अभी देश के राजनीतिक गलियारों में विपक्षी गठबंधन की जो बात कांग्रेस कर रही है इसमें एक बात बड़ी अजीब सी लगती है जहां उत्तर प्रदेश में कांग्रेस उपचुनाव में फुलपुर और गोरखपुर में अकेले मैदान में उतरी और अपना ज़मानत भी नहीं बचा पाई जबकि बसपा ने अपने परंपरा को कायम रखते हुए उपचुनाव नहीं लड़ी और सपा समर्थन दे कर ये साफ़ कर दिया के राजनिति में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है.
जैसा की पता होना चाहिए बिना सपा- बसपा के विपक्षी गठबंधन सफ़ल नहीं हो पाएगा क्योंकि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में पता चल चुका है, भाजपा अकेले उत्तर प्रदेश में 73 सीट जीतने में कामयाब हुई थी.
अब हम पिछे नहीं जाना चाहेंगे मैं आपको चार उन राज्यों का राजनीतिक समीकरण बता रहा हूं जहां पर कांग्रेस अपने क्षेत्रीय दलों पर निर्भर है, जहां कांग्रेस की कोई खा़सी अपनी ज़मीन नहीं है जिसमें उत्तर प्रदेश-80, बिहार-40, पश्चिम बंगाल-42, तामिलनाडु-39 जिसका कूल योग 201 सीट है और कांग्रेस के अभी इस 201 में केवल 8 सीट है इसमें ( सपा-बसपा, टीएमसी, डीएमके और राजद ) इन दलों को किनारे कर के कोई भी विपक्षी गठबंधन सफ़ल नहीं हो सकता है.
अब कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि इस दलों के साथ अभी तालमेल बनाकर और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए भी आपसी सहमति बनाकर कोई ठोस क़दम लिया जाए जिससे सत्ताधारी दल के क़िले को भेदा जा सके ये चारों दल का विपक्षी गठबंधन में बहुत महत्व रखते हैं.
in विचार स्तम्भ