Share

नोआखली हिंसा पर क्या थे महात्मा गांधी के विचार ?

by Pushya Mitra · September 13, 2021

सम्भव है मुझे नोआखली में कई वर्ष ठहरना पड़े। वे लोग मुझे मार डालें तो इसके लिये भी मैं तैयार हूं। हालांकि मैं जानता हूं कि वे मुझे नहीं मारेंगे। वे जानते हैं मैं दिल से उनका मित्र हूं।

यदि नोआखली में हिन्दू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते तो वे हिंदुस्तान में कहीं साथ नहीं रह सकेंगे। और इसका अनिवार्य परिणाम होगा विभाजन। अगर भारत को अखण्ड रहना है तो हिंदुओं और मुसलमानों को भाई-भाई की तरह प्यार से मिलजुल कर रहना चाहिये। न कि रक्षा के लिये या बदले के लिये संगठित शत्रुओं की छावनी बनाकर। इसलिये मैं अलग बस्तियां बनाकर रहने की नीति के विरुद्ध हूं।

समस्या को हल करने का एक ही उपाय है और वह है अहिंसा। मैं जानता हूं मेरी आवाज आज अरण्यरोदन के समान है। फिर भी मैं यही कहूँगा कि सत्य, अहिंसा, साहस और प्रेम के सिवा भारत के उद्धार का और कोई मार्ग नहीं है। उस उपाय का प्रत्यक्ष प्रमाण देने ही मैं यहां आया हूं। अगर नोआखली हाथ से चला गया तो भारत भी चला जायेगा।

मेरा वर्तमान मिशन मेरे जीवन का सबसे पेचीदा और कठिन कार्य है। मैं कार्डिनल न्यूमैन के साथ यह सत्य गा सकता हूं। ‘रात अंधेरी है और मैं घर से दूर हूं, हे ईश्वर तू मेरा मार्ग प्रकाशित कर।’

मैने अपने जीवन में पहले कभी इतना अंधकार अनुभव नहीं किया। रात लम्बी मालूम होती है। इतनी ही सांत्वना है कि न तो मैं स्वयं को पराजित अनुभव करता हूं और न ही निराश। मैं किसी भी घटना के लिये तैयार हूं।

करो या मरो की परीक्षा यहीं होगी। करो का अर्थ यह है कि हिन्दुओं और मुसलमानों को शांति और मेलजोल के साथ जीना सीखना चाहिये। (मरो मतलब)अन्यथा इस प्रयास में मुझे मर जाना चाहिये। यह कार्य सचमुच कठिन है। इश्वरेच्छा वलियसी।

– नोआखली में गांधी

#गांधी1947

Browse

You may also like