अंतरिक्ष कार्यक्रम और ASAT ए सैट की उपलब्धियां और चुनाव

Share

ए सैट A SAT परीक्षण पर उठे सारस्वत के बयान से अंतरिक्ष कार्यक्रम और उससे जुड़ी अन्य परियोजनाओं की गोपनीयता भंग होने का खतरा हो गया है। कल तक ऐसी उपलब्धियों की चर्चा वैज्ञानिक समुदाय करता था, और लोगों के लिये यह बहुत रोचक और चर्चा का विषय नहीं बनता था। लोग वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि को बिना किसी राजनीतिक चश्मे के सराहते थे, प्रशंसा करते थे और फिर अपने काम मे लग जाते थे।
पर अब जब चुनाव है और चुनाव आचार संहिता के बीच एक अत्यंत आवश्यक प्रसारण की सूचना कह कर के प्रधानमंत्री स्वयं  इसकी घोषणा करेंगे और डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख सार्वजनिक रूप से यह गोपनीय संवाद टीवी चैनलों पर उद्घाटित करेंगे कि हम तो 2012 में ही यह कर सकते थे और करना चाहते थे पर सरकार ने यह नहीं करने दिया उसमे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी, आदि आदि तो विरोधी और सजग नागरिक इस गोपन के सार्वजनिक होने की जांच और प्रतिवाद स्वतः करने लगेंगे। अब हुआ भी यही है।
यूपीए 2 की सरकार के समय मे एनएसए रहे शिवशंकर मेनन ने सारस्वत के इस बयान पर संदेह खड़ा कर दिया है। ए सैट परीक्षण पर डीआरडीओ के अध्यक्ष वीके सारस्वत ने कहा है कि उन्होंने यह परीक्षण करने की अनुमति 2012 में यूपीए सरकार से मांगी थी, पर सरकार ने नहीं दी। सरकार में राजनीति इच्छा शक्ति की कमी थी। आज तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने पूछा है कि यह अनुमति सारस्वत ने कब मांगी थी और किससे मांगी थी ? शिवशंकर मेनन के ही शब्दों में, ” यह मैं पहली बार सुन रहा हूँ। सारस्वत ने कभी भी ASAT के परीक्षण की अनुमति नहीं मांगी थी।”

