अखिलेश और राजभर की मुलाक़ात,कहाँ गए ओवैसी?

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यूपी का चुनाव अपनी दहलीज़ पर आ चुका है,लगभग सारी तैयारियां हो चुकी हैं। राजनेता अपने अपने हिसाब से माहौल बना रहे हैं जो उन्हें फायदा पहुंचा सकें। कांग्रेस से लेकर सपा तक और भाजपा से लेकर बसपा तक सभी दल अपनी अपनी तैयारियां करने में लगे हुए हैं। लेकिन जब साथ साथ नज़र आ रहे नेता अलग हो कर दूसरों के साथ जाते हैं खबरें बन ही जाती हैं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और यूपी के पूर्व केबिनेट मंत्री ओपी राजभर की अचानक मुलाक़ात की तस्वीरें वायरल होने लगी और उसके बाद खुद सुहलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओपी राजभर सामने आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने का ऐलान कर गए।

अब इन दोनों के गठबंधन कर लेने के बाद ये सवाल बच गया कि कुछ दिनों पहले जो ओवैसी और राजभर साथ साथ घूम घूम कर “भागीदारी संकल्प मोर्चा” बना रहे थे वो अब खत्म हो गया है? क्या अब ओवैसी इससे दूर हो गए हैं? क्या अब ओवैसी इस गठबंधन में नहीं रहेंगे? ये सवाल पूछे जाने लगे हैं। आइये इस पर गौर करते हैं।

क्यूँ हो गयी है इतनी दूरी?

दरअसल कुछ महीनों पहले तक असदुद्दीन ओवैसी और सुहलदेव समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर यूपी में खुद एक मोर्चा तैयार कर रहे थे। इसका नाम था “भागीदारी संकल्प मोर्चा” जो कई कई छोटी पार्टियों को मिलाकर बनाया जा रहा था। असदुद्दीन ओवैसी इसका बहुये शोर शराबे के साथ ऐलान भी कर रहे थे।

ओवैसी ने खुद ट्वीट करते हुए इस गठबंधन के मातहत पूरे प्रदेश में क़रीबन 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया था। वहीं ओपी राजभर ने भी 5 मुख्यमंत्री और 25 उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा भी की थी। लेकिन जो राजनीति में हवा नहीं पहचान सकता वो उसमें आगे नहीं जा सकता।

पूर्व में भाजपा के साथ राज्य सरकार में केबिनेट मंत्री रह चुके ओम प्रकाश राजभर ने ये बहुत अच्छे से समझ लिया था कि कोशिश कितनी भी कर ली जाए लेकिन शायद ही सत्ता में भागीदारी इस गठबंधन से हाथ लग पाएगी, इसलिए ही उन्होंने जुगाड़ लगाया और अखिलेश यादव से मिलते हुए अपने गठबंधन का ऐलान कर दिया है।

वहीं असदुद्दीन ओवैसी इस गठबंधन के बाद बिल्कुल खाली हाथ रह गए हैं,उनकी बनी बनाई राजनीति का बुलन्दा सितारा इस मुलाकात के बाद डूब गया है क्योंकि उनकी बनी बनाई रणनीति धरी की धरी रह गई है। जिसके बाद उन्हें नए साथ तलाशने पड़ेंगें।

अब देखना यही होगा कि ओवैसी साहब का अगला कदम क्या होगा? क्या वो भी गठबंधन का हिस्सा होंगें? क्या वो अखिलेश यादव के इस गठबंधन में आयेंगें? ये सवाल ज़रूर पूछा जायेगा और पूछा भी जाना चाहिए।