‘हिन्दुस्तान किसी से नहीं डरता, चाहे सातवां बेड़ा हो या सत्तरवां’.

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‘हिन्दुस्तान किसी से नहीं डरता, चाहे सातवां बेड़ा हो या सत्तरवां’। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी में अमेरिका को ​दो टूक बोल देने का यह साहस कहां से आया था? उन्हीं सैनिकों के दम पर जिन्होंने शहादत दी, पाकिस्तान युद्ध जीता और मात्र 3000 भारतीय जांबाजों ने मिलकर 93000 से ज्यादा पाकिस्तानियों का आत्मसमर्पण करा लिया था। उनकी याद में जल रही अमर जवान ज्योति को आज बुझा दिया जाएगा। भारतीय सैनिक इतिहास के गौरव को बुझा दिया जाएगा।

3 दिसंबर, 1971, पाकिस्तान ने पश्चिमी भारत के आठ सैनिक अड्डों पर हमला किया। पाकिस्तान की योजना थी कि पहले हमला बोलकर भारत को क्षति पहुंचाई जा सकेगी। लेकिन भारतीय सेना सुरक्षित पीछे हट गई। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जनरल मानेकशॉ बरसात के पहले से तैयारी कर रहे थे और इस मौके के इंतजार में थे कि पहले पाकिस्तान हमला करे।

पता चला कि पाकिस्तान की फौज पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर एक साथ हमलावर थी। पाकिस्तान की योजना थी कि पश्चिम में जैसलमेर और लोगोंवाल एयरबेस पर कब्जा कर लिया जाए। भारतीय सेना ने पूरी योजना के साथ दोनों मोर्चों पर एकसाथ जवाबी कार्रवाई शुरू की और आरपार के लिए बिगुल फूंक दिया।

भारत के नौसेना प्रमुख ने इंदिरा गांधी से पूछा, अगर हम करांची तक घुसकर उनके बंदरगाह पर हमला करें तो राजनीतिक दखलंदाजी तो नहीं होगी? इंदिरा गांधी ने कहा, जनरल, अगर युद्ध है तो फिर है, जनरल ने कहा, मुझे जवाब मिल गया है।

पूर्वी पाकिस्तान में जब तक विरोधी सेना कुछ समझ पाती, जनरल जेएस अरोड़ा के अभूतपूर्व नेतृत्व में भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान को पूरी तरह घेर लिया था। पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना घुस गई, ढाका को घेर लिया और गवर्नर के बंगले पर बमबारी कर दी। गवर्नर मेज के नीचे घुस गया और इस्तीफा लिखकर मेज पर रखा और भाग गया, पाकिस्तानी सेना के कमांडर जनरल नियाजी मेज के नीचे घुसकर फफक कर रोने लगे। उन्हें इस हमले की भनक तक नहीं लगी थी। भारत के तीन मिसाइल बोट ने पाकिस्तान में घुसकर करांची बंदरगाह को जला दिया, पाकिस्तानी सेना जवाब भी नहीं दे सकी।

अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने पाकिस्तान की ओर से हस्तक्षेप किया। भारत को आक्रमणकारी घोषित किया, कई तरह के प्रतिबंध थोपे और संयुक्त राष्ट्र में युद्ध विराम का प्रस्ताव ले गए। रूस भारत के साथ खड़ा था, उसने वीटो कर दिया। रूस की भारत के साथ संधि थी जिसके तहत उसने अपना बेड़ा भेज दिया था कि भारत पर हमला रूस पर हमला माना जाएगा।

पश्चिमी सीमा पर भारत में घुस आए 40 टैंकों को वायुसेना ने ध्वस्त कर दिया था और पाकिस्तानी वापस भाग गए थे।

निक्सन ने 9 दिसंबर को अमेरिका का सातवां युद्धक बेड़ा भारत की ओर रवाना किया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा, हिन्दुस्तान किसी से नहीं डरता, चाहे सातवां बेड़ा हो या सत्तरवां। अमेरिका ने सेना वापस लेने का दबाव बनाया तो इंदिरा गांधी ने दो टूक शब्दों में कहा, ‘कोई देश भारत को आदेश देने का दुस्साहस न करे।’

अमेरिका के जवाब में जनरल मानेकशॉ ने आदेश दिया, भारत की सैनिक योजना को और तेज कर दिया जाए। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी फौज को घेर लिया गया था। भारतीय सेना इस तरह से लड़ रही थी कि पाकिस्तानी सेना को लगा कि पूरा पूर्वी पाकिस्तान घिर चुका है।

भारतीय सेना के जनरल जैकब ने प्रस्ताव रख दिया कि अब या तो आत्मसमर्पण या फिर मौत…. नतीजतन मात्र 3000 भारतीय जांबाजों ने 93000 सैनिकों का सार्वजनिक समर्पण करवा लिया। अमेरिका मुंह देखता रह गया और पाकिस्तान के साथ पूरी दुनिया सन्न रह गई। 3 दिसंबर को शुरू हुआ युद्ध 13 दिसंबर को समाप्त हो गया, अमेरिका का सातवां बेड़ा भारत तक कभी नहीं पहुंचा।

बीबीसी से इंदिरा गांधी ने कहा था, ‘हम लोग इस बात पर निर्भर नहीं हैं कि दूसरे देश क्या सोचते हैं या हम क्या करें या वे हमसे क्या करवाना चाहते हैं, हम यह जानते हैं कि हम क्या करना चाहते हैं और यह कि हम क्या करने जा रहे हैं। चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो।’

इस शौर्यगाथा की याद में, इस युद्ध में शहीद जवानों के नाम पर इंडिया गेट पर 26 जनवरी 1972 को अमर जवान ज्योति जलाई गई। यह ज्योति 50 साल से जल रही थी। आज इसे बुझा दिया जाएगा। यह धतकरम नरेंद्र मोदी के विध्वंसक नेतृत्व में किया जाएगा और एक गौरवशाली इतिहास मिटा दिया जाएगा। वे एक और नया दिया नहीं जला सकते, वे 50 साल के गौरवशाली इतिहास को मिटा सकते हैं.