कविता – कुछ मुसलमान भी , सीने से लगाने होंगे – "सतीश सक्सेना"
इनके आने के तो कुछ और ही माने होंगे ! जाने मयख़ाने के, कितने ही बहाने होंगे ! हमने पर्वत...
March 27, 2017
इनके आने के तो कुछ और ही माने होंगे ! जाने मयख़ाने के, कितने ही बहाने होंगे ! हमने पर्वत...
अति सुकोमल साँझ- सूर्यातप मधुर; सन्देश-चिरनूतन, विहगगण मुक्त: कोई भ्रांतिपूर्ण प्रकाश असहज भी, सहज भी, शांत अरु उद्भ्रांत… कोई आँख...
मैं एक बात कहना चाहता हूँ। जन्मान्तरों की हमारी यात्रा है। पिछले किसी मोड़ पर कभी न कभी कहीं न...