वो खत जिसे पढ़कर मुहम्मद बिन क़ासिम ने हिंदुस्तान का रुख किया था

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मुहम्मद बिन क़ासिम एक उमय्यद ख़िलाफ़त के दौर में फौजी सलाहियत भरपूर नौजवान था। जिसे गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफ़ ने सिंध के राजा दाहिर के चंगुल से कुछ अरब नौजवानों को बचाने भेजा था। अरब इतिहासकार लिखते हैं, कि अरबों के व्यापारिक जहाज़ जब भारत के दक्षिणी हिस्से में व्यापार करने के लिए माल लेकर जाते थे तो अरब सागर में समुद्री लुटेरों के ज़रिए राजा दाहिर उन जहाज़ों को लुटवा देता था। जिससे अरब व्यापारी बेहद परेशान थे। ऐसे में एक अरब व्यापारी अबुलहसन की लड़की नाहिद और उसके भाई को लुटेरों ने अगवा किया और वो राजा दाहिर की जेल में पहुंच गए। किसी तरह वो दोनों राजा दाहिर की कैद से बाहर निकलने में कामयाब हुए और फ़िर नाहिद ने एक ख़त गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफ़ को लिखा।

यह ख़त अबुल हसन की बेटी नाहिद ने सिंध से एक सफ़ेद रुमाल पर अपने खून से हज्जाज़ बिन यूसुफ के लिए लिखा था और क़ासिद से कहा था।“अगर हज्जाज़ बिन युसुफ़ का खून मुंजमद हो गया हो तो मेरा ये खत पेश कर देना वरना इसकी ज़रूरत नहीं है”

हज्जाज़ बिन यूसुफ़ ने खत की चंद लाईन पढ़कर कंपकपा उठा और उसकी आंखों के शोले पानी में तब्दील होने लगे, उसने रुमाल मुहम्मद बिन क़ासिम के हाथों में दे दिया, मुहम्मद बिन क़ासिम ने शुरू से लेकर आखिर तक लिखे अल्फ़ाज़ पढ़ा, उसमे लिखा था।

“मुझे यक़ीन है कि वालि-ए-बसरा क़ासिद की ज़बानी मुसलमान बच्चों और औरतों का हाल सुनकर अपनी फ़ौज के गय्यूर सिपाहियों को घोड़ों पर ज़िनें डालने का हुक्म दे चुका होगा और क़ासिद को मेरा ये खत दिखाने की जरूरत पेश नहीं आएगी। अगर हज्जाज़ बिन युसुफ़ का खून मुंजमद हो चुका है तो शायद मेरी तहरीर भी बेसूद साबित हो, मैं अबुल हसन की बेटी हूं मैं और मेरा भाई अभी तक दुश्मन के दस्तरस से महफूज़ हैं, लेकिन हमारे साथी एक ऐसे दुश्मन की कैद में है जिसके दिल में रहम के लिए कोई जगह नहीं है।

क़ैदख़ाने की इस तारीक कोठरी का तस्व्वुर कीजिए, जिसके अंदर असीरों के कान मुजाहिदीन-ए-इस्लाम के घोड़ों की टापूँ की आवाज़ सुनने के लिए बेकरार हैं। ये एक मोअजज़ा था कि मैं और मेरा भाई दुश्मन के क़ैद से बच गए थे, लेकिन हमारी तलाश जारी है और मुमकिन है, हमें भी किसी अंधेरी कोठरी में फेंक दिया जाए। मुमकिन है कि इससे पहले मेरा ज़ख़्म मुझे मौत की नींद सुला दे और मैं इबरतनाक अंजाम से बच जाऊं, लेकिन मरते वक़्त मुझे इस बात का अफ़सोस होगा कि, वो सबा रफ्तार घोड़े जिनके सवार तुर्किस्तान और अफ्रीक़ा के दरवाज़े खटखटा रहे हैं, अपनी कौम की यतीम और बेबस बच्चों की मदद को ना पहुंच सके, क्या ये मुमकिन है कि वो तलवार जो रोम और ईरान के मफदूर ताजदारों के सिर पर साबक़ा बनकर कौंधी, सिंध के मग़रूर राजा के सामने कुंद साबित होंगी?

मैं मौत से क़त्तई नहीं डरती लेकिन ऐ हज्जाज़ अगर तुम जिंदा हो तो अपनी ग़य्यूर क़ौम के यतीमों और बेवाओं की मदद को पहुंचो।

~ नाहिद एक ग़य्यूर क़ौम की बेबस बेटी

यह खत कई अरब इतिहासकारों ने अपनी किताबों में पेश किया है, जिसकी मूल भाषा अरबी है। इस खत को पढ़ने के बाद 17 साल की उम्र के मुहम्मद बिन कासिम की सिपहसालारी में हज्जाज बिन यूसुफ़ ने सिंध के राजा दाहिर के ख़िलाफ़ फौजी लश्कर लेकर हमलावर हुआ और राजा दाहिर को शिकस्त दी । इस मौके पर सिंध की अवाम भी मुहम्मद बिन क़ासिम के साथ हो चली थी। क्योंकि राजा दाहिर के ज़ुल्मों सितम से सिंध की अवाम परेशान थी। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सालों से राजा के ज़ुल्म व सितम से सिंध की अवाम को निजात मिली थी ।