हिंदुत्व की राह पर अरविंद केजरीवाल

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अरविंद केजरीवाल ने आज बयान दिया है कि “धर्मनगरी उतराखण्ड को विश्व भर के हिन्दुओं की आध्यात्मिक राजधानी बनायेंगे” उनके इस बयान ने कम से कम भाजपा के खेमें में ज़रूर खलबली मचा दी है। 2022 में होने वाले चुनावों की तैयारी में लगे हुए केजरीवाल ऐसे ही कुछ भी नहीं कहते हैं,वो बहुत ठहराव बरतते हुए बयान देंने वाले नेता हैं।

जब जब देश मे बीते 10 सालों में हुए सबसे कामयाब नेताओं की होती है तो उसमें नरेंद्र मोदी का नाम सबसे पहले आता है लेकिन जब भी ये परिणाम आते हैं तो एक सवाल उठना लाज़मी हो जाता है कि इस आकंलन का आधार क्या होता है? जैसे नरेंद्र मोदी के बड़े नाम को अगर गिनते हुए न देखा जाए और ये देखा जाए कि सबसे ज़्यादा जल्दी बड़ा नेता कौन बना है तो आपका जवाब क्या होगा?

मैं बता देता हूँ जवाब… अरविंद केजरीवाल,दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और संस्थापक,अब आप सोच रहे होंगे ऐसा क्यों? तो बताता हूँ। बीतें 9 सालों से सिर्फ 9 सालों से राजनीति में आये केजरीवाल ने दो बार ब्रांड,नाम और भारी भाजपा मशीनरी के सामने तमाम दावों को धता बता कर सरकार बनाई है। ये सब सिर्फ 9 सालों में हुआ है। इसके पीछे क्या वजह है आइये बताते हैं।

हनुमान चालीसा नेशनल टीवी पर गा चुके हैं।

2013,2015 और 2020 के तीनों चुनावों में केजरीवाल बिल्कुल प्योर घी की तरह प्योर नेता बन गए हैं। जहां वो 2015 में फ्री बिजली और पानी के नाम पर वोट मांग रहे थे,लेकिन 2020 में केजरीवाल भाजपा की पिच पर बेटिंग करने गए। इससे भी बड़ी बात ये है कि वो कामयाब हो कर बाहर आये। ऐसा ही कुछ वो उतराखण्ड मे आज़मा लेना चाहते हैं।

गौर करने वाली बात ये है कि जिस समय अरविंद केजरीवाल ने एक शो में नेशनल टीवी पर हनुमान चालीसा का गान किया उस समय दिल्ली के दूसरे बोर्डर पर शाहीन बाग का प्रोटेस्ट चल रहा था। ये अंतराष्ट्रीय बन चुका प्रोटेस्ट भी केजरीवाल को उस प्रोटेस्ट के पक्ष में बोलने को मजबूर नहीं कर सका। क्योंकि उन्हें ये पता था कि “मुसलमान” के पास और कोई ऑप्शन नही है वो उन्हें ही वोट करने वाले हैं।

वहीं उन्होनें 2019 के लोकसभा चुनावों के रिजल्ट आने के बाद ये समझ लिया था कि सिर्फ फ्री बिजली या 200 यूनिट फ्री कर लेने से ही उनके ख्वाबों को उड़ान नहीं मिल सकती है। उन्हें थोड़ा बदलाव करना ही होगा और ये केजरीवाल ने कर दिखाया। अनुच्छेद 370 के हटाये जाने का सबसे पहले समर्थन केजरीवाल ने किया, कोरोना वायरस के शुरुआती दौर ही में तबलीगी जमात पर एफआईआर करने की बात प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने खुद बोली थी। जो उनकी छवि को “अलग” करती है।

 

केजरीवाल का उत्तराखंड को लेकर बयान भी उनकी उसी नीति का हिस्सा है जो बहुसंख्यक वोटों को बहुत अच्छे से खुश करने की कोशिश है। अगर गौर करें तो केजरीवाल इसमें कामयाब भी हुए हैं।वो खुद को एक ऐसे नेता की तरह पेश करना चाहते हैं जो शिक्षा की बात करे,गरीबों की बात करे साथ मे वो खुद को “हिन्दू” भी कहे, यही वो करने की कोशिश कर रहे हैं।

उतराखण्ड पर क्यों है उनकी नज़र?

उतराखण्ड का इतिहास ये बताता है कि वहां के लोगों की स्थिति बिल्कुल वैसी है जैसी 2013 में दिल्ली की थी,कांग्रेस और भाजपा के अलावा तीसरा ऑप्शन नहीं होना केजरीवाल इसे ही तलाश रहे हैं। वहां आम आदमी पार्टी एक “कर्नल” को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाते हुए और पूरे राज्य की जनता को “विश्व भर के हिंदुओं की राजधानी” का नागरिक बता रहे हैं।

साथ मे फ्री 300 यूनिट और 20000 लीटर पानी जैसे वादे तो है ही जिन्हें इन सबके साथ मिलाने के बाद एक मजबूत और बड़ा ऑप्शन केजरीवाल और उनकी पार्टी राज्य के सामने रख रहे हैं जो कम से कम 1 बार तो उन्हें ये सोच लेने पर मजबूर कर ही देने वाला है।

क्या हो सकता है क्या नहीं?

जनता किसे चुनती है और किसे नहीं ये तय करेगी जनता ही,लेकिन इतना समझ लेना जरूरी है कि केजरीवाल की पार्टी को हल्के में लेना नुक़सान का सौदा होगा। इसके पीछे बड़ी वजह है एक नया ऑप्शन और दिल्ली का मॉडल जो नजरअंदाज करना बहुत मुश्किल काम है।

वहीं कांग्रेस का बहुत ज़्यादा मज़बूत न रह पाना और भाजपा में बढ़ती हुई गुटबाज़ी भी केजरीवाल देख रहे हैं और राज्य के लोगों को बता रहे हैं “आम आदमी पार्टी” उनके लिए नया ऑप्शन है। जिसे दिल्ली वाले आज़मा चुके हैं।

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