दुनिया भर मे “युद्ध” कराने वाली वर्साय संधि ( Treaty of Versailles ) को जान लीजिए।

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आधुनिक इतिहास और राजनीति शास्त्र की किताबों में हमने दुनिया के दो सबसे बड़े युद्धों के बारे में अवश्य पढ़ा होगा। इन दोनो युद्धों को “प्रथम विश्वयुद्ध (First World War) और द्वितीय विश्वयुद्ध (Second World War) के नाम से जाना जाता है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दुनिया ने इतनी तबाही देखी, जिसके बाद शांति समझौतों का एक दौर शुरू हो गया था। लेकिन इन शांति समझौतों ने‌ शांति तो कायम ‌नहीं की‌, बल्कि द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बन गईं।

पेरिस शांति सम्मेलन

पेरिस शांति सम्मेलन में पराजित सभी देशों के लिए एक संधि का मसौदा तैयार किया जाना था। जर्मनी लिए वर्साय की संधि तैयार की गई। वर्साय की संधि को समझने से पहले हमें प्रथम युद्ध के कारणों पर भी नजर डालनी होगी। जिनकी वजह से पूरी दुनिया को इस भीषण युद्ध में जलना पड़ा।

प्रथम विश्व युद्ध के कारण

जर्मनी की विस्तारवादी नीति को प्रथम विश्व युद्ध के कारणों में से सबसे अहम कारण माना जाता है। इस नीति के तहत जर्मनी के शासक विलियम द्वितीय ने जर्मनी को विश्व शक्ति बनाने का प्रयास किया। इसके अलावा यूरोपीय देशों की गुप्त संधियां भी इस युद्ध का कारण रहीं। साथ ही साम्राज्यवाद का चरम पर होना, बाल्कन देशों में उभरती राष्ट्रवाद की भावना, सैन्यवाद और सबसे बड़ा व तत्कालीन कारण ऑस्ट्रिया-हंगरी के उत्तराधिकारी आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड व उनकी पत्नी की हत्या थी। जिसके बाद पूरे 4 साल दुनिया ने एक भयंकर युद्ध झेला।

प्रथम विश्व युद्ध में दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया था। पहला गुट मित्र देशों का था, जिसमें ब्रिटेन, अमेरिका, रूस, जापान और फ्रांस शामिल थे। दूसरी तरफ धुरी राष्ट्रों में ऑस्ट्रिया हंगरी ऑटोमन साम्राज्य एक गुट में थे। प्रथम विश्व युद्ध में मित्र देशों की जीत हुई और मित्र देशों में दुनिया को ऐसे भीषण युद्ध से बचाने के लिए पेरिस शांति सम्मेलन का आयोजन किया। इसी शांति सम्मेलन में कुल 32 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। जर्मनी के लिए अपमानजनक संधि इसी पेरिस सम्मेलन में बनाई गई, जो कि निश्चित तौर पर विनाशकारी सिद्ध हुई।

वर्साय की संधि का प्रमुख उद्देश्य

मित्र राष्ट्रों द्वारा जर्मनी पर थोपी गई संधि का प्रमुख उद्देश्य आगामी वर्षों में जर्मनी को प्रभावशाली होने से रोकना और उसकी संप्रभुता लगभग खत्म कर देना था। जर्मनी ने प्रथम विश्व के बाद जिन परिस्थितियों का सामना किया। उसकी असल जड़ इसी वर्साय संधि से जुड़ी है। जर्मनी के प्रभाव को कम करना, सैन्य शक्ति को सीमित करना व आर्थिक तौर पर उसे पंगु बना देना इस संधि का मुख्य उद्देश्य था।

230 पन्नों की इस संधि न जर्मनी को अपमानजनक अवस्था में धकेल दिया

वर्साय की संधि में मित्र राष्ट्रों द्वारा कुछ ऐसी व्यवस्थाएं की गई थीं, जिसने जर्मनी को एक अपमानजनक अवस्था में धकेल दिया था। इस संधि में मित्र राष्ट्रों ने प्रादेशिक आर्थिक व सैनिक व्यवस्थाएं की गई थीं। प्रादेशिक व्यवस्थाओं में जर्मनी द्वारा जीते गए अल्सास व लॉरेन प्रांत फ्रांस को वापस लौटा दिए गए। यूपेन और माल्देमी क्षेत्र बेल्जियम के हाथों में चले गए। जर्मनी के सभी उपनिवेशों के सारे अधिकार भी मित्र राष्ट्रों को सौंपने के साथ ही शांतुंग इलाके का पर जापान का कब्जा हो गया।

इसके अलावा सार घाटी के संसाधनों के दोहन का अधिकार फ्रांस को दे दिया गया। मेल, पूर्व बाल्टिक जर्मन शहरों को मुक्त शहर घोषित किया गया और डेनमार्क ने उत्तरी श्लेस्विग-होल्स्टीन पर कब्ज़ा कर लिया।

सैनिक व्यवस्थाओं के तहत जर्मनी को अपनी अनिवार्य सैनिक सेवा समाप्त करनी पड़ी। 12 सालों तक जर्मनी की थल सेना को अपनी सेना में एक लाख से अधिक सैनिक रखने की अनुमति नहीं थी। इसके साथ ही नौसेना में भी सैनिकों की संख्या केवल 15 हजार हो सकती थी। यहां तक कि जर्मनी की वायुसेना को भंग कर दिया गया था। राइनलैंड क्षेत्र का विसैन्यीकरण की भी व्यवस्था की गई व जर्मनी पर अपनी सुरक्षा के लिए हथियारों का निर्माण व आयात करने को प्रतिबंधित कर दिया गया था।

इस विनाशकारी युद्ध के लिए जर्मनी को जिम्मेदार ठहराया गया। और युद्ध में हुई क्षतिपूर्ति की भरपाई भी करने के लिए भी जर्मनी से कहा गया। वर्साय की संधि में आर्थिक व्यवस्था के तहत जर्मनी को युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में मित्र राष्ट्रों को पांच अरब डॉलर का भुगतान करना था। जिससे जर्मनी की अर्थव्यवस्था काफी खराब हो गई थी।

द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख कारणों में से एक थी वर्साय की संधि
प्रथम विश्व युद्ध के बाद ऐसी कई कोशिशें और संधियां की गई थीं, जिससे भविष्य में ऐसे भीषण युद्धों को रोका जा सके। लेकिन, वर्साय की संधि एक ऐसी अपमानजनक संधि थी, जिसका प्रतिशोध जर्मनी के हर एक नागरिक को लेना था। इस संधि को जबरन जर्मनी पर थोपा गया। जर्मनी के प्रतिनिधियों को कैदी की तरह नजरबंद करके इस संधि की एक प्रति सौंपी गई और कहा गया कि अगर वो इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं करते तो उन्हें दोबारा से युद्ध करना होगा। इसी दबाव में आकर उन्होंने 28 जून 1919 में अपनी संप्रभुत और स्वतंत्रता को ताक पर रख कर इस संधि पर हस्ताक्षर कर दिए। लेकिन एक बात तो तय थी कि जर्मनी अपने इस अपमान को भूलने वाला नहीं था। यह इन सब चीजों का ही परिणाम था कि वहां नाजीवादी हिटलर की सरकार बनी और यही हिटलर दूसरे विश्व युद्ध का कारण बना।