दुनिया भर में अबॉर्शन से जुड़े कानूनों पर विरोध हो रहा है

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औरत के लिए माँ बनना एक व्यक्तिगत फैसला होता है, ज़्यादा से ज़्यादा इस फैसले में उसके पति की सहमति या असहमति दर्ज होती है। लेकिन जब बात अबॉर्शन की यानी बच्चा गिराने की आती है तो यहाँ सिर्फ औरत या मर्द का फैसला मायने नहीं रखता। यहाँ मायने रखते हैं अबॉर्शन के लिए बने कानून, और अगर आपने कानून का उलंघन किया तो आपको भारी भरकम सज़ा झेलनी पड़ सकती हैं।

दुनिया के अधिकतर देशों में अबोर्शन को लेकर अलग अलग कानून हैं, किसी में बहुत ज़्यादा कठोर हैं तो कहीं रिलेक्सेशन के साथ हैं, लेकिन हैं। हाल फिलहाल में कई देशों में इस कानून में बदलाव किए गए हैं, जिनमे भारत भी शामिल है। लेकिन पॉलिश देश पोलैंड में इस कानून में ऐसा संशोधन किया गया है जिसके विरोध में महिलाए सड़को तक आ गयी हैं। ऐसा क्यों हैं और कानून में क्या बदलाव किए गए हैं, जानिए…


पोलैंड में अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरी महिलाएं :

इसी साल सितंबर महीने में पोलैंड के शहर pszczyna के pszczyna काउंटी अस्पताल में एक 30 साल कि महिला की मौत हो गयी। महिला 22 हफ्ते की प्रेग्नेंट थी और फिट्स डिफेक्ट से ग्रसित थी। पोलैंड के विवादित गर्भपात कानून के चलते डॉक्टरों ने लापरवाही बरती जिसके कारण 30 वर्षीय izabela की मौत हो गयी। हालांकि, izabela के परिवार ने izabela की मौत और मौत के कारण को नवम्बर महीने में सार्वजनिक किया।

पोलैंड में गर्भपात कानून को लेकर 2020 में हुए विरोध की तस्वीर (तस्वीर : विकिपीडिया)

इसके बाद से पोलैंड की सड़कों पर महिलाएं अपने मूल अधिकारों और मानवाधिकार को सुरक्षित रखने के लिए सरकार के विवादित गर्भपात कानून का विरोध कर रही हैं। मालूम हो कि कानून में संशोधन के दौरान भी विरोध किया गया था। लेकिन कुछ समय बाद माहौल ठंडा हो गया है और विरोध भी ठंडे बस्ते में चला गया। लेकिन इस कानून के कारण izabela की मौत ने सबको सोचने पर मजबूर किया है।

क्या कहता है पोलैंड का विवादित कानून :

बीते साल अक्टूबर 2020 में पोलैंड के कांस्टीट्यूशनल ट्रिब्यूनल ने अबॉर्शन से जुड़े कानून में बदलाव किया। बदलाव ये था कि फिट्स डिफेक्ट वाली प्रेग्नेंसी को खत्म करना अब असंवैधानिक करार दिया जाएगा। यानी कोई भी प्रेग्नेंट महिला जिसके फिट्स (भ्रूण) में डिफेक्ट हो वो अबॉर्शन नहीं करवा सकती। अगर करवाती है तो अबॉर्शन करवाने वाले और करने वाले दोनों को दंडित किया जाएगा।
इस कानून में ये भी सुनिश्चित किया गया, की महिलाओं का गर्भपात सिर्फ़ दो स्थितियों में हो सकता है। पहला माँ की जान या स्वास्थ्य को बचाने के लिए, दूसरा रेप या इन्सेस्ट के मामले में ।

महिला की मौत पर सरकार की सफाई :

समाचार वेबपोर्टल दी क्विंट के मुताबिक, पोलैंड के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 7 नवम्बर को अपना बयान जारी करते हुए कहा, की माँ की जान को खतरा होने पर कानून इसकी इजाजत देता है कि अबॉर्शन किया जाए। इस मामले में डॉक्टरों को स्पष्ट फैसला लेने से डरना नहीं चाहिए। वहीं रॉयटर्स के मुताबिक, पोलैंड के प्रधानमंत्री mateusz morawiecki ने पूरे मामले पर कहा, ” जब माँ के जीवन या स्वास्थ्य की बात आती है, और वो खतरे में है तो प्रेग्नेंसी को खत्म किया जा सकता है”

हालांकि, पोलैंड के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों को देखा जाए तो, हर साल पोलैंड में होने वाले 1,100 गर्भपात में से 98 प्रतिशत फिट्स डिफेक्ट यानी भ्रूण में कमी के मामले होते हैं। एक्सपर्ट का मानना है कि भले ही गर्भपात को लेकर कानून हैं, लेकिन डॉक्टर फिर भी अबॉर्शन करने से डरते हैं। जिसका कारण है, अबॉर्शन के बाद पता चलता है कि मां की जान को खतरा नहीं था लेकिन अबॉर्शन किया गया तो उन्हें 3 साल की सज़ा हो सकती हैं।


