Share

गज़ल – मैं काँपने लगा हूँ दूरियाँ बनाते हुए

by Team TH · November 2, 2019

मैं काँपने लगा हूँ दूरियाँ बनाते हुए
मुहब्बतों से भरी कश्तियाँ डुबाते हुए
गुज़र गई है फकत सीढियाँ बनाते हुए
कराबतों से भरी क्यारियाँ सजाते हुए
के खिड़कियां ही लगाना है काम अब मेरा
उजाले आने की आसानियाँ बनाते हुए
मुसीबतों से संवारी थी ज़िन्दगी हमने
वो सोचता नहीं है बस्तियाँ जलाते हुए
के पासबान हमारा भी सो न जाये कहीं
सफर में चलते रहे सूइयाँ चुभाते हुए
कमी नहीं है जमाने में ऐसे लोगों की
के जिनकी उम्र गई खाइयाँ बनाते हुए
तलाश अब भी”जबल”मोतियों की जारी है
उम्मीद तोड़ी नहीं सीपियाँ उठाते हुए
अशफाक़ ख़ान”जबल”

Browse

You may also like