहीं हैं। एक जीती-जागती लड़की टीवी चैनलों पर गला फाड़कर कह रही है कि इसने मेरा जिस्म नोचा है, तो तुम्हें सबूत कौन सा चाहिए? देश का कानून कहता है कि पीड़िता का बयान काफी है, लेकिन पुलिस को काफी कैसे लगेगा क्योंकि आरोपी सत्ताधारी पार्टी का विधायक जो है।
इसी तरह आठ साल की मासूम को कई दिनों तक मंदिर में उधेड़ देने वाले भेड़ियों को भी तिरंगे की आड़ में बचाना अविश्वसनीय मामला है। ये शायद देश का पहला केस होगा जब नाबालिग के नराधम दोषियों को बचाने वाले ‘भारत माता की जय’ का पवित्र नारा लगाकर धर्म और राष्ट्र दोनों को नीचा दिखा रहे हैं।
जम्मू के बार एसोसिएशन का अध्यक्ष तिरंगे के नीचे खड़ा होकर सरकार के खिलाफ एके-47 और बम उठाने की बात करता है। अगर वो हिंदू ना होता तो अब तक जेएनयू में पढ़ा हुआ या पाकिस्तान का एजेंट पक्का घोषित हो जाता।
इस देश में ये भी नया आविष्कार हुआ है। यहां देशद्रोही गैर- हिंदू ही होता है। हिंदू को डिफॉल्ट फायदा दिया जाता है। ऊपर से वकीलों ने अपनी शपथ की शर्म तक नहीं की। लड़की के परिजनों की तरफ से मुकदमा लेने वाली महिला तक को धमकी दे रहे हैं।
हाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट को बीच बचाव में उतरना पड़ रहा है। कैसे इस मामले को चर्चा में नहीं आना चाहिए था? ये सिर्फ एक बच्ची के बलात्कार का मामला नहीं रह गया है। ये देश की सामूहिक शर्म के साथ बलात्कार करने का मामला बन गया है। ये देश के सब्र के इम्तिहान का मामला बन गया है। ये देश के आम लोगों से सबसे बड़े सवाल का मामला बन गया है कि क्या अब धर्म के नाम पर कोई भी नीच बच्ची को भोगकर और मारकर पवित्र तिरंगा लेकर हमारे सहयोग से बच निकलेगा?

नोट : यह लेख आजतक के एडिटोरियल प्रोड्यूसर नितिन ठाकुर जी के फ़ेसबुक वाल से लिया गया है