बात, भारत में अबॉर्शन कानून में हुए बदलाव की :

भारत में गर्भपात को लेकर पहला कानून 1971 में बना था, इसे MTP एक्ट कहा जाता है। जिसका पूरा नाम है medical termination pregnency ect 1971 है। इसी कानून के मुताबिक, किसी भी अस्पातल में एक सर्टिफाइड डॉक्टर अबॉर्शन कर सकता है। लेकिन इसके लिए स्थिति निश्चित थी, जैसे…

– प्रेग्नेंट लेडी को अगर सीरियस फिजिकल या मेंटली इंजरी है तो अबॉर्शन हो सकता है।

– महिला को कोई जैनेटिक बीमारी है, जो खतरनाक है और बच्चे में भी आ सकती है। ऐसे में अबॉर्शन किया जा सकता है।

– प्रेग्नेंट महिला गरीब है और बच्चे को नहीं पाल सकती।

– सीरियस फिजिकल या मेंटली इंजरी है जो अबॉर्शन न करने पर बढ़ सकती है।

– रेप से प्रेग्नेंट हुई हैं और बच्चे को नहीं चाहती।

फ़ोटो साभार : istock

दी लल्लनटॉप के मुताबिक, मार्च 2021 में इस कानून में बड़े बदलाव हुए हैं, ये बदलाव उन स्थितियों में हुए हैं जिनके आधार पर अबॉर्शन किया जाएगा। ये बदलाव हैं..

– पहले जहां अबॉर्शन 20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में करवाया जा सकता था वहीं अब इसे बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया है। लेकिन इसकी स्थिति ये है कि महिला की प्रेगनेंसी रेप से हो या उसका मैरिटल स्टेटस बदला हो।

– कॉन्ट्रासेप्टिव यूज़ करने के बाद भी प्रेग्नेंट होने वाली महिलाएं अब प्रेग्नेंसी खत्म कर सकती हैं चाहे वो मैरिड हो या अनमैरिड।

– वहीं एक और बदलाव किया गया है जो विवाद का कारण बन गया है। दरअसल अब अगर किसी की प्रेग्नेंसी के दौरान पता चलता है कि बच्चा फिजिकली डिसेबल है तो अबॉर्शन किया जा सकता है, इसके लिए कोई समय सीमा नहीं हैं।

– इस मामले में 1971 का MTP एक्ट (संशोधित) यह सुनिश्चित करेगा कि महिला की निजता बरकरार रहे।

कानून का विरोध क्यों हो रहा है :

अमेरिका के टेक्सास शहर में लागू गर्भपात कानून में एक विवादित बात ये है कि सिर्फ 6 हफ़्तों के भीतर अबॉर्शन करवाया जा सकता है, हालांकि एक्सपर्ट इसका विरोध कर रहे हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है शुरुआती 6 हफ़्तों में अधिकतर महिलाओ को ये पता ही नहीं होता कि वो प्रेग्नेंट हैं।

पोलैंड के एक शहर में गर्भपात कानून का विरोध (तस्वीर : विकिपीडिया)

वहीं भारत की बात करें तो एक्सपर्ट्स का कहना है कि MTP एक्ट सुप्रीम कोर्ट के राइट टू प्राइवेसी को फंडामेंटल करार देने पर खरा नहीं उतरता। भारत में अधिकतर महिलाएं इन कानूनों की झंझट से बचने के लिए किसी प्राइवेट क्लीनिक या झोलाछाप डॉक्टर से अबॉर्शन करवा लेती हैं और इसका खामियाजा बाद में भुगतना पड़ता है। दी लल्लनटॉप ने हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर के 2015 के डेटा के आधार पर लिखा है कि, भारत में 56 फीसदी अबॉर्शन अनसेफ हैं। जिसके कारण हर रोज़ 10 महिलाओं की मौत हो जाती है।


इन देशों में हैं गर्भपात को लेकर कानून :

सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, भारत, रूस, चीन, जापान, ईरान और अमेरिका सहित दुनिया के अधिकतर देशों में अबॉर्शन को लेकर कानून हैं। दी क्विंट के मुताबिक, जापान का कानून अन्य देशों की तुलना में अलग है। जापान में केवल 21 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में अबॉर्शन को मंजूरी है, वहीं अबॉर्शन से पहले बच्चे के पिता की सहमति ज़रूरी है। ईरान की बात करें तो 16 नवम्बर 2021 को UN के विशेषज्ञों ने ईरान के “एंटी अबॉर्शन लॉ” को निरस्त करने का आवाहन किया है। UN का कहना है कि ये कानून महिलाओं को वैश्विक स्तर पर मिले मानवाधिकारों का उलंघन हैं।

वहीं UN के 2019 में जारी किए गए एक डेटा के मुताबिक, कई ऐसे देश हैं जहां महिला की रिक्वेस्ट पर अबॉर्शन किया जाता है। जहाँ मैटरनल मोरैलिटी न के बराबर हैं। इन देशों में नेपाल, चीन, तजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, वियतनाम, थाइलैंड और कंबोडिया समेत 73 देश हैं।