भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट में कहा गया है, कि जम्मू-कश्मीर में सरकार के कुछ गैर-पारदर्शी खर्चों की वजह से इसके अकाउंट्स की ठीक जानकारी नहीं मिली । सीएजी ने कहा कि उसने 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के खर्च के हेरफेर का पता लगाया है।
तत्कालीन सीएजी आशीष महर्षि ने रिपोर्ट में कहा है, कि माइनर हेड 800 के अंतर्गत बजट और अकाउंटिंग संभालने से रसीदों की पहचान, खर्चे और राजस्व की पहचान मुश्किल हो जाती है, जिससे अकाउंट्स पारदर्शी नहीं रहते।
2017-18 में राज्य सरकार खर्चों के लिए केंद्र की मदद पर निर्भर था। यह निर्भरता इतनी ज़्यादा थी, कि जम्मू-कश्मीर सरकार के कुल राजस्व का 47 फीसदी केंद्र की ग्रांट से ही मिलता था। बताया गया है कि 2016-17 के 20 हजार 598 करोड़ से 2017-18 में इस ग्रांट को बढ़ाकर 22 हजार 702 करोड़ कर दिया गया। यानी ग्रांट में कुल 2104 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई।
सीएजी की समीक्षा में कहा गया है कि राज्य के 2016-17 के 48 हजार 174 करोड़ रुपए के खर्च के मुकाबले 2017-18 में यह बढ़कर 51 हजार 294 करोड़ हो गया। यानी 2017-18 में राज्य के खुद के 13 हजार 898 करोड़ के संसाधन भी उसके खर्चों को पूरा करने के लिए काफी नहीं थे। तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार सैलरी, पेमेंट, पेंशन और सब्सिडी के लिए 27 हजार 500 करोड़ रुपए खर्च करती थी।
सीएजी के मुताबिक, राज्य सरकार की ओर से बजट तय करने, सेविंग्स और खर्चों में बड़ी त्रुटियां थीं। 31 मार्च 2018 में तो राज्य विधानसभा की ओर से किए गए 1 लाख 14 हजार करोड़ के अतिरिक्त खर्चे का नियमितीकरण किया जाना था।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीपी का गठबंधन टूटने के बाद जून 2018 को राज्यपाल शासन लगा दिया गया था। बाद में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया और मोदी सरकार ने दूसरा कार्यकाल मिलते ही कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया। जम्मू-कश्मीर को अब दो केंद्र शासित प्रदेश- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया है।
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