Share

नज़रिया – डरी हुयी सरकार

by Vijay Shanker Singh · January 2, 2020

पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश, एक ही वतन और एक ही बदन के दो हिस्से थे, अब तीन हैं। 1947 का बंटवारा, एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक भूल, राजनीतिक महत्वाकांक्षा, पागलपन भरे दौर, और अंग्रेजों की साज़िश का दुष्परिणाम था। यह बंटवारा मुझे फ़र्ज़ी, अतार्किक और बनावटी लगता है।
लेकिन इधर कुछ बड़ी सकारात्मक चीज़े हुयी हैं। पाकिस्तान के छात्रों ने लाहौर यूनिवर्सिटी में बिस्मिल का गीत, ‘ सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है ‘ गाया और भारत मे आईआईटी कानपुर के छात्रों ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का ‘ हम देखेंगे।’ ढाका में रवींद्रनाथ टैगोर तो गाये ही जाते हैं, कोलकाता की सड़कों पर काजी नज़रुल इस्लाम गूंजते हैं।
पर साहित्य, भाषा, प्रतीक, कथ्य, शिल्प की समझ न हो तो बड़ी असहज स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यही हुआ कानपुर के आईआईटी में। हम देखेंगे के कुछ अंश में इस्लाम को ढूंढा गया और उसे हिंदू विरोधी मान लिया गया। एक प्रोफेसर साहब का धर्म प्रेम फड़क उठा और उन्होंने शिकायत कर दी। जब शिकायत हुयी तो जांच बैठ गयी। बेचारे फ़ैज़, जिया ने उन्हें इस्लाम विरोधी समझ कर जेल में डाल दिया, इधर उन पर हिंदू विरोध का इल्जाम आयद है।
सरकार में आपराधिक मानसिकता के और फ़र्ज़ीवाड़े करने वाले लोग बैठे हैं। न उन्हें अर्थनीति की समझ है, न देश के इतिहास, सभ्यता और संस्कृति और बहुलतावादी सोच की। हर निर्णय घृणावाद से प्रेरित है, श्रेष्ठतावाद से संक्रमित है। आज फ़ैज़ के कलाम की तफतीश हो रही है, कल भगत सिंह के भाषणों में धर्म ढूंढा जाएगा। फिर गांधी को दरकिनार करने की कोशिश की जाएगी । जब गुलामी पसंद मुखबिर राज करेंगे तो, मूढ़ता का यह सन्निपात बढ़ेगा ही, कम नहीं होगा।

कानपुर आईआईटी के इस तमाशे पर फिर से फ़ैज़ याद आ गये और उनका यह शेर भी,

वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है”
( फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ )

© विजय शंकर सिंह

Browse

You may also like