नज़रिया- यह बंगाल की अस्मिता पर हमला है

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कल अमित शाह जब मध्य कोलकाता के धर्मतल्ला से उत्तरी कोलकाता में विवेकानंद के निवास तक ‘जय श्री राम’ के उद्घोष के साथ रवाना हुए उसी समय यह साफ़ नजर आ रहा था कि यह चुनावी रोड शो नहीं, बंगाल के खिलाफ भाजपा का एक रण-घोष है । बंगाल की संस्कृति को पैरों तले रौंद डालने की धृष्टता का ऐलान है । जेएनयू, हैदराबाद विश्वविद्यालय सहित देश के सभी शिक्षा प्रतिष्ठानों में पिछले पाँच साल से जिन अपढ़ गुंडों ने उपद्रव मचा रखा हैं, वे संगठित होकर देश की सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता के मान-सम्मान को कुचलने के लिये उतर पड़े हैं ।
ऐसा लगता है कि अमित शाह ने जान-बूझ कर कोलकाता के प्राण-स्थल कालेज स्ट्रीट के क्षेत्र को पदाघात के लिये चुना है ताकि एक ही वार में बंगाल की अस्मिता को कुचल कर ख़त्म कर दिया जाए । भगवा गुंडों का तांडव कोलकाता विश्वविद्यालय से शुरू हुआ और इसने खास निशाना बनाया प्राचीन विद्यासागर कालेज को। वहाँ पथराव, आगज़नी के साथ ही उनका प्रमुख निशाना था, भाजपाइयों का चक्षुशूल, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की मूर्ति । उस मूर्ति को कुछ उसी प्रकार के रोष के साथ तोड़ा गया जिसका परिचय उन्होंने कभी अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ढहाते वक़्त दिया था । बाबरी मस्जिद को वे अपनी ग़ुलामी का प्रतीक मानते थे और शिक्षा और संस्कृति को अपनी सनातन आदिमता का दुश्मन । मोदी ने कई बार आधुनिक शिक्षा के प्रति अपनी घृणा को नाना प्रकार से व्यक्त किया है । उनके भक्तों ने आज बंगाल और कोलकाता में शिक्षा के प्रांगण में अपनी उसी नफ़रत का नग्न नृत्य किया ।
कहना न होगा, कोलकाता में कल अमित शाह और उनके लोगों ने भारत की राजनीति के एक और शर्मनाक अध्याय की रचना की है ।
राज्य की मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया है कि अमित शाह के साथ लगभग पंद्रह हज़ार लोगों की जो भीड़ थी उनमें बड़ी संख्या में बग़ल के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के अलावा सुदूर राजस्थान से बटोर कर लाये गये लोग भी शामिल थे । यदि मुख्यमंत्री के इस आरोप में जरा भी सचाई है तो कहना होगा, यह प्रथम तो बंगाल पर किये गये एक बाहरी आक्रमण का प्रतीक, मोदी की राजनीति के खास गुजराती मॉडल की पुनरावृत्ति है जिसमें ऐन चुनाव के वक़्त वे वाराणसी को गुजरात से लाये गये लोगों से पाट देते रहे हैं । दूसरा, मुख्यमंत्री के इस कथन में बंगाल में आगे तीव्र प्रादेशिक उत्तेजना के एक ऐसे नये दौर के सूत्रपात के संकेत भी छिपे हैं जो सालों से इस प्रदेश में बने हुए मज़बूत प्रादेशिक भाईचारे की जड़ों को हिला सकते हैं।
मोदी-अमित शाह ने भारत के कोने-कोने में अभी जिस तरह सभी प्रकार के विभाजनकारियों से हाथ मिला कर अलगाववाद की आग सुलगा रखी है, लगता है उन्होंने बंगाल को भी उसी की चपेट में लेने की एक योजना बना ली है ।
बहरहाल, 19 मई को बंगाल में चुनाव का आख़िरी चरण है जिसमें कोलकाता और निकटवर्ती उत्तर और दक्षिण 24 परगना ज़िलों की 9 सीटों का मतदान होना है । इसके पहले ही भाजपा की इस गुंडागर्दी ने इस पूरे क्षेत्र में उसके खिलाफ जिस ग़ुस्से और आक्रोश को जन्म दिया है, उसकी साफ़ छाप मतदान में देखने को मिलेगी ।
आज कोलकाता और पूरे बंगाल में ममता बनर्जी ने इस गुंडागर्दी के प्रतिवाद में भारी प्रदर्शन का ऐलान किया है। इसी प्रकार वामपंथियों और कांग्रेस ने भी कोलकाता सहित पूरे प्रदेश में बंगाल के शिक्षा क्षेत्र और बंगाल की सांस्कृतिक अस्मिता पर मोदी ब्रिगेड के इस जघन्य हमले के विरोध में व्यापक प्रदर्शनों का कार्यक्रम अपनाया है।
बाहरी तत्वों को इकट्ठा करके अमित शाह के इस युद्ध के तेवर ने बंगाल में भाजपा की कब्र खोदने का ही काम किया है, इसमें कोई शक नहीं है ।