असम: पुलिस बर्बरता के बाद भी बेदखली अभियान जारी

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गुरुवार (23 सितंबर) को असम के दारांग जिले के ढालपुर नंबर 3 गांव में असम पुलिस द्वारा स्थानीय लोगों के साथ बर्बरता की घटना सामने आई हैं। जिसके बाद इस घटना को ढालपुर गोलीकांड के नाम से जाना जा रहा है। मालूम हो कि असम के ढालपुर नंबर 3 गांव में गुरुवार को अतिक्रमणकारियों से ज़मीन को मुक्त कराने के लिए पुलिस पहुंची थी।

लेकिन ग्रामीणवासियों से जबरन ज़मीन खाली कराई जाने लगी। इस दौरन स्थानीय लोग और पुलिस फोर्स के बीच तनातनी हो गयी और एकतरफ जहां गांव वालों ने पत्थरबाजी की, तो दूसरी ओर पुलिस ने सीधे गोली बरसाना शुरू कर दिया। इस गोलीकांड में दो नौजवानो की जान चली गयी, गोली लगने के बाद उनके ज़ख्मी शरीर से बर्बरता भी की गई। इससे जुड़ी एक वीडियो ट्विटर पर मौजूद हैं।

क्या है वीडियो में :

इस बर्बरता की वीडियो, एक कविता कृष्णन ने अपने ट्विटर हैंडल पर सांझा की और असम पुलिस की कार्यवाही पर सवाल भी उठाए। 

 

इस वीडियो में एक तरफ स्थानीय लोग हैं जो बेदखली अभियान का विरोध कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ पुलिस थी। पुलिस के मुताबिक बेदखली अभियान का विरोध करने के लिए पत्थरों, नुकीले बाँस की डंडियों, कुल्हाड़ियों और भालों से लैस एक बड़ी भीड़ जमा हो गई थी।

वहीं दूसरी तरफ आधुनिक बंदूकों से लैस पुलिस की एक टुकड़ी थी जो लागातर स्थानीय लोगों से ज़मीन खाली करने और पीछे हटने की मांग कर रही थी। दोनों पक्षों में चल रही तनातनी के बीच पुलिस ने स्थानीय लोगों पर फायरिंग कर दी। जिसमें दो नौजवानो की जान चली गयी। खबरों के मुताबिक दोनों को सीने में गोली लगी थी।

असम के ढालपुर में स्थानीय लोगो पर पुलिस की फायरिंग के बाद मृत व्यक्ति के साथ बर्बरता करता हुआ फोटोग्राफर की एनिमेटेड इमेज (तस्वीर :ट्विटर)

आश्चर्य ये है कि वीडियो में दो व्यक्ति जो सिविल ड्रेस में हैं, गोली लगे युवाओं की छाती पर कूदते नज़र आ रहे हैं। इनमें से एक के हाथ में कैमरा और दूसरे के हाथ मे माइक है, इनका सम्बन्ध पत्रकारिता से बताया जा रहा है।

बेदखली अभियान में गवां दी जान :

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गुरुवार को असम में पुलिस की गोली से मरने वाले दोनों व्यक्ति की पहचान ढालपुर निवासी शेख फरीद और मयलन है। मयलन का परिवार ढालपुर गांव में कुछ किलोमीटर की दूरी पर रहता है। मयलन के पिता मोकबुल अली ने कहा- “मेरे बेटे ने असली भारतीय होने के बावजूद भी एक विदेशी के रूप में अपनी जान की कीमत चुकाई है” वो आगे कहते हैं कि उनके बेटे ने मामले में आक्रामकता दिखाई, लेकिन क्या वो मौत और वर्मिन ( फोटोग्राफर) की इस बर्बरता के लायक था।

तस्वीर : गूगल

दूसरी और शेख फरीद के पिता अब्दुल खालिक ने कहा – ” हमें नहीं पता था कि कब वो घर से चला गया, और जब पता चला तब बहुत देर हो चुकी थी”
वो आगे कहते हैं कि उन्होंने मेरे बेटे को अवैध रूप से मारा है, सरकार को हमें न्याय देना होगा। ताकि कोई और बाप अपने सर की छत बचने के लिए अपने बेटे को न खोए।

शेख फरीद 17 साल का था और 9वीं कक्षा में पढ़ता था। पढ़ाई के लिए अपने गांव ढालपुर नम्बर 2 से दो किलोमीटर दूर स्थित अपने स्कूल जाया करता था। 23 सितंबर को अतिक्रमणकारियों से ज़मीन खाली कराने के अभियान में पुलिस की गोलीबारी में जान गंवाने वाले दो युवकों में से एक था।

बेदखली अभियान जारी रहेगा :

घटना के दो दिन बाद असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने तल्ख़ रुख रखते हुए कहा कि ये बेदखली अभियान जारी रहेगा। हालांकि, उन्होंने इस बात को माना कि इसमें पुलिस को शामिल करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। बता दें कि इस घटना में दो स्थानीय लोगों की मौत के अलावा 11 पुलिस कर्मी घायल भी हुए हैं।

सरमा ने कहा कि ढालपुर गोलीकांड की जांच गुहाटी उच्च न्यायालय में सेवानिवृत्त न्यायाधीश से कराई जाएगी। वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बोरा ने अधिकारियों के निलंबन की मांग पर कहा – ‘घटना में दोनों अधिकारियों का निलंबन करने का सवाल ही नहीं उठता।’

घटना की निंदा की जा रही है :

ढालपुर में हुई घटना की निंदा करते हुए ऑल इंडिया यूनाइटिड डेमोक्रेटिक फ्रंट के प्रमुख मौलाना अबरुद्दीन अजमल ने कहा कि बेदखली अभियान के नाम पर अल्पसंख्यक समुदाय को प्रताड़ित किया जा रहा है। शुक्रवार को कांग्रेस नेता और ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट यूनियन ने सिपाझार पुलिस स्टेशन के तहत घटना क्षेत्र में पुलिस की बर्बरता के खिलाफ प्रदर्शन किया।

इसी कड़ी में कोंग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बोरा ने असम राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा। इसमें कहा गया कि जब तक एक उचित पुनर्वास योजना को सार्वजनिक नहीं किया जाता, तब तक बेदखली अभियान पर रोक लगाई जाए। इसके अलावा बोरा ने मुख्यमंत्री सरमा से उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक को तत्काल निलंबित करने की मांग की। बात दें कि वर्तमान में असम पुलिस अधीक्षक मुख्यमंत्री के भाई सुशांत बिस्वा सरमा हैं।

असम में हुई इस घटना की निंदा लेखक और कवि कुमार विश्वास ने भी की। उन्होंने ट्वीट किया और कहा कि पत्रकारिता पहली बार किसी की छाती पर नहीं चड़ी है, ऐसा पहले भी हो चुका है।

हम अतिक्रमणकारी नहीं,यही के निवासी है- स्थानीय निवासी

दी हिन्दू से बात चीत में एक ग्रामीण फैजुर रहमान ने कहा कि जिन्हें अतिक्रमणकारियों का लेबल दिया गया है वो दशकों से इसी क्षेत्र में रह रहे हैं। ब्रह्मपुत्र नहीं से भूमि के कटाव के बाद कई लोग यहां आए और बस गए। इनके पास जमीन है, भारत के प्रामाणिक मतदाता हैं और इन्हें NRC से भी बाहर नहीं किया गया है।