काले जादू के बाद कांग्रेस का सफेद जादू – भारत जोड़ो यात्रा का पहला दिन

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सफेद कुर्ते पजामे में राहुल गांधी जब तिरंगा लेकर मंच पर आए तो खुशी का शोर उठा। दूसरी बार जब वह बोलने के लिए खड़े हुए तो न सिर्फ शोर उठा बल्कि उनके स्वागत में लोग भी उठकर खड़े हो गए। सभी नेताओं ने मंच के कोने में लगे माइक से भाषण दिया मगर राहुल के लिए एक रैंप वाक जैसा बनाया गया था। रैंप वॉक के अगले हिस्से में लगाए गए माइक से सिर्फ राहुल गांधी बोले। कितने हजार लोग थे यह नहीं कहा जा सकता हां मगर हजारों थे। देश भर से तो लोग आए ही थे कुछ विदेशों से भी आए थे। तमिलनाडु का ऐसा कोई जिला नहीं जहां से नेता कार्यकर्ता नहीं आए। सभी सफेद कपड़ों में थे। तमिलनाडु में सफेद कपड़े आम तौर पर ज्यादा पहने जाते हैं, फिर यहां तो ड्रेस कोड ही सफेद था और सफेद से अगर कोई जादू जुड़ा होता तो किसी अंधविश्वासी और डरपोक के मन में यह खयाल आ सकता था कि हो न हो यह कोई जादू है।

वंदे मातरम से भी पहले कोई तमिल गीत गाया गया। इसे भी लोगों ने खड़े होकर गाया। देश में सिर्फ राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रगान ही नहीं है प्रादेशिक गान भी हैं, जो प्रदेशों की अस्मिता से जुड़े हैं। हिंदी पट्टी वालों के लिए यह चीज नई थी। सोनिया गांधी का संदेश भी पढ़ा गया। सोनिया गांधी ने कहा मैं शारीरिक रूप से आप लोगों के बीच में नहीं हूं मगर मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। दिल से मैं हर दिन हर समय भारत जोड़ो यात्रा के साथ हूं।

राहुल गांधी ने एक बार फिर मोदी आर एस एस और कुछ धन पतियों पर हल्ला बोला। जब वह मीडिया के बारे में बोल रहे थे तब हजारों लोग मीडिया के खिलाफ नारे लगा रहे थे। विपक्ष की हर सभा में अब यह होने लगा है। भारत की जनता के दिलो-दिमाग में यह बात बैठ गई है कि मीडिया निष्पक्ष नहीं है और चंद लोगों के इशारे पर काम कर रहा है।

इस यात्रा का बाद में क्या होगा इससे कांग्रेस को क्या फायदे मिलेंगे यह बाद की बात है मगर जो आज दिखाई देता है वो यह कि कांग्रेस में कोई और नेता ऐसा नहीं है जिसकी स्वीकार्यता देशभर में राहुल गांधी की तरह हो। ना राहुल गांधी को तमिल आती है और ना तमिलनाडु के लोगों को हिंदी अंग्रेजी की समझ है। मगर लोगों को लगता है कि राहुल गांधी उनके लिए लड़ रहे हैं। राहुल गांधी अब उन लोगों की उम्मीद बन गए हैं जो सरकार से निराश हैं। यात्रा का संकल्प मात्र उन्हें बड़ा बना रहा है। जब यात्रा पूरी होगी तो पता नहीं राहुल का कद क्या होगा। कांग्रेस के सैकड़ों नेता मंच पर थे मगर राहुल का करिश्मा बस राहुल का ही था। उनके अलावा केसी वेणुगोपाल के भाषण पर तालियां बजी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के अशोक गहलोत हिंदी में बोलें। पी चिदंबरम तमिल में बोले। मलिकार्जुन खड़गे लिखा हुआ भाषण पढ़ रहे थे और उन्होंने बिल्कुल भी प्रभावित नहीं किया। जब वह पढ़ रहे थे तो पीछे से आवाज आ रही थी। मुशायरे की भाषा में इसे हूट किया जाना कहते हैं। दिग्विजय सिंह अंग्रेजी में बोले और बहुत कम बोलें। मंच पर सभी जगह भारत जोड़ो यात्रा के लोगो तक तमिल में थे। केवल एक जगह कोने में एक लोगो अंग्रेजी में था। इसके पीछे भी दिमाग दिग्विजय सिंह का है। दिग्विजय सिंह को मालूम है कि यहां के लोग हिंदी थोपे जाने के खिलाफ खूब आंदोलन कर चुके हैं और जब कोई हिंदी बोलता है तो यह लोग बहुत अच्छा महसूस नहीं करते। इसीलिए न सिर्फ वे अंग्रेजी में बोले बल्कि राहुल गांधी भी अंग्रेजी में ही बोले। राहुल जब बोलने खड़े हुए तो एक अनुवादक भी दूसरे कोने में खड़ा था। वाक्य राहुल बोलते थे और अनुवादक उसका तमिल में अनुवाद करता था। थोड़ी देर में दोनों की ट्यूनिंग ऐसी जम गई जैसे शहनाई और तबले की जुगलबंदी हो रही हो।

