अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शोषित तबकों की आवाज़ बन चुकी हैं मनीषा बांगर

Share

14 अप्रैल 2013 का वह एक खास क्षण था. जब डॉ. मनीषा बांगर ( Dr Manisha Bnagar ) उस कोलम्बिया युनिवर्सिटी ( Columbia University ) में मौजूद थीं जहां कोई सौ वर्ष पहले बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर ( Dr Bhimrao Ambedkar ) उच्च शिक्षा प्राप्त करने पहुंचे थे. डॉ मनीषा, ‘हंडरेड ईयर्स ऑफ कोलम्बियन एक्सपीरियेंस ऑफ बीआर अम्बेडकर’ नामक समारोह का हिस्सा बनीं थीं और वहां उन्होंने अपने विचार रखे थे. कोलम्बिया युनिवर्सिटी के लेक्चर थिएटर्स, हास्टल और तमाम दरो दीवार जहां बाबा साहब ने अपना समय बिताया था, उन्हें स्पर्श कर, उन्हें महसूस कर और पल भर के लिए जी कर मनीषा की संवेदनायें उत्प्रेरित और ऊर्जान्वित हो गयी थीं. यही वह विश्वविद्यालय था जहां से उच्च शिक्षा प्राप्त कर बाबा साहब जब भारत लौटे थे तो दशकों के संघर्ष के बाद उन्होंने देश के शोषित समुदायों के लिए संवैधानिक अधिकारों का बड़ा हथियार थमा दिया था.

कोलम्बिया में रहते हुए मनीषा के दिमाग में यह बात कौंध रही थी कि बाबा साहब के प्रयासों से भले ही सदियों की गुलामी के बाद शोषित जातियों को संवैधानिक अधिकार दस्तावेजों में तो मिल गये पर व्यावहारिक तौर पर अब भी वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से वंचित हैं. बाबा साहब के इन अधूरे सपनों को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है. उस समय मनीषा के मन में यही विचार आ रहे थे कि बाबा साहब के सपनों को साकार करना बहुजन नेतृत्व पर बाबा साहब का बड़ा कर्ज जैसा है. यूं तो मनीषा ने अपने जीवन के सुख-सुविधाओं को त्याग कर पिछले दो दशकों से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसी दिशा में काम कर रही हैं. लेकिन कोलम्बिया युनिवर्सिटी में बाबा साहब को याद करते हुए अपने संघर्ष के प्रति उनका समर्पन और बढ़ गया.

हैदराबाद के एक विख्यात हास्पिटल में बतौर डॉक्टर अपनी सेवा देकर वैभवशाली जीवन व्यतीत करने वाली मनीषा में जो सबसे बड़ा बदलाव आया वह यह कि उन्होंने हर सुख-सुविधा का त्याग दिया और वंचित समाज के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया. वह देश के विभिन्न मंचों पर ब्रह्मणवादी शोषण के खिलाफ जहां आवाज उठाती रही हैं, वहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वह अनुसूचित जातियों-जन जातियों, ओबीसी, और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर बेबाकी से अपना पक्ष रखती रही हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके इन योगदान की न सिर्फ सराहना हुई बल्कि इसका व्यापक प्रभाव भी पड़ा. इतना ही उनके इन योगदान पर  मनटेसा सिटी, कैलिफोर्निया के मेयर ने 2017 में ‘ग्लोबल बहुजन अवार्ड’ से सम्मानित किया. मनीषा के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिख समुदाय के लिए भी बड़े योगदान की चर्चा 2018 में तब हुई जब उन्होंने कनाडा के मुख्य गुरुद्वारा से बैसाखी के अवसर पर पांच लाख से ज्यादा सिखों को संबोधित किया.

बामसेफ के ऑफसुट आर्गनाइजेशन मूल निवासी महिला संघ की राष्ट्रीय अध्यक्ष व मूल निवासी संघ की राष्ट्रीय अध्यक्ष समेत अनेक जिम्मेदारियों को निभाने के अलावा दीगर अन्य संगठनों में महत्वपूर्ण भूमिका में वह संयुक्त राष्ट्र संघ सरीखे दुनिया के शीर्ष प्लेटफॉर्मों पर मजबूती से वंचित समाज की आवाजें उठाती रही हैं. उसी कोलम्बिया युनिवर्सिटी ने उन्हें 2014 में फिर याद किया जहां उन्होंने ‘अंडरस्टैंडिंग कास्ट ग्लोबली’ विषय पर आयोजित कांफ्रेंस में अपने तथ्यपरक वकतव्य से भारतीय जातिवाद की अमानवीय व क्रूर पहलुओं को उजागर करके अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बोटोरीं.

मनीषा बांगर एक तरफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शोषित समुदायों की आवाज बन चुकी हैं वहीं भारत में रहते हुए उन्होंने जमीनी स्तर पर वंचित वर्ग के शोषण व उत्पीड़न के खिलाफ लगातार जद्दोजहद कर रही हैं. उनके नेतृत्व क्षमता को सम्मान देते हुए पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया ने उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में नागपुर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरा है. मनीषा का मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से है. मनीषा की संगठन क्षमता, नेतृत्व और जमीनी संघर्ष का नतीजा है कि उन्हें नागपुर की बहुजन जनता का उन्हें उत्साहवर्धक समर्थन मिल रहा है.