Share

क्या ओवैसी वोट काटने के लिए राजनीति करते हैं?

by Asad Shaikh · September 23, 2021

क्या ओवैसी वोट काटते हैं? क्या ओवैसी सिर्फ इसलिए चुनाव लड़ते हैं कि सपा,बसपा राजद और कांग्रेस जैसी पार्टियां चुनवा हार जाएं? क्या ये आरोप सच हैं? आइये कुछ तथ्यों पर ध्यान डालते हैं। जो इन सवालों ही पर सवाल उठा रहे हैं। क्यूंकि जब इल्ज़ाम बिना फेक्ट्स के लगाया जाता है तो नफ़रत की वजह से होता है। तथ्य क्या है गौर करते हैं।

2014 में इमरान मसूद सहारनपुर लोकसभा से 4 लाख वोट लाकर चुनाव हार गए क्योंकि उनके भाई सपा उम्मीदवार क़रीबन 52 हज़ार वोट ले आये थे। 2009 में बिजनोर लोकसभा से शाहिद सिद्दीकी (पत्रकार) बसपा से चुनाव लड़ें और सिर्फ 28 हज़ार वोटों से चुनाव हार गए क्योंकि पूर्व सांसद और कांग्रेस प्रत्याशी सईदुज़्ज़मा ने 80 हज़ार वोट ले लिए थे।

कैराना लोकसभा 2014 में नाहिद हसन से क़रीबन 2 लाख वोटों से चुनाव हारें क्यूंकि उनके चाचा बसपा उम्मीदवार कंवर हसन 1 लाख 60 हज़ार वोट ले आये थे। मेरठ लोकसभा से पूर्व सांसद बसपा से शाहिद अख़लाक़ 2014 में चुनाव लड़ें और 3 लाख वोट लेकर भी चुनाव हार गए,क्यूंकि केबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर सपा से 2 लाख 11 हज़ार वोट ले आये थे।

मुस्तफाबाद विधानसभा( दिल्ली) हसन अहमद पूर्व विधायक 52 हज़ार वोट लाकर चुनाव हार गए क्यूंकि आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी हाजी यूनुस को 49 हज़ार वोट मिले थे। 2014 में उत्तर पूर्वी लोकसभा से प्रो आनंद कुमार चुनाव सिर्फ 1 लाख 44 हज़ार वोटों से हारे जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी जय प्रकाश अग्रवाल 2 लाख से ज़्यादा वोट ले कर आये थे।

इस सभी उम्मीदवारों के हारने में 2 बातें कॉमन है पहली ये की सभी जगह भाजपा या उनके समर्थित उम्मीदवार ही इस टकराव के बाद जीते थे और दूसरी बात ये है कि इनमें से किसी भी सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ रहा था। अब सवाल ये है कि कितने लोगों ने इन सभी को “वोटकटवा” कहा है? और अगर नहीं कहा है तो ओवैसी क्यों वोटकटवा है?

अब आप बिहार विधानसभा चुनाव 2020 पर आ जायेंगे और कहेंगें की ओवैसी ने तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनने से रोक दिया बीस सीट पर लड़कर,लेकीन अगर “रानीगंज” विधानसभा सीट को हटा दिया जाए तो कोई ऐसी सीट नहीं थी जहां ओवैसी हारें हो,यानी उन्हें बहुत अच्छा वोट ही मिला है लगभग हर सीट पर जहां जहाँ वो लड़े थे।

बल्कि ओवैसी शायद और ज़्यादा सीट जाते तेजस्वी के उम्मीदवार मैदान ही में न होते तो,सवाल ये है कि 4 बार का लोकसभा चुनाव जीता शख्स और लगातार जनता का समर्थन लेता शख़्स आखिर क्यों देश मे कही भी चुनाव लड़ने में टारगेट होता है? क्यों मुकेश साहनी और जीतन राम मांझी हर जगह चुनाव लड़ सकते हैं और असदुद्दीन ओवैसी नहीं लड़ सकते हैं?

हमारे सियासी इख्तिलाफ हैं असदुद्दीन ओवैसी से हैं और होने भी चाहिए,लेकिन लोकतंत्र ने सभी को चुनाव लड़ने का हक़ है,हार या जीत जनता तय करती है। कर भी रही है। ओवैसी पर या और किसी भी दल पर “वोट” काटने का इल्ज़ाम लोकतांत्रिक तौर पर सरासर गलत है।

जबकि ओवैसी जब से आएं हैं उनसे पहले सैकड़ों ये सारे भाजपा का विरोध करने वाले दल क्या क्या कर चुके हैं आपके सामने हैं। विरोध तो कम से कम फेक्ट्स ही पर होना चाहिए। लेकिन वो होता हुआ नजर नहीं आ रहा है।ये सवाल है जो पूछा जाना चाहिए।

Browse

You may also like