नज़रिया – क्या अब आप धर्म देखकर ही पीड़ितों के लिए इंसाफ़ मांगेंगे ?

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आंध्र प्रदेश के शहर विशाखापट्टनम में एकतरफा प्यार में नाकाम एक लड़के ने भरे बाजार 17 साल की लड़की का गला काट डाला, जिस वक्त घटना को अंजाम दिया गया तब वहां काफी लोग थे,उसने तड़प तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया, आरोपी लड़के को गिरफ्तार कर लिया गया है। आरोपी लड़के का नाम अनिल बताया गया है वो मृतका से एकतरफा प्यार करता था और उसका प्रणय निवेदन ठुकराए जाने से नाराज था और इसी आवेश में उसने लड़की की जान ले ली। विशाखापट्टनम शहर की सूर्योदय कालोनी के पास लड़की पर हमला किया गया था।

गौरतलब है कि अभी हाल ही में दिल्ली से सटे फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में भी ऐसा ही मामला सामने आया था वहां बीकॉम अंतिम वर्ष की छात्रा निकिता की हत्या उस समय हुई जब वह पेपर देकर कॉलेज से वापस आ रही थी। आरोपी तौसीफ कार में सवार होकर अपने दोस्त के साथ कॉलेज के बाहर नितिका का इंतजार कर रहा था। निकिता के वहां पहुंचने पर उसने उसे जबरन कार में बिठाने की कोशिश की लेकिन निकिता ने इसका विरोध किया। इसके बाद तौसीफ ने नजदीक से उसे गोली मार दी।

दोनों घटनाओं में कितनी समानता है! लेकिन खेल तो सारा नाम का है। आंध्रप्रदेश मे शायद ही पीड़ित परिवार को ‘न्याय’ देने के नाम पर ‘लव जिहाद’ जैसा शिगूफा हवा में उछाले, शायद ही वहां हिंदुवादी संगठनों का जमावड़ा पीड़ित परिवार के घर लगे, सिर्फ इसलिए क्योंकि आरोपी तो ‘अनिल’ है? हां अगर इस घटना का आरोपी कोई ‘तौसीफ’ होता तब ‘राष्ट्रवादी’ मीडिया जरूर इसे लव जिहाद बताता, और आह्वान करता कि ‘आखिर कब तक हिंदुओं के धैर्य की परीक्षा होगी’ हीनभावना का शिकार ‘मुस्लिम स्काॅलर’ सोशल मीडिया को फांसी की मांग करके पौत डालता, लेकिन अब दोनों ही खामोश हैं। क्योंकि आरोपी उनके मनमाफिक़ नहीं है।

लेकिन सवाल यह है कि आसमान सर तभी क्यों उठाया जाता है जब निकिता का हत्यारोपी तौसीफ होता है? जब अंजली का हत्यारोपी अनिल होता है तब खामोशी क्यों अख्तियार कर ली जाती है? क्या तब अपराध की जघन्यता कम हो जाती है? अपराध कम हो जाता है? यह भी एक तरह का अपराध ही है, इसे नैतिक अपराध कहा जा सकता है। अगर बल्लभगढ़ की घटना आपके खून में उबाल पैदा करती है तो विशाखापट्टनम पर भी आपको उतना ही गुस्सा आना चाहिए, अगर ऐसा नहीं है तो फिर इस सच को स्वीकारने में कोई बुराई नहीं है कि सलेक्टिव संवेदनाएं एंव भावनाएं पीड़ित को इंसाफ दिलाने के लिए नहीं बल्कि उसकी लाश पर राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए हैं। उसका तमाशा बनाकर अपनी दुकान चलाने के लिए हैं।

गुड़गांव के फोर्टिस अस्पताल में जिंदगी बचाने के लिए लड़ रही 21 साल की युवती से रेप का मामला सामने आया है। लड़की वेंटिलेटर पर है। दैनिक भास्कर की ख़बर के मुताबिक़ 22 से 27 अक्टूबर के बीच उससे रेप हुआ। पीड़ित को होश आने पर 28 अक्टूबर को उसने अपने पिता को टूटे-फूटे शब्दों में आपबीती बताई। आरोपी का नाम विकास बताया है। पुलिस को शक है कि वारदात में अस्पताल के कर्मचारी शामिल हो सकते हैं। CCTV फुटेज के आधार पर 2 संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है।

पीड़ित के पिता ने बताया कि बेटी को सांस लेने में दिक्कत के चलते 21 अक्टूबर को उसे गुड़गांव के सेक्टर-44 स्थित फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया था। हालत बिगड़ने पर 22 अक्टूबर को वेंटिलेटर पर शिफ्ट किया गया। अस्पताल में उसकी बेहोशी का फायदा उठाकर आरोपियों ने ज्यादती की। पीड़ित के पिता की शिकायत पर पुलिस ने 29 अक्टूबर को केस दर्ज किया।

इन दिनों हरियाणा का बल्लभगढ़ में सत्ताधारी दल के अनुषांगिक कट्टरपंथी संगठनों का जमावड़ा लगा हुआ है। क्योंकि तौसीफ नाम के एक सरफिरे आशिक ने निकिता तोमर नाम की छात्रा की हत्या इसलिए कर दी थी क्योंकि उसने तौसीफ के साथ आने से इनकार कर दिया था। इस घटना के बाद ‘लव जिहाद’ का नाम लेकर समाज में ज़हर घोलने का षड़यंत्र शुरु हो गया है। इस हत्याकांड को सांप्रदायिक रंग देकर दंगा भड़काने की कोशिश हो रही है। रविवार को दशहरा मैदान में महा पंचायत हुई। संवैधानिक पद पर बैठे एक सूबे के मुख्यमंत्री ने ‘लव जिहाद’ करने वालों की ‘राम नाम सत्य’ यात्रा निकालने की भी घोषणा कर दी है। अपराध के प्रति यही ‘सलेक्टिव’ संवेदनाएं एंव भावनाओं का उबाल नए अपराधी पैदा करता है।

क्या इसमें कोई दो राय है कि बल्लभगढ़ का अभियुक्त तौसीफ है इसलिए भावनाओं में उबाल है? वरना ऐसी घटनाएं तो आए दिन इस देश में घटतीं हैं। उन पर कौन सड़क जाम करता है? कौन पंचायतें करता है? कौन लव जिहाद का सोशा छोड़ता है? कोई नहीं। यहां अभियुक्त तौसीफ है इसलिए भड़ास निकाली जाएगी। हैरानी इस बात की है कि गुड़गांव में जिस युवती के साथ दरिंदगी हुई उसे इंसाफ दिलाने की अभी तक आवाज़ नहीं आईं हैं। ऐसा क्यों है? क्या इसलिए क्योंकि अभियुक्त ‘विकास’ है ‘वक़ास’ नहीं? क्या यह सलेक्टिव रवैय्या नहीं है? क्या कोई अपराध तभी जघन्य माना जाता है जब अभियुक्त दूसरे समुदाय से हो? अगर भारतीय समाज यही रवैय्या अख्तियार कर बैठा रहा तो इस तरह के अपराध रुकने की कल्पना करना भी बेमानी है।