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व्यक्तित्व – जानिये कवि "गोपाल सिंह नेपाली" को

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‘गीतों के राजकुमार’ कहे जाने वाले गोपाल सिंह नेपाली हिन्दी साहित्य, पत्रकारिता और फिल्म उद्योग में ऊंचा स्थान हासिल करने वाले उत्तर छायावाद काल के विशिष्ट कवि और गीतकार थे.
इनका जन्म 11 अगस्त 1911 को बेतिया जिला चम्पारण बिहार में हुआ था. इनके पिताजी रामबहादुर सिंह फौज में थे. प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा बेतिया में ही हुई. राष्ट्र प्रेम, प्रकृति प्रेम एवं मानवीय संवेदना के कवि गोपाल सिंह में कविता रचने की प्रतिभा जन्मजात से थी. साहित्यिक रुझान देखते हुए बेतिया स्कूल के प्रधानाध्यापक महावीर सिंह जी ने भी उन्हें इस ओर प्रोत्साहित किया.

प्रयाग में सम्पन्न हुए एक साहित्यिक आयोजन में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द ने कहा भी था- क्या कविता पेट से सीख कर आए हो. इसी आयोजन में नेपाली जी का परिचय दुलारेलाल भार्गव जी से हुआ. जिनके साथ वे लखनऊ आए, जहां एक प्रकाशक ऋषभ चरण जैन से मुलाकात हुई. जिन्होंने नेपाली जी की प्रथम काव्य संग्रह ‘उमंग’ का प्रकाशन 1934 में किया.

जिस समय उमंग काव्य संग्रह का प्रकाशन हुआ नेपाली जी मात्र 23 वर्ष के थे और काफी कम  समय में ही इतने चर्चित हो चुके थे कि उनकी इस कृति पर छायावाद के दो महान साहित्यकारों ने अपनी सकारात्मक अभिव्यक्ति दी.महाकवि निरालाजी का मानना है कि
“नवीन तारकों के सदृश जितने कवि हिन्दी के काव्याकाश में चमकते हुए मुझे दिख पड़े, सौंदर्य के सुख-स्पर्श जादू से जिन्होंने मन को वशीभूत कर लिया, तथा प्रकाश और तृप्ति दी ”गोपाल सिंह नेपाली” उन्हीं में से एक हैं.जिनके काव्य में शक्ति प्रवाह सौन्दर्य-बोध तथा चारू- चित्रण एक विशेषता लिये हुए देख पड़े.”

उमंग’ के प्रति स्नेह शब्द प्रस्तुत करते हुए माननीय सुमित्रा नंदन पंत जी लिखते हैं,

“प्रिय नेपाली जी आपकी कविताएं मुझे विशेष प्रिय हैं. आपकी सरस्वती स्नेह, सहृदयता और सौन्दर्य की सजीव प्रतिमा है.आपका कवि कंठ निर्मल निर्झर के समान अवश्य ही मंसूरी की तलहटी में फूटा होगा.”
नेपाली जी को राष्ट्र से बहुत लगाव था.जब 1962 में चीन ने भारत में घुसपैठ की तो नेपाली जी ने एक लम्बी कविता लिखकर लोगों में जोश व उत्साह भरने का कार्य किया.नेपाली जी ने लिखा है-
“अंबर के तले हिंद की दीवार,
हिमालय सदियों से रहा शांति की मीनार,
हिमालय अब माँग रहा हिंद से तलवार,
हिमालय भारत की तरफ चीन ने है पांव पसारा,
चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा,
धरती का मुकुट आज खड़ा डोल रहा है, इतिहास में अध्याय नया खोल रहा है,
घायल है अहिंसा का वजन तौल रहा है,
धोखे से गया लूट भाई-भाई का नारा,
चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा।”

नेपाली जी ने जहां यह लिखा कि चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा, वहीं दूसरी रचना में अपनी योजना का विस्तार किया-

“भारत के जवानों, भारत के जवानों,
भारत से तुम्हें प्यार तो बंदूक उठा लो,
इन चीनी लुटेरों को भारत से निकालो
चोरों की तरह तोड़ के इमान के घेरे,
इस पार चले आ रहे बेशर्म लुटेरे,
तोपों से इन्हें मार कर उस पार हटा दो,
इन चीनी लुटेरों को हिमालय से निकालो”

कविवर गोपाल सिंह नेपाली सम्पादन व पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करते हुये ‘सुधा’, ‘चित्रपट’, ‘रतलाम टाइम्स’ से जुड़े रहे.फिल्मों के लिए आपने बहुत से गीत लिखे.फिल्म मजदूर के लिए आपको 1945 में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार प्राप्त हुआ.’बेगम’, ‘शिकारी’, ‘नागचम्पा’, ‘तिलोत्तमा’, ‘पवन’ ‘पुत्र’, ‘मायाबाजार’, ‘सफर’, ‘नजराना’, ‘तुलसीदास’ आदि बहुत सी फिल्मों के गीत उल्लेखनीय हैं.

उमंग काव्य संग्रह में ‘मौलसिरी’, ‘पंछी’, ‘हरी घास’, ‘पीपल’, ‘सरिता’, ‘बेर’, ‘नन्दन वन’, ‘बसंत’, ‘मधु ऋतु’ आदि शीर्षक के तहत लिखी गईं रचनाएं नेपाली जी के प्रकृति प्रेम की गवाह हैं.उमंग के अतिरिक्त ‘पंछी’, ‘पंचमी’, ‘नीलिमा’, ‘नवीन’ आदि संग्रह नेपाली जी के हैं.
नेपाली जी कवि सम्मेलनों से कई वर्षों तक जुड़े रहे,17 अप्रैल 1963 को एक कवि सम्मेलन में भाग लेने जा रहे कविवर नेपाली जी का भागलपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर हृदयगति के रुकने से मात्र 52 वर्ष में ही निधन हो गया.देश के ऐसे सच्चे सपूत को उनकी पुण्यतिथि पर हार्दिक नमन.