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सम्पूर्ण भारत को शिक्षित देखन चाहते थे "डॉ ज़ाकिर हुसैन"

by Durgesh Dehriya · February 9, 2018


डॉ ज़ाकिर हुसैन स्वतंत्र भारत के तीसरे राष्ट्रपति थे. उनका अधिकांश जीवन शिक्षा को समर्पित रहा. सम्पूर्ण भारत को शिक्षित देखना उनका स्वप्न रहा है. वे पद्म विभूषण और भारत रत्न से सम्मानित किये गए. अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर उन्होंने एक शिक्षक से लेकर राष्ट्रपति जैसे उच्च पद तक का सफर तय किया. भारतीय राजनीति और शिक्षा के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.
डॉ जाकिर हुसैन का जन्म आज ही के दिन 8 फरवरी, 1897 को हैदराबाद आंध्रप्रदेश के सभ्रांत परिवार में हुआ था.शिक्षा के प्रति लगाव उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला था. पिता ने भी कानून के क्षेत्र में अपनी अच्छी जगह प्राप्त की थी.शिक्षा के महत्व को वे भली-भांति जानते थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा इस्लामिया हाई स्कूल, इटावा में हुई. फिर कानून की पढ़ाई के लिए
मोहम्डन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में दाखिला लिया.यहाँ से M.A. करने के बाद हुसैन जर्मनी चले गए. जर्मनी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पी.एच.डी की डिग्री प्राप्त की. वे एक प्रतिभाशाली छात्र के साथ-साथ एक कुशल वक्ता भी थे.

1927 में जब वह भारत लौटे उस समय जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी जिसकी नींव उन्होंने जर्मनी जाने से पहले खुद रखी थी, अब बंद होने के कगार पर थी.तब उन्होंने इसे बंद होने से रोकने और इसकी दशा सुधारने के लिए इसका पूर्ण संचालन अपने कंधो पर ले लिया. अगले 20 वर्षों तक उन्होंने इस संस्थान को बहुत अच्छे ढंग से चलाया. अंग्रेजों के अधीन भारत में इस यूनिवर्सिटी ने अपना एक अलग ही मुकाम बनाया. डॉ. हुसैन एक व्यावहारिक और आशावादी व्यक्तित्व के इंसान थे. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें जामिया मिलिया इस्लामिया का उपकुलपति बना दिया गया. 1926-1948 तक वे जामिया मिलिया इस्लामिया के उपकुलपति रहे. कई विश्वविद्यालयों ने इन्हें डी.लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया.

शिक्षा से गहरे लगाव रखने वाले जाकिर साहब को गांधी जी ने 1937 में शिक्षा के राष्ट्रीय आयोग का अध्यक्ष बनाया था. जिसका उद्देश्य गांधीवादी पाठ्यक्रम बनाना और बुनियादी विद्यालयों की नींव डालना था.

डॉ.जाकिर हुसैन अक्सर अपने छात्रों से साफ-सुथरे कपड़े पहन कर पढ़ने के लिए आने को कहते. साथ ही छात्रों से जूते भी ठीक से पॉलिश करने को कहते.एक बार जब छात्रों ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने गांधीवादी तरीका अपनाया और उसका भारी असर पड़ा.
डॉ.जाकिर हुसैन जब जामिया मिलिया इस्लामिया के उपकुलपति थे तब एक दिन वे कॉलेज  के गेट पर ब्रश और बूट पॉलिश लेकर बैठ गए. वे आने-जाने वाले छात्रों के जूते पॉलिश करने लगे. कुछ देर तक उन्होंने किया फिर तो छात्र शर्मिंदा हो गए और उन लोगों ने अपने उपकुलपति से माफी मांगी.
जाकिर साहब 1948 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भी उपकुलपति बने.वे सन 1956 तक उस पद पर रहे. अलीगढ़ विश्वविद्यालय पहले मोहम्डन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज कहा जाता था जब जाकिर साहब वहां छात्र थे. तभी एक बार गांधी जी ने वहां छात्रों-अध्यापकों को संबोधित किया था. गांधी जी ने कहा था कि भारतीयों को ऐसी शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार करना चाहिए जिन पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण है. इसका असर जाकिर हुसैन पर भी पड़ा.
1948 में नेहरूजी ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया.1955-1957 तक वे जिनेवा में सभापति रहे. 1956 में वे राज्यसभा अध्यक्ष बने. करीब एक वर्ष बाद ही 1957 में वह बिहार राज्य के गवर्नर नियुक्त हुए और राज्यसभा की सदस्यता त्याग दी. उन्होंने इस पद पर 1962 तक कार्य किया.1962 में वह देश के उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए. 1967 मे भारत के तीसरे राष्ट्रपति बने.

डॉ. हुसैन भारत में शिक्षा सुधार को लेकर हमेशा तत्पर रहे. अपनी अध्यक्षता में इन्होंने विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग को शिक्षा का स्तर बढ़ाने के उद्देश्य से गठित भी किया. 1954 मे डॉ हुसैन को पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. 1963 में भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया. डॉ हुसैन साहित्य एवं कला प्रेमी थे. शिक्षा के क्षेत्र के अलावा एक राजनेता के रूप मे भी उनके कार्य सदैव याद किये जाते है. उन्होंने धर्मनिरपेक्षता और उदारवादी राष्ट्रवादिता  के सिद्धांतों को व्यव्हारिक रूप प्रदान किया है.
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डॉ हुसैन ने बहुत सी किताबें भी लिखीं हैं. जिसमें  सबसे अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की केपेतिलिज्म, स्केल एंड मैथड्स ऑफ़ इकोनोमिकस, शहीद की अम्मा, अंधा घोडा आदि. उन्होंने प्लेटो की प्रसिद्ध पुस्तक “रिपब्लिक” का भी उर्दू अनुवाद किया था. अपने अंतिम समय में वे रिपब्लिक का हिंदी में अनुवाद करवा रहे थे. उनके अनुवाद पर तब एक विद्वान ने टिप्पणी की थी कि यदि खुद प्लेटो को उर्दू में रिपब्लिक लिखनी होती तो वे भी वैसे ही लिखते जैसा जाकिर साहब ने अनुवाद किया है.
3 मई, 1969 को डॉ.जाकिर हुसैन का असमय देहांत हो गया. वह भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनकी मृत्यु अपने कार्यालय में हुई. उनको जामिया मिलिया इस्लामिया के परिसर में ही दफनाया गया. असमय देहावसान के कारण वह अपना कार्यकाल नहीं पूरा कर सके.
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खुर्शीद आलम खान जाकिर हुसैन के दामाद थे. कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद, खुर्शीद आलम खान के पुत्र हैं. जाकिर हुसैन अपने दामाद को हर ईद पर ईदी के रूप में एक छोटी रकम देते थे. एक बार उनसे कहा गया कि महंगाई बढ़ रही है, ईदी बढ़ा दीजिए. इस पर जाकिर साहब ने कहा कि मैं तो इतना ही दूंगा.
बुनियादी शिक्षा की जो कल्पना गांधी की थी, उसका क्रमिक विकास जाकिर हुसैन ने किया. जामिया मिलिया इस्लामिया को उन्होंने इसका एक नमूना बनाया था. सन 1967 में राष्ट्रपति बनने के बाद डॉ. हुसैन ने कहा कि देशवासियों ने इतना बड़ा सम्मान उस व्यक्ति को दिया है जिसका राष्ट्रीय शिक्षा से 47 वर्षों तक संबंध रहा. मैंने अपना जीवन गांधी जी के चरणों में बैठकर शुरू किया जो मेरे गुरु और प्रेरक थे.

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