जानिए क्या है महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ “कार्यस्थल पर सुरक्षा ( रोकथाम और निषेध ) अधिनियम 2010”

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भारत में महिलाओं के साथ अत्याचार, दुर्व्यवहार और उनका शोषण ( Discrimination based on gender and Sexual harassment of women ) काफी लंबे समय से चला आ रहा है। काफी लंबे समय से ही भारत में महिलाओं की स्थिति और उनका जीवन काफी कठिनाइयों से गुज़र रहा है । परंतु आज वर्तमान समय में महिलाओं के लिए यौन उत्पीड़न सबसे बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है। आज महिलाएं एक तरफ सफलता हासिल कर इतिहास के पन्नो पर अपनी जगह बना रही हैं तो दूसरी तरफ कई महिलाएं हिंसा और अपराध का शिकार हो रही हैं।

भारत में महिलाओं की स्थिति कुछ यूं है कि उनको पीटा जाता है उनका अपहरण किया जाता है और बलात्कार भी किया जाता है। अगर महिलाएं इसके खिलाफ आवाज़ उठाती हैं, तो उनको चार दिवारी में जला दिया जाता है। या फिर उनकी हत्या कर दी जाती है। अक्सर ये सारे घिनौने काम उनके अपने ही करते हैं । क्या हमने कभी सोचा है कि उन महिलाओं पर क्या गुज़रती होगी या फिर इस हिंसा के खिलाफ महिला आवाज क्यों नही उठा पातीं। तो आइए जानते हैं कि इसका मूल कारण क्या है ?

यौन उत्पीड़न एक बढ़ी समस्या का रूप ले चुकी है :-

वर्तमान समय में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न एक बड़ी समस्या है, तथा भारत में यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाएं एक चिंता का विषय बनी हुई है । अधितकम महिलाएं यौन उत्पीड़न का शिकार, घर, स्कूल या फिर कार्यस्थल पर होती हैं। अर्थात् कहा जा सकता है कि महिलाएं किसी भी स्थान पर सुरक्षित नहीं हैं। कभी कभी लोग इसके खिलाफ आवाज़ उठाते हैं, रैलियां निकालते हैं और महिलाओं के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न का विरोध करते हैं। लेकिन इसके बावजूद भी इन घटनाओं में वृद्धि ही हुई हैं। आइए ऐसी कुछ घटनाओं पर नजर डालते हैं।

वर्तमान में यौन उत्पीड़न से संबंधित घटित घटनाएं :-

मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया गया : मई की शुरुआत में राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया गया था।पुलिस सूत्रों के अनुसार दोनों महिलाएं एक छोटे समूह का हिस्सा थीं। जो 4 मई को पहाड़ियों और घाटी के इन दोनों जातीय समुदायों के बीच हमलों और जवाबी हमलों का सिलसिला शुरू होने के बाद बचने के लिए एक जंगली इलाके में भाग गई थीं। बताया जा रहा है कि उन दोनो महिलाओं का जंगल में ही बलात्कार किया गया और फिर उन्हें भीड़ के बीच नग्न घुमाया गया। इन घटना के विरोध में काफी महिलाएं सड़को पर उतर कर प्रदर्शन भी कर चुकी हैं।

महिला खिलाड़ियों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप : हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर पर ओलंपिक खिलाड़ियों ने महिला पहलवानों के यौन शौषण के खिलाफ प्रदर्शन किया था। पहलवानों का आरोप है कि बृजभूषण सिंह और कोच, नेशनल कैंप में महिला रेसलर्स का यौन उत्पीड़न करते हैं। कहा जा सकता है की भारत में आज के इस दौर में महिला खिलाड़ी भी सुरक्षित नहीं हैं।

भारत में इसी तरह की घटनाएं हर दिन होती हैं, काफी घटनाएं तो पुलिस और मीडिया के सामने आ जाती हैं लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जिसके लिए महिला आवाज नही उठा पातीं और सहती रहती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2019 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में 32033 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, या प्रतिदिन औसतन 88 मामले दर्ज हुए हैं।

वहीं नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के अनुसार सर्वे के मुताबिक, 18 से 49 साल की लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें 15 साल की उम्र के बाद शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है। 6 फीसदी महिलाओं को ज़िंदगी में कभी न कभी यौन हिंसा झेलनी पड़ी है।

नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के अनुसार सर्वे के मुताबिक:-

  • 18 से 49 साल की लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें 15 साल की उम्र के बाद शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है।
  • 6 फीसदी महिलाओं को जिंदगी में कभी न कभी यौन हिंसा झेलनी पड़ी है।
  • वर्ष 2016 के एक आंकड़े के अनुसार भारत में दुष्कर्म के रोजाना 106 मामले सामने आते हैं। परंतु इससे स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं होती है, क्योंकि यहां दुष्कर्म के सभी मामलों की रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई जातीहै।

कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न:-

महिलाएं भी चाहती हैं कि वो स्वयं स्वतंत्र होकर अपना जीवन जिएं । जो कि आज के समय में हो भी रहा है महिला शिक्षा का स्तर काफी हद तक बढ़ा है और महिलाएं भी कामयाबी की सीढियां चढ़ने लगी हैं। महिलाएं भी कार्यस्थलों पर जाकर काम करती हैं और नाम व पैसा दोनो कमाती हैं । सवाल ये उठता है कि क्या महिलाएं कार्यस्थलों पर सुरक्षित महसूस करती हैं या नहीं ?

सच्चाई ये है कि महिलाएं और युवतियां कार्यस्थल पर भी असुरक्षित हैं और उनके साथ भेदभाव भी किया जाता है। महिलाओं के ऐसे कार्यस्थलों पर कार्य करना चाहिए जो उनके लिए सुरक्षित हों और उनके साथ किसी तरह का भेदभाव ना किया जाता हो। जिसके चलते महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ तात्कालीन मनमोहन सिंह सरकार द्वारा 2012 में कार्यस्थल पर सुरक्षा विधेयक 2010 को पारित किया गया और उसे कानून का रूप दिया गया। आईए इस अधिनयम के बारे में जानते हैं ।

क्या है महिला यौन उत्पीड़न के खिलाफ ” कार्यस्थल पर सुरक्षा (रोकथाम एवं निषेध) अधिनियम 2012″ ?

3 अगस्त 2012 को महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ कार्यस्थल पर सुरक्षा विधेयक, 2010 पारित किया गया। इस अधिनियम ( Safety at Workplace (Prevention and Prohibition) Act, 2012 ) के अनुसार, बताया गया कि भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय संसद में इस कानून को पारित कर कार्य स्थलों पर महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित कर दिया है। जब इसे लागू किया गया तब कहा गया था, कि सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में, चाहे संगठित हो या असंगठित महिलाओं को लिंग समानता और सशक्तिकरण को प्राप्त करने में मदद मिलेगी । साथ ही साथ इस कानून के ज़रिए ये भी सुनिश्चित किया गया कि सभी कार्य स्थलों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं की रक्षा की जायेगी। इस अधिनियम के चलते कार्यस्थल पर सुरक्षा की भावना, काम में महिलाओं की भागीदारी में सुधार, उनके आर्थिक सशक्तिकरण और समावेशी विकास में अच्छा परिणाम प्राप्त होगा ।

अधिनियम के अनुसार तय की गई सजा :-

इस अधिनयम के लागू होने के बाद यौन उत्पीड़न का शिकार महिला या ऐसी महिला जिसके साथ किसी तरह का भेदभाव किया गया है, और वह महिला उक्त घटना को लेकर शिकायत दर्ज कराती है। तो शिकायत दर्ज कराने के बाद शिकायत समिति को 90 दिनों में जांच पड़ताल करना होता है। अगर समिति आरोपी को यौन उत्पीडन का दोषी पाती है तो समिति नियोक्ता (अथवा कम्पनी या संस्था, आरोपी जिसका कर्मचारी है) को आरोपी के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने के लिए सुझाव देगी। नियोक्ता अपने नियमों के अनुसार कार्यवाही कर सकते हैं। नियमो के अभाव में ये कदम उठाए जा सकते हैं, जैसे लिखित माफी,चेतावनी, पदोन्नति/प्रमोशन या वेतन वृद्धि रोकना ,परामर्श या सामुदायिक सेवा की व्यवस्था करना या फिर नौकरी से निकाल देना इत्यादि।