Share

आँखो की शर्म का भी मर जाना इसे ही कहते हैं

by Rahul Kotiyal · January 6, 2020

जो जेएनयू में हुआ, सोचिए ऐसा ही कुछ अगर यूरोप या अमरीका में कहीं हुआ होता तो वहां के प्रधान की क्या प्रतिक्रिया होती? अमरीका कोई आदर्श नहीं लेकिन फिर भी सोचिए, अगर हॉर्वर्ड में घुसकर कुछ नक़ाबपोशों ने ऐसे ही वहां के छात्रों और शिक्षकों के सर फोड़ दिए होते तो क्या ट्रम्प ऐसी चुप्पी साधे रह सकते थे जैसे अपने प्रधान फ़िलहाल साधे हुए हैं।
देश का सर्वोच्च विश्वविद्यालय, जो ठीक देश की राजधानी में स्थित है। वहां इतना बड़ा हादसा हो गया और उस प्रधान के कान पर जूँ नहीं रेंगी। जो कहता है कि देश सुरक्षित हाथों में है और जो गुंडों को कपड़ों से पहचान लेने का हुनर रखता है।
आँखो की शर्म का भी मर जाना इसे ही कहते हैं। जब शहर जल रहा है तो 18-18 घंटे काम करने वाला प्रधान सो रहा है. और कल जब प्रधान से इस बाबत सवाल पूछे जाएँगे तो प्रधान ख़ुद इसका जवाब भी नहीं देगा. वो ऐसे किसी व्यक्ति को इंटर्व्यू ही नहीं देगा जो ये सवाल उससे पूछ सके कि तुम उस रात क्या कर रहे थे?
लेकिन उसकी टीम जवाब तैयार ज़रूर करेगी। फिर से कोई विवेक ओबरॉय आएगा जो बताएगा कि 5 जनवरी की रात असल में प्रधान अकेले में रोते हुए चीख रहे थे कि ‘हाय, मेरा जेएनयू जल रहा है’। असल में हमारे प्रधान का सीना चौड़ा नहीं, चमड़ी मोटी है। पूरे 56 इंच की।

You may also like