द वायर के अनुसार,

” Refuting reports that the Manmohan Singh government refused to allow the Defence and Research Development Organisation (DRDO) to conduct a test of its anti-satellite capabilities, former national security adviser Shivshankar Menon told The Wire, “This is the first I have ever heard of it. Saraswat never asked me for permission for an ASAT test.”
2012 में सारस्वत कहते हैं कि डीआरडीओ ने यह तकनीक विकसित कर ली है, पर भारत यह परीक्षण इस लिये नहीं करेगा क्योंकि इससे अंतरिक्ष मे घातक खतरा फैल सकता है। अब जब वे नीति आयोग में दुबारा नौकरी पा गये हैं तो कह रहे हैं कि सरकार के पास राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी।
वेब पोर्टल सत्याग्रह के अनुसार, यूपीए सरकार के समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) रहे शिवशंकर मेनन ने एंटी-सैटेलाइट (ए-सैट) मिसाइल परीक्षण को लेकर हो रहे हंगामे के बीच महत्वपूर्ण जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि मनमोहन सिंह सरकार ने रक्षा एवं अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) को ए-सैट परीक्षण करने की अनुमति नहीं दी थी. खबर के मुताबिक शिवशंकर मेनन ने कहा, ‘मैं पहली बार ऐसा सुन रहा हूं. (वीके) सारस्वत (पूर्व डीआरडीओ प्रमुख) ने कभी भी ए-सैट परीक्षण की अनुमति को लेकर मुझसे नहीं पूछा.’
गौरतलब है कि 2013 में डीआरडीओ प्रमुख के पद से रिटायर होने के बाद वीके सारस्वत को मोदी सरकार में नीति आयोग का सदस्य बनाया गया था. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ए-सैट परीक्षण करने की घोषणा के बाद वीके सारस्वत ने कहा था कि पिछली सरकार ने इस तरह के लाइव टेस्ट की इजाजत नहीं दी थी. सारस्वत के मुताबिक उन्होंने यूपीए सरकार के समक्ष इस तरह के परीक्षण का प्रस्ताव रखा था, लेकिन उसमें ‘राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी’ थी । इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक सारस्वत ने कहा, ‘मुझे याद है कि मैंने मंत्रियों और एनएसए के सामने भी प्रेजेंटेशन दिए थे, लेकिन इसकी मंजूरी कभी नहीं मिली. इसकी कोई वजह नहीं दी गई।
सब चुप थे. दुनियाभर में होने वाले रक्षा और अंतरिक्ष से जुड़े कार्यक्रम गोपनीय रखे जाते हैं। इसका कारण ही यह होता है कि दुनिया के किसी और मुल्क को भनक न लगे। भारत मे भी जब 1974 और 1999 में परमाणु परीक्षण हुआ था तो उसकी भी कोई भनक किसी को नहीं रही। ASAT तकनीकी से हम सम्पन्न हो गए हैं यह भनक भी जिन्हें इस क्षेत्र में रुचि है उन्हें हो तो हो पर आम जनता को नहीं थी। परीक्षण की सफलता की गोपनीयता की बात मैं नहीं कर रहा हूँ। परीक्षण होते ही हम घोषित करें या नहीं दुनियाभर के बड़े और असरदार देश यह जान जाएंगे। पर सारस्वत के यह बताने के बाद वे पहले 2012 में ही यह परीक्षण कर सकते थे पर राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण उन्हें अनुमति नहीं मिली तुरन्त राजनीतिक रंग ले लेगा और इस बयान ने  यह रंग ले भी लिया। आज शिवशंकर मेनन ने उनके बयान का प्रतिवाद किया कल हो सकता है इस बारे में और भी कुछ पोशीदा हो वह सार्वजनिक हो जाय।
अब जरा इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर के बारे में । जी माधवन नायर के खिलाफ एंट्रिक्स देवास मामले में उक्त कम्पनी को 578 करोड़ रुपये का गलत लाभ पहुंचाने के मामले में सीबीआई ने जांच के बाद दोषी पाया और उनके खिलाफ आरोप पत्र दिया। अदालत में दाखिल इस आरोप पत्र में अंतरिक्ष विभाग के सचिव वीणा इस राव, पूर्व निदेशक इसरो भास्कर नारायण राव, और एंट्रिक्स के अन्य अधिकारी भी शामिल थे। माधवन नायर सहित सभी अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी कानून के अंतर्गत भी कार्यवाही की गयी है। इन अधिकारियों ने जी सैट 6 ( GSAT – 6 ) और जी सैट 6 ( GSAT – 6A ) उपग्रहों में लगने वाले उपकरणों की आपूर्ति देने में देवास कम्पनी को अनधिकृत रूप से लाभ पहुंचाया। इससे इसरो को 578 करोड़ रुपये की हानि हुयी। 2016 में आरोप पत्र सीबीआई द्वारा दाखिल कर दिए जाने के बाद माधवन नायर ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली।
ऐसे महत्वपूर्ण अनुसंधान और कार्यक्रमो को चुनाव की राजनीति से दूर रखा जाना चाहिये था। पर यह भी सरकार और भाजपा की मजबूरी है कि वे आखिर अपनी उपलब्धियों को बताएं तो कैसे बतायें। नोटबंदी, जीएसटी, पठानकोट, उरी, पुलवामा हमलों की सुरक्षा चूक, बेरोजगारी, संकल्पपत्र 2014 के वादे, गिरती जीडीपी आदि आदि पर आखिर वे कहें भी तो क्या कहें । अब वक्त भी तो नहीं बचा। जब दो महीने ही शेष बचे तो आलम ए बदहवासी में सोचा गया कि चलो 2012 की ही बंदूक दाग दें। उधर यह परीक्षण हुआ, इधर पीएम नरेंद्र मोदी घर घर मे नमूदार हुये, और उधर शांतिपर्व में आ चुके सारस्वत के कंठ से सरस्वती फूट पड़ीं। पर सारस्वत और माधवन नायर के किसी भी बयान के पढ़ने के पूर्व यह तथ्य भी जान लें कि माधवन साहब 2016 के एक मामले में सीबीआई द्वारा आरोपित हैं और उसके बाद उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। अब वे भाजपा के सदस्य हैं, और सारस्वत, NITI आयोग के सदस्य।
ISRO इसरो की सफलता और उसके वैज्ञानिकों की मेहनत पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है और न उठाएगा। क्योंकि यह प्रगति निरन्तर हो रहे शोधों और अनुसंधान का परिणाम है। आज भारत निःसंदेह दुनिया की चौथी ताकत बन गया है जो अंतरिक्ष मे किसी उपग्रह को नष्ट कर सकता है। सरकार और सरकार के मुखिया भी ऐसी उपलब्धि के लिये श्रेय ले सकते हैं। जब हम तमाम विफलताओं के लिये सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं तो निश्चय ही उपलब्धियों के लिये सरकार की तारीफ करनी चाहिये। लेकिन जब ऐसी उपलब्धि चुनाव के लिये मुद्दा बनायी जाएगी तो उस की आलोचना, निंदा, और उसकी जांच पड़ताल भी होगी और फिर वह सब भी खुल कर सामने आ सकता है जो देश हित मे जानबूझकर गोपनीय रखा गया हो।

© विजय शंकर सिंह