Share

जाति के कारण बारिश से बचने के लिए छत नहीं मिली थी डॉ आंबेडकर को

by Shagufta Ajaz Khan · April 14, 2018

स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माता, दलितों के मसीहा व समाज सुधारक डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू इंदौर मध्यप्रदेश में पैदा हुए थे। जिस जाति में बाबा साहब का जन्म हुआ था वो जाति बहुत निम्न और हेय समझी जाती थी.
उनके पिता रामजी मौला जी सैनिक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे। उन्हें अंग्रेज़ी ,मैथ और मराठी की अच्छी समझ थी.अपने पिता से उन्हें भी ये गुण विरासत में मिले थे. बाबा साहब की माँ का नाम भीमाबाई था। बाबा साहब जब 5 साल के थे, तो उनकी माँ गुज़र गई थी.
उनके बाद उनकी देख भाल चाचा ने की थी. वो अपने घर मे 14 वे सन्तान थे.उनकी इच्छा थी कि को संस्कृत पढ़ाए लेकिन छुआ -छूत के कारण उन्हें ये अधिकार प्राप्त नही हुआ.
आप सभी लोगो ने भी कंही न कंही से शिक्षा प्राप्त की होगी या कर रहे होंगे मगर आपको शायद उन परिस्थितियों का सामना नही किया होगा, जो बाबा साहब ने अपने समय में शिक्षा प्राप्त करते समय की.
उन्होंने जब प्रारम्भिक शिक्षा के लिए स्कूल की तरफ रुख किया। तो उन्हें अपनी जाति की वजह से बहुत अपमानित होना पड़ता था। अध्यापक उनकी कॉपी,किताब नही छूते थे। उन्हें अलग जगह से पानी पीने के लिए कहा जाता था.
एक बार की बात है जब बाबा साहब और उनके भाई बैलगाडी में बैठे थे तो गाड़ी वाले ने उनसे उनकी जाति पूँछी और उन्हें धक्का मारकर उतार दिया. उनके साथ अपनी जाति को लेकर अनेक घटनाओ को चुप चाप सहना पड़ा. एक वाक़्या ये है कि जब उनके भाई और वो बारिश से बचने के लिए किसी मकान के नीचे खड़े हो गये थे. तो मकान मालिक ने उनसे उनकी जाति पूछने पर उन्हें किचड़ में ढकेल दिया.
जिस तरह से उन्हें अपमानित और ठुकराया गया,वो उतने ही शिक्षा के पीछे भागे, संघर्षों से भरी ज़िन्दगी में वो एक प्रतिभाशाली छात्र रहे। जिस से प्रभावित होकर बड़ौदा के महाराजा ने उन्हें 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति भी दी .1907 में मैट्रिक व 1912 में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
बड़ौदा के महाराजा की और से कुछ मेधावी छात्रों को विदेश में पढ़ने की सुविधा दी जाती थी. जिसमे से अम्बेडकर साहब को ये मौका मिला. उसके बाद उन्होंने ने 1913 से 1917 तक अमेरिका और इंग्लैंड में रहकर अर्थशास्त्र, राजनीति तथा क़ानून का गहन अध्ययन किया। पी.एच.डी. की डिग्री भी यही से प्राप्त की, बड़ौदा नरेश की छात्रवृत्ति की शर्त के मुताबिक़ उनकी 10 साल सेवा करनी थी।
वंहा उन्हें सैनिक सचिव का पद दिया गया, वहां भी उन्हें अपमान मिला सैनिक कार्यालय में चपरासी तक रजिस्टर फेक कर देते थे। इस तरह अपमानित और हृदय को ठेस पहुंचने पर उन्होंने वह पद छोड़ दिया।
पद छोड़ने के बाद मुंबई आ गए,यहां रहकर उन्होंने “वार एट लॉ ” की उपाधि ग्रहण की वकील होने पर भी उन्हें कोई खुशी नहीं मिल रही थी। अपनी इच्छा शक्ति और वकालत में अच्छी समझ रखने से उन्होंने ने पहला मुक़दमा जीता. ना चाहते हुए लोगो को उनकी प्रशंसा करनी पड़ी.
आज के समय में हर बच्चा जानता है’ कि बाबा साहब कौन थे. बाबा साहब सिर्फ संविधान निर्माता, समाजसुधारक ही नही थे. बाबा साहब एक विचार भी थे,एक प्रेरणाशक्ति भी थे. उनके विचारो से दलितों के बड़े हिस्से ने अपनी परंपरागत पेशे को छोड़ने की छटपटाहट दी।
उन्होंने भारतीय समाज में बढ़ते वर्ण -व्यवस्था ,जाति-प्रथा और छुआ – छूत के खिलाफ आवाज़ उठाई. बाबा साहब ने दलित समुदाय के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ ही नहीं किया ।उनमें आत्म गौरव, स्वावलम्बन ,आत्मविश्वास ,आत्म सुधार और आत्म विश्लेषण करने की शक्ति प्रदान की।
डॉ.भीम राव अम्बेडकर पूरे दलितों के लिए एक प्रतीक बने। अपने इसी शक्ति के कारण लगातार प्रसांगिक होता गया है। दलित समुदाय ने इसी शक्ति की प्रेरणा से न सिर्फ सामाजिक सत्ता से वाद – विवाद औऱ संवाद करना सीखा है, बल्कि राजनीतिक सत्ता में अपनी भूमिका बनाने की प्रेरणा भी उन्हें इसी से मिली है।
अम्बेडकर के प्रतीक ने शायद उन्हें यह सिखाया है कि सामाजिक और राजनीतिक विकास की यात्रा में क्या लिया और क्या छोड़ा जा सकता है ? यह भी सिखाया कि उनके आगे बढ़ने में जो सामाजिक परंपरा बांधा खड़ी करती रही हैं, उन्हें कैसे नया रूप दिया जा सकता है ?
आज के दिन उनकी जयन्ती सब अपने – अपने तरीखे से मनाते हैं। कंही पर रात ने नाटक होता है, तो कंही ढोल -बाजे बजते है।सभी जगह अम्बेडकर के जीवन पर आधारित जुलूस ,झाँकी और पुस्तक मेले जैसे आयोजन किया जाता हैं।
गांव के तरफ जब आप जाते है तो आपको अम्बेडकर की मूर्ति भी अनेक प्रकार की मिलेगी। कंही काले रंग,कंही निले रंग के साथ कोट पहना रखा है। कंही उन्हें चश्मा पहना रखा है, कंही नही भी पहना रखा है। लेकिन अम्बेडकर चाहे जिस भी वेशभूषा में हो लेकिन हो हैं साहब ही. साहब का मतलब कोई सत्ताधारी व्यक्ति नहीं, बल्कि वह ‘ज्ञानी व प्रेरणापरक व्यक्तित्व ‘ है, जो जीवन के अंधेरे का ताला खोलने के लिए उन्हें ‘मास्टर जी’ ( गुरु किल्ली) देने की शक्ति रखता है।

शगुफ्ता ऐजाज़

Browse

You may also like