हिजाब के नाम पर खेला जा रहा है, गंदा राजनीतिक खेल

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किसी बड़े फिलोसफर ने कहा था किसी भी देश की तरक्की इस बात से आंकी जाती है की वोह देश अपनी महिलाओ के साथ कैसा व्यवहार करता है, सरकारी आंकड़े बताते है की 2007-2016 के बीच महिलाओ के साथ हिंसा के मामले में 83% की वृद्धि हुई है। हर चार घंटे में एक बलात्कार की घटना सामने आती है लन्दन स्थित पोल थोमसन-रॉयटर्स फाउंडेशन के सर्वे के मुताबिक भारत, महिलाओ के लिए सबसे खतरनाक देश की श्रेणी में आता है।

कोई भी व्यक्ति,पार्टी या संस्थान कब से ये तय करने लगा कि कौन क्या पहनेगा, कौन सा धर्म अपनायेगा? कर्नाटक में हुई दुर्भाग्यपुर्ण घटना सिर्फ मुसलिम समुदाय की लड़कियों के संवेधानिक अधिकार पर हमला नही है बल्कि भारतीय संविधान के ऊपर सीधा हमला है। भारतीय संविधान का आर्टिकल 25 (1) के अनुसार धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार मौलिक अधिकर है और सिर्फ यही नही, व्यक्ति जिस भी धर्म का मानने वाला है धार्मिक कस्टम के अनुसार जो भी वस्त्र पहनता है या कृपाल धारण करता है, अपने कस्टम के अनुसार विवाह, पूजा पाठ, नमाज़ पढ़ना साथ ही अपने कस्टम के अनुसार खाना खाने आदि की आज़ादी है। जिसे किसी भी व्यक्ति, संस्थान या सरकार द्वारा नही छीना जा सकता है। Bijoe Emmanuel vs State of Kerala (1986), केस में केरला हाईकोर्ट की ड़बल बेन्च द्वारा दिये गये र्निणय में कहा जा चुका है [Constitution of India, Art. 19(1)(a) and 25(1)-National Anthem-Singing of-Compulsion despite genuine conscientious religious objection –Whether contravenes Fundamental Rights.]

भारतीय संविधान के अनुसार भारत सरकार का कोई धर्म नही होगा तथा वह हर धर्म के मानने वालों के साथ एक समान व्यवहार करेगी। लेकिन भारत सरकार और सत्ता में बैठे गद्दीधारियों ने भारतीय संविधान को दरकिनार कर अपने चुनावी वादों में भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने, धर्म सभा का आयोजन करने और गऊमुत्र से सरकारी सी0 एम0 निवास शुद्धीकरण कराने जैसी सैकड़ो ऐसे काम किये हैं जो भारतीय संविधान के खिलाफ है। यही नही अयोध्या में स्कूली बच्चों को राममंदीर दर्शन कराने और दर्शन के समय स्कूली बच्चे जो स्कूल की युनिफार्म में थे उनसे स्कूल के शिक्षक एक धर्म विशेष का नारा (जय श्रीराम) लगवाते हुए ले जा जाते हुए भी देखा गया है।

