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पुलवामा हमला – सवाल ये होना चाहिये कि सुरक्षा में चूक कहाँ हुई?

by Majid Majaz · February 15, 2019

एक तरफ जहाँ पूरे देश में पुलवामा में शहीद हुये जवानों की शोक की लहर उमड़ पड़ी है, हर किसी के आँख में आँसू है। तो दूसरी तरफ चंद ज़ाहिल लोग इसमें साम्प्रदायिकता का एंगल निकाल कर समाज को तोड़ने का खेल शुरू कर दिए हैं। टीवी स्टूडीयो में बैठा हुआ एंकर एक तरफ़ से गुंडागर्दी का खेल खेल रहा है तो दूसरी तरफ डिजिटल प्लेटफ़ार्म पे फ़र्ज़ी विडियो, फ़ोटोशोप इमेज, धार्मिक विद्वेष के ज़रिए नफ़रत का व्यापार बढ़ाना शुरू हो चुका है।
कोई पूरे कश्मीर को ज़िंदा जला देने की बात कर रहा है तो कोई स्टूडीयो में बैठकर पाकिस्तान को जहन्नुम बना रहा है। कोई इसी बहाने मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रहा है। नफ़रत के इस खेल में कौन नहीं शामिल है इस वक़्त। एक नागरिक की तरह ठहर कर सोचने की बजाय एटम बम से उड़ा देने की बात हर कोई करने लगा है। क्या संघी, क्या समाजवादी, क्या लिबरल और क्या सेक्युलर।
यही नहीं कुछ लोग शहीदों के लिस्ट में लोग जाति और धर्म के हिसाब से भी देख रहे हैं। शर्म करो यार.
क्या जज़्बात के सहारे ही तमाम फैसले होंगे? हम कब ठहर कर सोचेंगे कि इतनी भारी सुरक्षा चूक हुई कैसे? जिस जगह पर लोग अपने घर से बाहर निकलते हुये अपना आईकार्ड हर गली में दिखाते हुये आगे बढ़ते हैं वहाँ 350 किलो विस्फोटक पहुँचा कैसे? जिन सड़कों पर हर किलोमीटर पर सुरक्षा का गहरा पहरा होता है वहाँ इतने बड़ी संख्या में कैसे कोई विस्फोटक ले जाने में कामियाब हुआ? जो कश्मीर दुनिया का सबसे बड़ा मिलिट्री अधिकृत क्षेत्र है वहाँ इतनी आसानी से इतनी भयावह हमले को कोई अंजाम कैसे दे दिया?
बाक़ी अगर आपको इस हमले में धर्म का एंगल देखकर गाली देना है, सबको खत्म करने की बात करनी है तो आइए खत्म कर दीजिए उस क़ौम को भी जिसने छत्तीसगढ़, बंगाल, मध्यप्रदेश से लेकर झारखंड तक में नक्सली हमले के ज़रिए हज़ारों की संख्या सुरक्षा बल के जवानों का क़त्ल ए आम किया है। खत्म कर दीजिए उस क़ौम को भी जिसने मार्टिन लूथर किंग को मारा है, जिसने महात्मा गांधी को मारा था। उस क़ौम को भी खत्म कर दीजिए जिसने बर्मा में लाखों लोगों का नरसंहार किया है, जिसने परमाणुबम के ज़रिए लाखों लोगों को मारा है। आइए उस क़ौम का सफ़ाया का कर देते हैं जिसकी हिंसा का इतिहास बाबरी से लेकर दादरी तक है। आइए उस उस क़ौम को भी खत्म कर देते हैं जो 1984 में सिखों के नरसंहार से लेकर भागलपुर, मेरठ, गुजरात, मुज़फ़्फ़रनगर तक शामिल हैं। आइए खत्म कर दीजिए इंसानियत को, बस जश्न मनाइए मानवता पर इस क्रूर हमले का।

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