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कानून व्यवस्था में गुंडों का सहयोग लेना अनुचित है

by Vijay Shanker Singh · January 30, 2021

आज तक एक भी जन आंदोलन या जन समागम नही हुआ होगा, जिंसमे अपराधी और गुंडा तत्व शरीक न हो गए हों। यहां तक की धार्मिक मेलों और कुम्भ के मेले में भी चोरों और गिरहकट, लुटेरे आदि आसानी से घुसपैठ कर ले जाते है। गुंडों की यह घुडपैठ, हो सकता है उन जनआंदोलनों से जुड़े कुछ नेताओं की मिलीभगत हो और यह भी हो सकता है कि आयोजको को, गुंडों की घुसपैठ के बारे में पता ही न हो। यही हाल जन आंदोलन में हुए हिंसा के बारे में कहा जा सकता है।

पर दिल्ली पुलिस का गुंडों के सहारे किसी भी आंदोलन को तोड़ने और फिर हिंसा फैला कर उसे तितर बितर करने का यह नायाब आइडिया, उन्हें किस पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में पढ़ाया गया है यह तो वहीं जानें। पर देश भर के पुलिस ट्रेनिंग स्कूल तो यही सिखाते हैं, कि ऐसे गुंडों के बल पर न तो शांति व्यवस्था बनायी रखे जा सकती है औऱ न ही, अपराध नियंत्रित किया जा सकता है। राजनीतिक लाभ के लिए, गुंडों के एहसान पर कानून व्यवस्था को बनाये रखने के नाटक का मूल्य पुलिस को ही चुकाना पड़ता है। और जब यह मूल्य चुकाया जाता है तो कोई राजनीतिक आका हमदर्द के रूप में नज़र नहीं आता है।

दिल्ली देश की राजधानी है और वहां पर होने वाली एक एक घटना पर दुनियाभर की मीडिया की निगाह रहती है। ऐसी दशा में दिल्ली पुलिस या कहीं की भी पुलिस को क़ानून व्यवस्था से निपटने के लिये किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े गुंडों को, अपने साथ नहीं लेना चाहिए। गुंडों का एहसान अक्सर भारी पड़ता है और उसे चुकाना भी, केवल पुलिस को पड़ता है। ऐसी ही गुंडा नियंत्रित अनप्रोफेशनल पुलिसिंग से इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस एएन मुल्ला की एक बेहद अफसोसनाक टिप्पणी याद आती है।

सत्ता तो बदलती रहती है। बेहद ऐश्वर्य पूर्ण साम्राज्य भी बदलते रहे हैं। पर यदि पुलिस गुंडों की यह जुगलबंदी कहीं आदत बन गयी तो इसका खामियाजा सिर्फ और सिर्फ उन लोगों को भुगतना पड़ेगा जो पुलिस से विधिसम्मत कार्य की अपेक्षा रखते हैं। राजनीतिक लोगों की मजबूरी यह हो सकती है कि, वे गुंडों और आपराधिक तत्वों को पालें या उनकी पनाहगाह में पले। पर एक वर्दीधारी, औऱ संविधान के प्रति शपथबद्ध पुलिस अफसर की ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती है। कानून को कानूनी तऱीके से ही लागू किया जाना चाहिए। हमारी निष्ठा, प्रतिबध्दता और शपथ कानून और संविधान के प्रति है न कि किसी सरकार के प्रति।

( विजय शंकर सिंह )

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