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क्या नोट बंदी देश के लिए आर्थिक आपातकाल साबित हुआ ?

by Zain Shahab Usmani · November 10, 2017

देश में दो बार आपातकाल लगा पहली बार 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में उठ रहे विपक्षी नेताओं के आवाज़ को दबाने के लिए इंदिरा गांधी के द्वारा ने देश में आपातकाल लगा दिया. जिसमें जनता कम नेता अधिक प्रभावित हुए बोलने की आज़ादी छीन ली गई देश भर के छोटे बड़े नेता को जेल में डाल दिया गया, लेकिन जब आपातकाल समाप्त हुआ और जनता सड़क पर आ गई.
जेपी के अगुआई में 1977 का लोकसभा चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस पहली बार देश के सत्ता से बेदखल हो गई खुद इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गई और आपातकाल के बाद लालू, नितीश, मुलायम जैसे नेता निकले. दूसरी बार 8 नवंबर 2016 को मोदी सरकार के द्वारा नोट बंदी कर के देश में आर्थिक आपातकाल लगा दिया गया. जिसमें व्यवसाय समुदाय बहुत प्रभावित हुआ और साथ देश की जनता को अपने कमाए हुए धन को भी इस्तेमाल करने में रोक लगा दिया गया. बैंकों जमा अपने पैसों को भी आप अपने आवश्यकता अनुसार नहीं निकाल सकते थे, जनता को कुल मिलाकर बैंकों में लाईन में खड़ा होने के लिए मजबूर होना पड़ा और उन सब के बावजूद भी हम मुर्दा होने का संदेश देते रहे न कोई आंदोलन खड़ा हुआ, न कोई विरोध प्रदर्शन हुआ, न राजनीति बहिष्कार किया गया, मतलब कुल मिलाकर हमने सरकार के सामने समर्पण कर दिया.
इन सब के पीछे सबसे बड़ी सोचने की बात ये है कि क्या अब देश में जनता ने अपने सोचने , समझने, बोलने हर बात की जिम्मेदारी अपने नेताओं के हाथों में सौंप दी है? अगर इस तरह की बातें रही तो क्या अब कभी कोई जनहित के लिए आगे आएगा? जनहित के लिए कोई आवाज़ उठाएगा? नोट बंदी से देश को आम जनता को कोई लाभ नहीं हुआ ये भी एक सच है.

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