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आईये जानें, क्या है "भारतीय संविधान की प्रस्तावना"

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‘हम भारत के लोग’, भारत को लोकतांत्रिक,संप्रभुत्व ,धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों में बांधने वाला भारत का एकमात्र ग्रंथ(संविधान) इन्हीं शब्दों से आरंभ होता है। देश की आत्मा को स्वयं में बसाये संविधान विभिन्नताओं से भरे इस राष्ट्र को एक सूत्र में बंधने का सर्वप्रथम साधन है। संविधान का आरंभ ‘प्रस्तावना’से होता है संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु यह ‘उद्देशिका ‘ प्रस्तुत की जाती है।
भारतीय संविधान की उद्देशिका अमेरिकी संविधान से प्रभावित है व विश्व मे सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। यह संविधान का सार है, जो उसके लक्ष्य,दर्शन,आदर्श प्रकट करती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत मे निहित एवं एक राष्ट्र के रूप में भारत को आगे बढ़ाने के मूलभूत तत्वों को दर्शाती है। इसी के माध्यम से हम संविधान निर्माताओं के मस्तिष्क में झांक सकते है और उद्देश्यों को समझ सकते है।
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उद्देशिका ‘ हम भारत के लोग ‘ से प्रारंभ होती है जो यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है भारतीय जनता के सहयोग, योगदान से संविधान अस्तित्व में आया व भारतीय जनता ही समस्त राजनीतिक सत्ता का स्त्रोत हसि यह सच है कि समस्त भारतीय जनता ने इसका निर्माण नही किया परन्तु यह एक सच्चाई है कि इसके निर्माता जनता के प्रतिनिधि थे।

इसी के माध्यम से भारतीय जनता ने अपनी सर्वोच्च इच्छा को व्यक्त करते हुऐ लोकतंत्रात्मक आदर्श अपनाया है। भारतीय संघ की संप्रभुता और उसके लोकतंत्रात्मक स्वरूप की आधारशिला प्रस्तावना ही है संविधान के 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा इसमें ‘धर्मनिरपेक्षता’ और  ‘समाजवादी’ शब्द जोड़ा गया था। इस प्रकार भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया।
संविधान की प्रस्तावना इसकी आत्मा है  इसी के माध्यम से स्पष्ट हो जाता है कि स्वतंत्र भारत के नागरिक द्वारा किस तरह के संविधान का निर्माण किया गया है भारतीय संविधान की प्रस्तावना से सम्बंधित चार प्रमुख बाते है जो जानना आवश्यक है।

  1. यह संविधान का महत्वपूर्ण अंग नही है क्योंकि यह राज्य के तीन अंगोवको कोई शक्ति नही देती ,व अपनी शक्तियां संविधान के अन्य अनुच्छेदों से प्राप्त करती है इसलिए यह उनकी शक्ति पर कोई रोक भी नही लगती है
  2. संविधान के किसी भाग पर यह कोई बल नहो देती, संविधान के अनुच्छेद तथा इसमें संघर्ष होने पर अनुच्छेद को वरीयता मिलेगी।
  3. न्यायालय में इस के आधार पर कोई वाद नही लाया जा सकतान ही वे इसे लागू कर सकते हैं।
  4. इसे कई बार मात्र शोभत्मक आभूषण भी कहा गया है। सर्वोच्च न्यायालय भी इस की सीमित भूमिका मानता है इसका प्रयोग संविधान में विद्यमान अस्पष्टता दूर करने हेतु किया जा सकता है।

प्रस्तावना को संविधान के एक भाग के रूप में स्वीकारने पर दो प्रकार के मत सामने आते है परंपरागत व नवीन मत। परंपरागत मत : उद्देशिका को संविधान का भाग नही मानता क्योंकि यदि इसे विलोपित भी कर दिया जाए तो भी संविधान अपनी विशेष स्तिथि बनाये रख सकता है।
नवीन मत इसे संविधान का एक भाग बताता है,संविधान का एक भाग होने के कारण ही संसद से इसे 42 वें संविधान संशोधन से इसे संशोधित किया था तथा समाजवादी, पंथनिरपेक्षता, और अखंडता शब्द जोड़ दिए थे।
वर्तमान समय मे नवीन मत ही मान्य है क्योंकि संविधान की प्रस्तावना संविधान का संक्षिप्त रूप है जो काम शब्दो मे संविधान के साथ साथ भारत के मूल्यों को भी दर्शाता है। यह संविधान के उन उच्च आदर्शो का परिचय देती है जिन्हें भरतीय जनता ने शासन के माध्यम से लागू करने का निर्णय किया है , इन आदर्शो का उद्देश्य न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व या राष्ट्र की एकता एवं अखंडता स्थापित करना है।
भारतीय संविधान की उद्द्येशिक वह नैतिक एवं उच्च मूल्यों को बताती है जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र के रुप मे खड़ा है व आने वाली पीढ़ी को इन्ही आदर्शो एवं मूल्यों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्र को आगे बढ़ना है।