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अब ऐसी कंपनियां भी पेट्राल पंप खोल सकेंगी जो पेट्रोलियम क्षेत्र में नहीं हैं

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मोदी सरकार ने रिलायंस को वो तोहफा दिया है जिसका इंतजार वह बरसो से कर रहा था. जिस तरह से टेलीकॉम इंडस्ट्री में जियो के आगमन से एक बड़ा मेजर चेंज आया है, उसी तरह से फ्यूल रिटेल को ओपन फ़ॉर आल किये जाने से अब परिस्थितिया पूरी तरह से रिलायंस जैसी निजी कंपनियों के पक्ष में झुक जाएगी।
मोदी -1 में रिलायंस को जिस तरह से टेलीकॉम इंडस्ट्री पर कब्जा करने की छूट दी गयी थी उसी प्रकार से मोदी- 2 में उसे देश के पेट्रोल – डीजल के रिटेल व्यापार पर एकाधिकार करने के लिए फ्री हेंड दे दिया गया है।
सरकार ने पेट्रोल डीजल के रिटेल कारोबार को गैर-पेट्रोलियम कंपनियों के लिए खोल दिया है। अब ऐसी कंपनियों भी पेट्राल पंप खोल सकेंगी जो पेट्रोलियम क्षेत्र में नहीं हैं। ऐसी कंपनियां जिनका कारोबार 250 करोड़ रुपये है अब ईंधन के खुदरा कारोबार क्षेत्र में उतर सकती हैं। अब फ्यूल रिटेल आउटलेट खोलने के लिए कोई भी कंपनी अप्लाई कर सकती है. उस कंपनी को मात्र 3 करोड़ रुपये बैंक गारंटी के तौर पर देने होंगे। यानी अब पेट्रोल भराने के लिए आपको पेट्रोल पंप तक जाने की जरूरत नही है पड़ोस में खुले रिलायंस फ़्रेश या बिग बाजार सरीखे आउटलेट से आप पेट्रोल डीजल भरवा सकते हैं।
मोदी सरकार के इस कदम से असली फायदा रिलायंस रिटेल और वॉलमार्ट जैसी मल्टी ब्रांड रिटेल कंपनियों को होने वाला है ओर इसका सीधा नुकसान सरकारी कम्पनियों को भुगतना होगा।
भारत में फ्यूल का मार्केट तेजी से बढ़ रहा है फ्यूल रिटेलिंग में फिलहाल सरकारी कंपनियों का ही बोलबाला है। अभी देश भर में सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियां जैसे इंडियन ऑयल कॉर्प (IOC), भारत पेट्रोलियम कॉर्प लिमिटेड (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्प लिमिटेड (HPCL) लगभग 65,000 पेट्रोल पंपों को संचालित करती हैं. इसकी तुलना में निजी क्षेत्र की तेल कंपनियों के पेट्रोल पंप बहुत कम है।
रिलायंस जो देश की सबसे बड़ी ऑयल रिफाइनिंग कॉम्पलेक्स को संचालित करती है, उसके 1,400 से भी कम आउटलेट हैं. यानी फ्यूल रिटेल का लगभग 95 प्रतिशत व्यापार जो सरकारी कंपनियों के पास है, अब वह रिलायंस और विदेशी कंपनियों के हाथ मे आ जाएगा।
क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देश भर में प्रतिदिन कितना पेट्रोल डीजल बिकता है? एक मोटे अनुमान के अनुसार देश भर में प्रतिदिन 12 अरब लीटर पेट्रोल ओर करीब डीजल 27 अरब लीटर बेचा जाता है। पेट्रोल दिल्ली में 73 रुपये लीटर के आसपास है, यानी 12 अरब को 73 से ओर डीजल 27 अरब लीटर के कंजमशन को 66 से गुणा कर दीजिए। यह रकम खरबो में पुहंच जाती हैं।
यदि आने वाले 5 सालो में इस व्यापार का 50 प्रतिशत भी रिलायंस ओर विदेशी कंपनियों के हाथ में चला जाता है तो देश की इकनॉमी को कितना बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाएगा। एक बार सोच कर देख लीजिएगा। क्या कोई बता सकता है कि पेट्रोल डीजल को अब तक जिस तरह से पेट्रोल पंप के माध्यम से बेचा जा रहा था उस प्रणाली में क्या खराबियां थी ?

 ~ गिरीश मालवीय