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क्योंकि मुस्लिम अपना कथित सेकुलरिज्म साबित करने में लगा हुआ है

by Imran khan · December 25, 2017

आज जो में लिख रहा हूं शायद इससे दिक्कत हो लेकिन लिखना ज़रूरी है. भारतीय संदर्भ में जिस तरह से “फेमिनिज्म” को गलत परिभाषित किया गया है ठीक उसी तरह “सेकुलरिज्म” को भी उतने ही भोंडे रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसका भार उठाये नही उठ रहा है.
जब बात होती है “जितनी जिसकी भागीदारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी” तो कई लोगो के कान खड़े हो जाते है और खास तौर पर मुस्लिम जब राजनीति या किसी अन्य फील्ड में अपनी उपस्तिथि चाहता है तो एक बड़ी तादात में लोग (खुद मुस्लिम ही) उसे कट्टर कहकर नकार देते हैं और इतिहास गवाह है कि ऐसे ही ठोकर खाते कहते आज 70 साल करीब होने वाले हैं.
अपने किसी कैंडिडेट को कट्टर बताकर अखिलेश भैया, राहुल भैया और केजरीवाल जैसो के पीछे आंख मूंद कर चलने लगते है और जब आंख खुलती है तो काफी दूर निकल आते है और फिर से किसी और के पीछे शुरुआत से शुरू करते हैं और फिर वही सब दोबारा होता है.
आज में जान लेना चाहता हूं कि जितनी मुस्लिम की आबादी है उसके अनुसार मुस्लिम अपनी रिप्रजेंटेशन क्यों नही कर सकता? मेवानी और पटेल की तरह मुस्लिम खुद का अस्तित्व क्यों नही बना सकता ताकि उसे हर मसले पर दर बदर भटकना न पड़े.
क्योंकि मुस्लिम अपना कथित सेकुलरिज्म साबित करने में लगा हुआ है जबकि जो वह कर रहा है वो सेक्युलरिम कम से कम में तो नही मानता.
सारी पार्टीयां भाजपा का डर दिखा कर मुस्लिमों की हालत और बदतर किये जा रही हैं और हम इसमें लगे है कि कौन अपनी पार्टी का ज्यादा वफादार है, जबकि अन्य पार्टियों ने भाजपा के मुकाबले ज्यादा नुकसान पहुंचाया हैं और यही सच है.
जब तक सही सेकुलरिज्म को समझकर अपनी रिप्रजेंटेशन नही मांगोगे जब तक ऐसे ही धोका खाते रहोगे, शिक्षा, रोज़गार, राजनीति, आर्मी सब मे अपनी उपस्तिथि दर्ज करानी होगी और यही एकमात्र रास्ता है खुद के हालात बेहतर करने का.

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