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हिंदी अख़बारों से ग़ायब रही अलवर के उमर की ख़बर

by Team TH · November 13, 2017

हिंदी के अख़बारों ने अलवर में मारे गए उमर ख़ान की ख़बर को डाउनप्ले कर दिया है लेकिन केरल में मारे गए आरएसएस कार्यकर्ता की ख़बर को प्रमुखता से जगह दी है.
मेव समाज के मुताबिक उमर ख़ान एक गौपालक थे. उनकी हत्या एक संगठित अभियान का एक हिस्सा है जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों में मुस्लिम गौपालकों को मारा जा रहा है. मारने वाले गौरक्षक हैं और मरने वाले मुसलमान.
इस संगठित हत्यारी मानसिकता के शिकार हो रहे मुस्लिम गौपालकों के परिजनों के साथ किसी भी केस में इंसाफ़ नहीं हो पा रहा है. राज्य की सरकारें, पुलिस प्रशासन और सरकारी वकील हत्यारों को बचाने का काम कर रहे हैं.
इसके बावजूद सभी हिंदी अख़बारों ने गौरक्षकों के बारे में साफ़-साफ़ लिखने में कंजूसी की है.
किसी भी हिंदी अख़बार के रिपोर्टर ने उमर ख़ान की हत्या पर रिपोर्ट फाइल नहीं की है. सभी ने उन्हीं सूचनाओं को झाड़ पोंछ कर बॉक्स में छाप दिया है जो पहले से डिजिटल मीडिया में तैर रही है.
वजह क्या है इसके पीछे? क्या हत्यारे गौरक्षक हिंदी पत्रकारों के भाई, भतीजे हैं? या फिर सरकारी वकील और पुलिस प्रशासन के साथ-साथ हिंदी मीडिया के पत्रकार भी गौरक्षकों को बचाना चाहते हैं?
अंग्रेज़ी अख़बारों में द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस ने इस ख़बर को पहले पन्ने के ऊपरी हिस्से में छापा है.
अमर उजाला और जनसत्ता ने पहले पन्ने पर उमर ख़ान और आरएसएस कार्यकर्ता की ख़बर को बराबर जगह देने की कोशिश की है लेकिन मेरी राय में ये दोनों अख़बार भी इस ख़बर के साथ इंसाफ़ करने में फेल साबित हुए हैं.
(यह ख़बर पत्रकार शाहनवाज़ मालिक की फ़ेसबुक वाल से ली गयी है )

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