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अविश्वास प्रस्ताव से भाजपा को क्या है नुकसान ?

by Ankita Chauhan · March 18, 2018

एनडीए की सरकार को बने हुए चार साल हो गए है अभी तक एनडीए के सहयोगी दलों की सिर्फ शिकायतें और नाराज़गी ही सामने आ रही थी लेकिन अब गठबंधन का टूटना भी शुरू हो गया जिसकी शुरुआत की है टीडीपी ने।
तेलुगु देशम पार्टी ने औपचारिक रूप से मोदी सरकार से अलग होने का ऐलान कर दिया है जिसके बाद एनडीए सरकार की सियासी राहें मुश्किल होने वाली है, इसी के साथ विपक्ष को भी एकजुट होने का सही मौका मिल गया।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि अब उन्हें मोदी सरकार पर बिल्कुल यकीन नही रहा, मोदी सरकार किये गए वादों को भूल रही है। इससे पहले आठ मार्च को टीडीपी के दो मंत्रियों अशोक गजपति और वाईएस चौधरी ने नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
टीडीपी इस गठबंधन से अलग होने वाली पहली पार्टी है,नायडू से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को चिट्ठी लिखकर उन परिस्थितियों से अवगत कराने का फैसला किया है , जिसकी वजह से टीडीपी एनडीए से अलग हुई है।

क्या रहा कारण

आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जे की मांग पर केंद्र का रवैया पक्ष में न होने पर यह फैसला लिया गया है। चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि ” अरुण जेटली ने कहा भवनाएं धन की मात्रा में वृद्धि नहीं कर सकती। यह कितना लापरवाही वाला बयान था। तेलंगाना भावनाओं पर ही तैयार किया गया। भावनाएं बहुत ताक़तवर होती है। अब आप अन्याय कर रहे है।”  नायडू ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि बीजेपी वाईएस जगनमोहन रेड्डी और जन सेना पार्टी के अध्यक्ष पवन कल्याण की मदद से टीडीपी को कमजोर कर रही है और न ही आंध्र प्रदेश को लेकर अपना कोई नही वादा पूरा कर रही है।
बयान से साफ़ दिखाई पड़ता है कि टीडीपी की राज्य के प्रति भावनाओं पर टिकी मांग ने दोनों के बीच दूरियां पैदा कर दी, सरकार की किसी भी मजबूरी को पर टीडीपी भरोसा करने को तैयार नही, अपनी मांग और राज्य के लोगो के लिए प्रतिबद्घता ने मोदी सरकार से राहें अलग करने को मजबूर कर दिया।

सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव

केंद्र सरकार अपने चार साल के कार्यकाल में पहली  बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही है, लोकसभा में वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी , दोनों दलों ने सरकार के ख़िलाक अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। कांग्रेस, सीपीएम, डीएमके, AIMIM, तृणमूल सहित कई दलों ने इस प्रस्ताव को समर्थन देने का ऐलान किया है।
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए कम से कम पचास सांसदों का समर्थन जरूरी है। विपक्षी दलों के एकजूटता को देखते हुए यह मुश्किल नहीं है।
नायडू ने कहा कि उनकी पार्टी इस प्रस्ताव के लिए और पार्टियों से भी समर्थन मांगेंगी। टीडीपी ने अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष को नोटिस सौंप दिया है और प्रस्ताव लेन के लिए जरूरी पचास सांसदों के दस्तखत जुटाये जा रहे है। हालांकि शुक्रवार को हंगामे की वजह से इस पर चर्चा नहीं हो सकी अब नज़रे सोमवार पर है।

अन्य दलों ने भी दिखाई आँखे

अकाली दल  –  अकाली दल एनडीए के सबसे पुराना सहयोगी है गठबंधन को लेकर इसमें दो सुर है एक तरफ पार्टी की नेता व केंद्र में मंत्री हरसिमरत कौर पूरी तरह गठबंधन के साथ रहने की बात करती है तो दूसरी तरफ अन्य नेता नरेश गुजराल बीजेपी पर क्षेत्रीय पार्टियों की बात न सुनने का आरोप लगाते है।
जेडीयू – बिहार में गठबंधन में शामिल होने का बाद जेडीयू भाजपा के साथ गठबंधन से फायदा लेने की कोशिश में है जेडीयू ने बिहार को विशेष दर्जे की पुरानी मांग याद दिलाई है जेडीयू के नेता के सी त्यागी और नीतीश कुमार इस मांग की उठा चुके है। उन्होंने कहा है कि इस मांग को लेकर वह संघर्ष करते रहेंगे।
शिवसेना – शिवसेना पहले से ही नाराज़ चल रही है उसने यहां तक कह दिया है कि 2019 में भाजपा को कम से कम 110 सीटों का नुकसान उठाना होगा। अविश्वास प्रस्ताव पर अभी उसने पत्ते नही खोले है पर संकेत अधिक शुभ नही है।
एलजेपी – एलजेपी के चिराग पासवान ने भाजपा की हाल ही में हुई हार को उनके लिए बुरा बताया है उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने को लेकर दुभयपूर्ण बताया है इसके अलावा अन्य सहयोगी भी भाजपा से नाराज़ चल रहे है।

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