व्यक्तित्व – राम विलास पासवान जिन्हें मोदी अपना दोस्त कहते थे

Share

बिहार नगीनों की धरती रही है इस जमीन ने देश और विदेश में इस जमीन का नाम रोशन करने वाले हज़ारों ऐसे नामों को जन्म दिया है जिनका जलवा आज तक क़ायम है,उन्हीं में से एक नाम हैं राम विलास पासवान,जिनका निधन पिछले साल 20 अक्टूबर को हुआ,लेकिन उन्हें याद हमेशा याद रखा जाएगा।

1969 में विधानसभा,1975 में जेल और 1977 में संसद भवन

बिहार के खगड़िया में आज ही दिन 5 जुलाई को जन्में राम विलास पासवान उन नेताओं में से एक थे जिन्हें राजनीति का जादूगर कहा जाता है,1969 में मात्र 23 साल की उम्र ही में वो विधानसभा सदस्य हो गए थे,लेकिन जेपी के आंदोलन के रंग में रंगे पासवान को 1975 की इमरजेंसी में जेल जाना पड़ा था।

लेकिन वो बिहारी ही क्या जो सबको मात न दें,1977 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ें पासवान साहब ने 2 साल की जेल के बाद वो हाजीपुर से लोकसभा चुनाव लड़ें और जीतें और जीत भी कोई ऐसी वैसी नहीं थी,रिकॉर्ड तोड़ जीत थी।

इस चुनाव में पासवान ने जीत के साथ ही अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराया था क्यूंकि उन्होंने ये चुनाव 4,24 हज़ार वोटों से जीत कर इतिहास रच दिया था,उनके खिलाफ चूनाव लड़ रहे उम्मीदवार को सिर्फ 8 फीसदी वोट ही मिल पाए थे और वो 80 फीसदी वोट लाये थे।

कुल 6 प्रधानमंत्रियों के सहायक रहें..

राम विलास पासवान को “राजनीतिक जादूगर” और “मौसम वैज्ञानिक” कहा जाता था,वो राजनीति के आने वाले माहौल को आसानी से भांप लिया करते थे,2014 के चुनावों से पहले कांग्रेस और लालू को चौंकाते हुए उन्होने बहुत आसानी से नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था।

ये फैसला हैरान करने वाला इसलिए था, क्योंकि गुजरात नरसंहार के बाद पासवान केबिनेट मिनिस्ट्री छोड़ आये थे और उसकी वजह नरेंद्र मोदी ही थे,इसी तरह जब वाजपेयी सरकार में वो मंत्री बने थे तो भी इस फैसले ने सभी को चौंका दिया था,और ये कोयला मंत्री बनें थे और फिर 2004 के चुनावों के समय भाजपा का साथ एक बार फिर से कांग्रेस के साथ चले गए थे।

वहीं एचडी देवगौड़ा,इंद्र कुमार गुजराल और मोरारजी देसाई के साथ भी राम विलास पासवान केंद्रीय कैबिनेट में रहे थे,ये भी अपने आप मे एक बड़ा रिकॉर्ड है,जो आज तक नहीं टूट पाया है और शायद ही टूट पाए, क्यूंकि राजनीतिक माहौल को इतनी बारीकी से भांप लेने वाले नेता अब नज़र नहीं आते हैं।

बिजनोर (उत्तर प्रदेश) से संबध रहा है..

1985 में बिजनोर लोकसभा में उपचुनाव हुआ था,वहां से कांग्रेस की दिग्गज नेता मीरा कुमार चुनाव लड़ रही थी,जो बाबू जगजीवन राम जैसे दिग्गज नेता की बेटी थी,और दूसरी तरफ कम उम्र और नई नई बनी पार्टी की नेता बहन मायावती थी जो निर्दलीय चुनाव लड़ रही थी।

राम विलास पासवान यहां बहुत मजबूती से अपना हाथ आज़मा रहे थे,हालांकि राम विलास पासवान ये चुनाव हार गए थे,लेकिन उन्होने दूसरे राज्य की सुरक्षित सीट से चुनाव लड़कर भी सिर्फ 5 हज़ार वोटों ही चुनाव हारे थे,और उन्होंने ये स्थापित कर दिया था कि राजनीति के दलित नामों में वो बड़ा नाम हैं।

नहीं बन पाए बिहार के मुख्यमंत्री..

ये बात कम ही लोग जानते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार,लालू प्रसाद यादव और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के साथ ही राम विलास पासवान ने अपनी राजनीतिक लोहिया के पदचिन्हों पर चल कर राजनीति शुरू की थी।

लेकिन ये तीनो ही बिहार के मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री बन गए मगर राम विलास पासवान कभी भी इस पद तक नहीं पहुंच पाए और ये कमी खुद उन्होंने भी महसूस की थी।

क्यों याद किया जाए राम विलास पासवान को.

रामविलास पासवान को इसलिए याद किया जाना चाहिए कि उन्होंने अपने समाज के लिए और उसके नेतृव को हमेशा प्राथमिकता दी,और बिना किसी डर और झिझक किये हुए।

इस सबके साथ राजनीति में बड़े बड़े बदलाव करते हुए उन्होंने ऐतिहासिक फैसले लिए और अपने नाम कई बड़े रिकॉर्ड भी किये थे।