विवाद दर विवाद में घिरती सीबीआई

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सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया गया है । ज़ाहिर है यह कदम राकेश अस्थाना को राहत देगा। लेकिन आलोक वर्मा से सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी है और सुप्रीम कोर्ट 26 अक्टूबर को इस मुक़दमे की सुनवायी करेगा। आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने का कदम राकेश अस्थाना को राहत देने के लिये भी उठाया गया है। क्योंकि राकेश अस्थाना को यह पूरी तरह पता था कि अगर आलोक वर्मा डायरेक्टर बने रहेंगे तो उनपर शिकंजा कसता जाएगा। इसीलिए आनन फानन में वे हाईकोर्ट गये जहां से दो दिन की राहत कि यथास्थिति बनी रहे उन्हें मिली। सरकार ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर रुखसत कर के उन्हें और राहत दी है।
सीबीआई के निदेशक का कार्यकाल 2 वर्ष का नियत होता है। सीबीआई के निदेशक का चयन भी एक बोर्ड करता है जिसमे सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और नेता विरोधी दल होता है। उसे तयशुदा समय से पहले हटाना भी सम्भव नहीं होता है। नियत समय के लिहाज से आलोक वर्मा जनवरी में ही रिटायर होते। एक निर्धारित कार्यकाल के कारण उन्हें हटाया नहीं जा सकता था अतः यह एक प्रशासनिक जुगाड़ है कि वे लंबी छुट्टी पर चले जाँय। इसका तात्कालिक लाभ यह होता है कि जो विवाद, कानाफुंसी और लंगर गजट विभाग में चलती रहती है वह थम जाय। क्योंकि विवाद के स्रोत को ही शिफ्ट कर दिया जाता है। लेकिन सीबीआई प्रमुख को इस प्रकार हटाना भी अवैधानिक और सेवा शर्तों का उल्लंघन है। इसे सुप्रीम कोर्ट में आलोक वर्मा ने चुनौती भी दी है। इसकी सुनवायी 26 अक्टूबर को होगी।
आज सीबीआई की जो दुर्गति आप देख रहे हैं न वह एक दिन का करिश्मा नहीं है। यह प्रथा पुलिस की तफ्तीश को राजनीतिक हित और निज स्वार्थ लाभ के लिये नेताओ की मनमर्जी से बदलने की एक ज़िद और महत्वाकांक्षा का परिणाम है। पुलिस से मनमाफिक काम कराने और एवज में पुलिस अफसर को मनचाही पोस्टिंग देने के अवैध व्यापार का दुष्परिणाम है। बहुत से अफसर चाहे वे एसआई हों या आईपीएस जो, राजनेताओं के धुन पर नहीं नाचते हैं और बलिहाज़ सियासत, वे उनके उपयोग के नहीं होते हैं, वे फिर कहीं दाएं बाएं पड़े होते है। किसी भी सरकार ने चाहे वह किसी भी दल की हो, पुलिस के प्रोफेशनल सुधार की ओर कदम ही नहीं बढ़ाये। कभी गम्भीरता से राजनीतिक नेतृत्व ने इसे सोचा भी नहीं। पूर्व डीजीपी, प्रकाश सिंह सर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधार हेतु कई आदेश निर्देश दिए। फिर भी किसी सरकार ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया। नेता कहता है कि जब पुलिस ही नहीं रहेगी उसके पास तो वह किस प्रकार से खुद को सत्तारूढ़ समझेगा। जब यह मानसिकता है तो यह दुर्गति तो होनी ही है।
लेकिन आलोक वर्मा को हटाने या जबरन छुट्टी भेजने के बजाय सरकार को चाहिये था कि राकेश अस्थाना को उसी दिन हटा दिया जाता, जिस दिन उनपर एफआईआर दर्ज की गयी थी। सीबीआई की साख के लिए यह कदम ज़रूरी था। एक बार जब किसी के साथ विवाद चिपक जाता है तो और भी बहुत से पहले के किये गए सेवागत सत्कर्म कुकर्म उजागर होने लगते हैं। आज के इस अतिपारदर्शी युग मे हर व्यक्ति जो भी जानकारी रखता है चाहे वह सच हो या गलत, झूठ हो या सच, सोशल मीडिया पर डालता रहता है और जिसके खिलाफ यह सब चल रहा होता है उसे बहुत कुछ पता भी नहीं होता है और वह इन सबका प्रतिवाद भी नहीं कर पाता। इस हालिया विवाद से राकेश अस्थाना के मोइन कुरेशी से ली गयी सुविधा, रिश्वत आदि के आरोप के साथ उनके गुजरात मे नियुक्ति काल के समय के किस्से, उनके द्वारा तफ़्तीश किये गए गोधरा, चारा, चिदम्बरम आदि के महत्वपूर्ण मामलों पर भी बहस होने लगी है जिससे यह लगता है कि उनकी हर तफ़्तीश ही द्वेषपूर्ण से भरी थी या है। यह साख का संकट है।
राकेश अस्थाना पर जो आरोप लगे हैं और जो एफआईआर दर्ज है उसकी विवेचना बेहद सतर्कता और निष्पक्षता से की जानी चाहिये। यह किसी व्यक्ति के आचरण के बजाय देश के सबसे बड़ी और अब तक सबसे विश्वसनीय समझी जाने वाली जांच एजेंसी की साख और रसूख का सवाल है। नागेश्वर राव एक एडीजी स्तर के अधिकारी हैं। वे कार्यवाहक है और कार्यवाहक की तरह रहेंगे भी। मुझे नहीं लगता कि वे खुल कर इस बवाली तफ़्तीश में बहुत कुछ हाँथ डालेंगे।
राकेश अस्थाना जब सीबीआई में लाये गये  थे तब भी विवाद उठा था। उनकी नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गयी थी। उनके गुजरात मे नियुक्ति के दौरान उनके द्वारा तफ़्तीश कराए गए कुछ मामलों की निष्पक्षता पर भी सवाल उठे थे। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद मोदी और अमित शाह दोनों का करीबी समझा जाता है। ऐसी हालत में जब वे सीबीआई में आये तो कई मामलों में उनकी सहमति निदेशक से नहीं बनी। विवेचना के दौरान ऐसे मतभेद होते रहते हैं। पर जब विवेचना के दौरान दुर्भावना से जानबूझकर कर विवेचना की दिशा बदलने की कोशिश ज़िद में बदल जाती है तो विवाद होता है। सीबीआई में यही हुआ है। अगर कहीं राकेश अस्थाना के विरुद्ध आरोपों और शिकायतों की जांच शुरू हो गयी तो दिल्ली से गुजरात तक फैली साजिशों की पर्त दर पर्त उखड़ती जाएगी और फिर जो होगा वह भी सत्तर सालों में पहली बार ही होगा।
© विजय शंकर सिंह