मंच पर तमिल नाडु और भारत भर से आए इतने सारे नेता हो गए थे की 117 भारत यात्री नीचे बैठ कर ही भाषण सुनते रहे। भारत यात्रियों को होटल से एक कैंप में शिफ्ट कर दिया गया है। यहीं से राहुल गांधी के साथ आज सुबह वह निकल जाएंगे। उनका पहला पड़ाव सुचिंद्रम गांव होगा जहां वे खाना खाएंगे और कुछ देर आराम करेंगे। सभी के लिए कंटेनर आ गए हैं जिसमें सभी का सामान रखा होगा। बाथरूम और बिस्तर भी होगा।

लोग रहेंगे, अनुशासन नहीं

जर्मनी की नाजी सेना एसएस जैसा अनुशासन कांग्रेस में नहीं है। इसकी बजाय कांग्रेस में एक मानवीय लोच है। इसीलिए कन्या कुमारी के विवेकानंद कॉलेज के मैदान से यात्रा शार्प 7 बजे नहीं 7 बज कर 20 मिनिट पे शुरू हुई। इसका कारण राहुल गांधी नहीं बल्कि वह बड़े नेता रहे जो विवेकानंद कॉलेज के कैंपस की बजाय दूसरे होटलों में रुके हुए थे। अशोक गहलोत लेट आए। विवेकानंद कॉलेज के मैदान में सभी पद यात्रियों को रात को ठहराया गया था। राहुल गांधी भी यही अपने कंटेनर में सोए। सुबह 5:00 बजे से ही यहां पर अलग-अलग प्रदेशों से आए कार्यकर्ताओं की भीड़ लगना शुरू हो गई थी। सब अपनी अपनी भाषा में नारे लगा रहे थे गीत गा रहे थे। यात्रा का पहला उद्देश्य तो यहीं हल हो गया जब अलग-अलग प्रांतों के लोग किसी की भाषा को न जानते हुए भी एक दूसरे के साथ नारे लगा रहे थे गीत गा रहे थे। छत्तीसगढ़ से आए कार्यकर्ता सबसे ज्यादा उत्साह में थे। उनके नारे भी अनोखे थे।

जिस तरह के अनुशासन में दिग्विजय सिंह सबको चलाना चाहते थे वह अनुशासन कायम नहीं रह पाया। यात्रा की शुरुआत में भीड़ इतनी ज्यादा थी कि काफिला 1 किलोमीटर से ज्यादा का हो गया था। यात्रा को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में बहुत ही ज्यादा उत्साह है। अनुशासन धीरे-धीरे आ पाएगा जब शुरुआती भीड़ कम हो जाएगी और सिर्फ पदयात्री ही रह जाएंगे। तमिलनाडु और केरल में तो ऐसा होना मुमकिन नहीं दिखता। बल्कि शायद कहीं भी ऐसा ना हो पाए। इस पद यात्रा के लिए चारों तरफ से लोग खींचे चले आएंगे। अगला पड़ाव यहां से 15 किलोमीटर दूर सुचिंद्रम में है। मलिकार्जुन खड़गे पैदल नहीं चल पाए और विवेकानंद कॉलेज से ही गाड़ी में बैठ कर चले गए। अशोक गहलोत पीछे पीछे पैदल चलते रहे। सबसे पीछे कारवां योगेंद्र यादव का था और सिविल सोसाइटी के पद यात्रियों में भी गजब का जोश और उत्साह है। सबसे आखरी में दिग्विजय सिंह थे और वह संतुष्ट नजर आए। राहुल गांधी को लेकर इतना जोश है कि जो बड़े नेता राहुल गांधी के साथ चलना चाहते थे उन्हें भीड़ ने पीछे धकेल दिया।