हिजाब बनाम भगवा स्कार्फ

किसी राजनैतिक पार्टी के सिम्बल, रंग का स्कार्फ और हिजाब पहनने का बेसिक फर्क को समझना बहुत ज़रूरी है इन्डीयन कॉन्स्टिट्युशन के आर्टिकल 25 (1) के अनुसार धार्मिक स्वत्रन्ता को विस्तारित करते हुए यह अधिकार प्रदान करता है कि व्यक्ति अपने धार्मिक आस्था के अनुसार धर्म में पहने जाने वाले कपड़े, पगड़ी, कृपाल को धारण कर सकता है। इसी मौलिक अधिकार का प्रयोग करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अजय सिंह बिष्ट मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपने कस्टम के अनुसार वस्त्र धारण करते हैं. परन्तु किसी राजनैतिक पार्टी के रंग का स्कूल के अन्दर इस्तेमाल करना, स्कार्फ पहनना और एक विशेष धर्म का नारा लगाना भारतीय संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार में शामिल नही है. सभी जानते है की “यूनिवर्सल ड्रेस कोड” पुराना आईडिया है जिसने विविधता स्थानीय संस्कृति को ख़त्म किया है, अमेरिका के स्कूल में ड्रेस कोड नहीं लागू नहीं है वहा के बच्चे जो चाहे पहन सकते है लेकिन अंग्रेजो के दिए ड्रेस कोड ने भारत की विविधता और स्थानीय संकृति को पहले ख़त्म किया अब यह मुस्लिम सिख आदिवासी के स्थानीय कल्चर समाप्त करने की और है जबकि संविधान विविधता और स्थानीय संस्किति को बचाने की वकालत करता है, पहनावे, भाषा, उच्चारण के विभिन प्रकार ही बहुलता या विभिन्नता है जिसे ख़त्म होने को बचाना ही विभिन्नता है!

इस्लामोफोबिया व धर्म की राजनीति

धर्म के नाम पर नफरत फैलाने की राजनीति से जन्म लेती कर्नाटक में जो मुसकान के साथ हुआ ऐसे तमाम हादसे जो आए दिन हो रहे हैं जो कुछ सामने आते हैं और बहुत सारे मीडिया की सुर्खिया नही बन पाते। इस्लाम के नाम पर जिस तरह से दक्षिणपंथी ताक़तों ने नफरत को हवा दी है वो हर जगह देखने को मिलती है, और हर बात को जिहाद शब्द से जोड़ा जाता है. इस्लाम धर्म के मानने वालों से जुड़ी कई ऐसी धारणाओं को फैलाया जाता है जिसका सच्चाई से कोई लेना देना नही है, जैसे मुसलमान नहाते नही हैं, वो कनज़रवेटिव होते हैं, वो उलटे तवे पर रोटी पकाते हैं, लव जिहाद चलाते हैं, देश के गद्दार होते हैं ऐसी तमाम बातें जिसका वास्तविक्ता से कोई सरोकार नही है। इस्लाम और मुसलमान के नाम पर राजनीत से मुसलमानों के ज़ेहन पर इतना बुरा असर पर है कि वो खुद के पहनावे कस्टम और पब्लिक प्लेस पर नामज़ पढ़ने से भी ड़रने लगे हैं. कई औरतें जो मेरी दोस्त है और जानने वाली हैं,  उन्होंने नकाब पहनना, सर को दुपट्टे से कवर करना, वर्क प्लेस में नमाज़ पड़ना, हिन्दू बाहुल्य क्षेत्रों से खुद को कवर के के निकलना छोड़ दिया है उनका कहना है कि हमें दहशत होती है कि कहीं हमारे साथ छेड़ छाड़ या कोई हादसा न हो इस वजह से हम लोग अपने कपड़ों से मुसलमान नही दिखना चाहते हैं। राजनीति के इस गन्दा खेल और जहरीला प्रोपेगैंडा ने समाज पर इतना बुरा असर ड़ाला है कि लोग अपने आप से भी ड़र महसुस करते हैं।

किसी धर्म का अनुसरण करना, नकाब पहनना, सर ढ़कना, कस्टम को फॉलो करना, खाना खाना, शादी करना, अपने पसंद के कपड़े पहनना यह हर व्यक्ति का व्यक्तिगत चुनाव है जिसे जिसपर हमला करना भारतीय संविधान के उपर हमला करने के समान है। मुसलमान होना कोई जुर्म नही है।

(लेखक अश्मा इज़्ज़त लखनऊ हाई कोर्ट की अधिवक्ता है और मानवधिकार के क्षेत्र में कार्यरत है) E-Mail: ashmaizzat@gmail.com