हरियाणा युवा कांग्रेस का चुनाव बना नेताओं की प्रतिष्ठा का मुद्दा

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एक समय था जब राहुल गांधी ने बिना राजनीतिक पृष्ठभूमि, धन और बाहुबल वाले युवाओं को राजनीति में शामिल होने के लिए तथा आंतरिक लोकतंत्र को मज़बूत करने व साथ ही एक मंच देने के लिए युवा कांग्रेस चुनावों की शुरुआत की थी।

इसके बावजूद किसी भी राज्य में कोई भी वरिष्ठ कांग्रेसी उनके इस विचार को बढ़ावा नही देता है। जब जब युवा कांग्रेस के चुनाव हुए हैं, सभी राज्यों ने चुनाव प्रक्रिया में वरिष्ठ नेताओं की पूरी भागीदारी देखी है। युवा कांग्रेस का चुनाव राज्य के वरिष्ठ नेताओं के लिए ताकत दिखाने में बदल गया है। हालांकि हर प्रदेश में युवा कांग्रेस से बढ़ती गुटबाज़ी से कमजोर होते संगठन के चलते तक़रीबन सभी प्रदेशों के नेताओं ने कई बार सोनिया गांधी और राहुल गांधी को इन चुनाव को बंद करने की अपील की है।

हाल ही में हुए दिल्ली और मुंबई के युवा कांग्रेस के चुनाव में गुटबाज़ी और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता देखने के बाद अब हरियाणा में देखने को मिल रही है, जिसके चलते प्रदेश में राजनीति और गर्मा गई है और पार्टी में आपसी मतभेद की दरार और गहरी होती दिखाई दे रही है और कांग्रेस आलाकमान के मुश्किलें और अधिक बढ़ती दिख रही है।

हरियाणा 3 गुट में बंट गया – हुड्डा, शैलजा और राहुल गांधी की सोच

नामांकन ख़त्म होने के पश्चात जहां एक तरफ़ सभी गुट अपने अपने प्रत्याशी की मेम्बर्शिप में जुट गए, वहीं अगले दिन भूपिंदर सिंह हुड्डा अपने समर्थक विधायकों को लेकर दिल्ली पहुँच गए। जिसके बाद शाम होते होते शैलजा ग्रूप के 2 क़द्दावर नेता – किरण चौधरी और कैप्टन यादव ने अपना समर्थन हुड्डा के प्रत्याशी को दे दिया।

प्रदेश अध्यक्ष चुनाव में कुल 12 प्रत्याशी है जिसमें से केवल 2 महिलाएँ हैं और मेम्बर्शिप व वोटिंग ऑनलाइन एक महीने तक जारी रहेगी।

सूत्रों की माने 4 मजबूत उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं जिसमें हुड्डा-किरण चौधरी-कैप्टन यादव 2 का समर्थन कर रहे हैं, नामतः पूर्व एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा और एक महिला पराग शर्मा। प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने पूरा सिस्टम पूर्व युवा कांग्रेस राष्ट्रीय सचिव कृष्ण सात्रोड के पीछे लगा दिया है और सूरजेवाला ग्रूप का भी समर्थन है।

पूर्व युवा कांग्रेस प्रदेश महासचिव शांतनु चौहान बिना किसी बड़े नेता के समर्थन के चुनाव लड़ रहे हैं। बाक़ी बचे 8 प्रत्याशी किसी ना किसी गुट से जुड़े हुए हैं और उनकी लड़ाई सिर्फ़ वोट काटने और प्रदेश समिति में न्यूनतम वोट पाकर सचिव बन्ने तक सीमित है।

अब देखना ये है कि आख़िरकार जीत किसकी होती है। प्रदेश के दिग्गज नेताओं की या राहुल गांधी के सोच की या एक बार फिर राहुल गांधी की सोच सिर्फ़ सपना बन के रह जाएगी और हरियाणा युवा कांग्रेस भी प्रदेश के नेताओं के गुटबाज़ी में पिस जाएगी।