जो हो सकता है वह थोड़ा सा हुआ

शाम को गांधी मंडपम में हुई बहुत बड़ी सभा के दौरान कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने आशंका जाहिर करते हुए कहा कि भाजपा इस यात्रा को सहन नहीं कर पाएगी और इसमें गड़बड़ करने की कोशिश करेगी। मगर गड़बड़ तो दोपहर में ही हो चुकी थी। यह गड़बड़ भाजपा ने तो नहीं की मगर कांग्रेसी नेताओं का आरोप है की जिस अफसर ने यह गड़बड़ की वह भाजपाई मानसिकता रखता है और उसने भाजपा के इशारे पर ही यह सब किया । दिग्विजय सिंह की समझदारी रही की बात आगे नहीं बढ़ी।

राहुल गांधी जिस रास्ते से आने वाले थे उस रास्ते में कांग्रेस के किसी संगठन ने बहुत ही खूबसूरत गोल झालर वाले होर्डिंग लगाए थे। यह ना तो रास्ते के बीचोंबीच लगे थे और ना ही इनमें कोई आपत्तिजनक बात थी। असमा गर्ग नाम के एक पुलिस अधिकारी ने कुछ होर्डिंग पुलिस वालों के हाथों उखड़वाकर एक किनारे पटकवा दिए। तमिलनाडु के कोने कोने से कांग्रेसी कार्यकर्ता यहां आए हुए थे। उन्होंने अफसर से पूछा कि होर्डिंग क्यों हटाए? अफसर ने जो जवाब दिया उससे कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता संतुष्ट नहीं हुए और अफसर के खिलाफ नारे लगाने लगे। तमिल में बहुत सारे नारे लगाए गए। जिसमें सिर्फ यह समझ में आया कि राहुल गांधी को जिंदाबाद कहा जा रहा है और इस अफ़सर को भाजपाई। कुछ कार्यकर्ताओं ने सड़क पर धरना भी शुरू कर दिया। इनमें महिलाएं भी थी। जाहिर सी बात है कि अफसर के हाथ-पैर फूल गए। माफी मांगने लगा सफाई देने लगा। कार्यकर्ताओं ने कहा हमारे जो होर्डिंग उखाड़े गए हैं उन्हें फिर से लगवाओ और आप लगवाओ। अफसर ने पुलिस वालों को बोल कर कुछ होर्डिंग फिर से खड़ा करवा दिए।

मगर कार्यकर्ताओं का गुस्सा और जोश बढ़ता ही चला जा रहा था। यह सब दिग्विजय सिंह के डेरे के पास ही हो रहा था। उन्हें खबर मिली तो वे निकल कर आए। सबसे पहले कार्यकर्ताओं को फैल जाने को कहा। फिर कुछ नेताओं को एक तरफ ले जाकर अंग्रेजी में समझाया कि इस बात को यहीं खत्म कर दो। यहां डीएमके की सरकार है और हम डीएमके के अलायंस हैं। हम उनके लिए कोई परेशानी पैदा करना नहीं चाहते और ना ही इस मामले को तूल देना चाहते हैं। दिग्विजय सिंह के आने के बाद अफसर की जान में जान आई और उसने धीरे से वहां से कलटी मार दी।

फर्ज कीजिए यह अफसर वाकई भाजपाई मानसिकता का था। मगर तब क्या होगा जब यह यात्रा भाजपा शासित प्रदेशों से गुजरेगी और भाजपा के लोग पदयात्रा का विरोध करने भी आएंगे। दिग्विजय सिंह ने भाजपा को फीलचक्कर में तो डाल दिया है। अगर इस यात्रा के साथ कोई बदसलूकी होती है तो सहानुभूति पद यात्रियों के साथ ही रहने वाली है। अगर विरोध नहीं करते हैं तो यह पदयात्रा छाती ठोक कर आगे दनदनाती रहेगी। बहरहाल इस एक पुलिस अफसर को छोड़ दिया जाए तो पुलिस का रवैया यहां कांग्रेसियों के प्रति नरम ही है। जाहिर है डीएमके और कांग्रेसी एक साथ हैं। राहुल गांधी ने सभा में एमके स्टालिन को अपना भाई बताया और शुक्रिया भी अदा किया। यहां कन्याकुमारी में तो नहीं मगर तमिलनाडु में किसी दूसरी जगह स्टालिन उनसे मिलने आए थे। शायद श्रीपेरंबदूर में।