अगस्त 1943 में पहली बार प्लाज़्मा थेरेपी प्रयोग में आई थी। प्लाज़्मा होता क्या है? असल में हमारा ब्लड दो हिस्सों में होता है। इसमें 45% हिस्सा लाल रक्त कोशिकाओं एवं 55% हल्का पीला रंग का होता है जिसे प्लाज़्मा कहते हैं।
इस प्लाज़्मा में प्रोटीन/हॉर्मोन/प्लेटलेट्स/एंटीबॉडीज़ होती हैं। इनका इस्तेमाल कई बिमारियों में होता है। प्लाज़्मा जैसे खून निकालते हैं ठीक वैसे ही निकाला जाता है। इसमें अंतर बस इतना होता है कि डोनर के ब्लड में से प्लाज़्मा अलग करके बाक़ि का ब्लड उसमें वापिस डाल दिया जाता है। प्लाज़्मा का यह उपयोग इससे पहले सॉर्स नामक बिमारी में किया गया था, अब कोविड-19 से जूझ रहे गंभीर रोगियों के लिए यह जीवनदायक साबित हो रहा है।
तो कहने का मतलब बस इतना है कि जिन तबलीगियों को मीडिया वालों ने विलेन बना कर दिखाया, वही तबलीगी अब लोगों की जान बचाएंगे। उनका प्लाज़्मा कोरोना से पीड़ित रोगियों के जिस्म में चढ़ाया जाएगा, हिंदू-मुसलमान के शरीर में नहीं। नफरत के सौदागरों, तुम सबके मुंह पर तमाचा जड़ना शुरू हो गया है। कोरोना के साथ ही साथ, तुमसे भी निपट रहे थे, निपटेंगे।
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