ग्रेटा थंबर्ग 16 साल की एक्टिविस्ट को हमें सुनना चाहिए

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आज विश्व भर में विकास की होड़ लगी हुई है। इसी विकास की होड़ में हम इस तरह से आगे बढ़ रहे हैं कि हम यह भी भूल बैठे हैं कि जिस आबो -हवा में सांस ले रहे हैं। जिसकी वजह से मानव जीवन अस्तित्व बना हुआ है.अगर मनुष्य अपने स्वार्थ हेतु इसी प्रकार से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोगकर्ता रहेगा और उसके महत्व को नहीं समझेगा यही प्रकृति अपने विकराल रूप से पृथ्वी का अंत भी साबित हो सकती है।

क्योंकि आए दिन दुनिया गर्म हो रही है और तापमान में आए दिन इजाफा हो रहा है ,जिसकी वजह से बेमौसम बारिश का होना,कहीं पर बाढ का संकट और पहाड़ी इलाकों में चट्टानों का भूस्खलन होना,बंजर भूमि ,अकस्मात बादलों का फटना यह सभी दर्शाते हैं कि जलवायु परिवर्तन कितनी तेजी से हो रहा है जो कि भविष्य में खतरनाक साबित हो सकता है।

पर्यावरण संबंधी राजनीति की भूमिका

पर्यावरणविद्, प्राकृतिक पर्यावरण की कानून द्वारा रक्षा सुधार तथा पुनर्स्थापना का पक्ष लेता है। क्योंकि आज हम सिर्फ और सिर्फ उपभोक्तावादी , बाजारवादी और सुविधा पूर्ति बन चुके हैं। इसमें पर्यावरण का कोई महत्व नहीं है यह सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों की लूट है।

विश्व भर के वैज्ञानिकों के चेताये जाने पर भी सभी राष्ट्रों में आर्थिक लाभ पाने की होड़ लगी है क्योंकि यहां पर सभी संसाधनों को वैश्विक पूंजीवाद से जोड़ दिया गया है। और इस लाभ की राजनीति ने पर्यावरण संरक्षण के लिए कोई भी ऐतिहासिक जिम्मेदारी उठाने से अपना मुंह चुरा लेती है।

यह विकास नहीं विनाश है जिसे हम अपना विकास समझ कर आगे बढ़ते जा रहे हैं। विकास के जिस पश्चिमी मॉडल ने, औद्योगिक मॉडल ने पर्यावरण को तो छिन्न-भिन्न किया ही है साथ ही साथ सामाजिक बिखराव और जो सामाजिक असमानता फैली है वह सभी इसी के परिणाम हैं।

पूरे विश्व में पर्यावरण संरक्षण को लेकर अनेक वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् प्राकृतिक संरक्षण को लेकर चिंतित रहते हैं और इसी कोशिश में लगे हुए हैं की ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक किया जा सके और पर्यावरण दोहन को रोका जा सके।

क्योंकि मनुष्य अपने लाभ और विकास की ऐसी चक्की में पीसता जा रहा है जिसमें वह प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता जा रहा है और पर्यावरण संरक्षण कानून सिर्फ और सिर्फ नाम के लिए ही है।

अभी हम आपको एक ऐसी शख्सियत के बारे में बताना चाहते हैं जिन्होंने महज 15 वर्ष की उम्र में ही यह ठान लिया था कि पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनायेंगी। और स्वीडन की इस किशोरी के आंदोलन के फल स्वरुप विश्व के नेता जलवायु परिवर्तन पर कार्य करने के लिए विवश हो गए हैं।

2019 में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भाषण के दौरान उनका ध्यान दुनिया की तरफ ज्यादा खींचा था जिसमें उन्होंने कुछ इस तरह से भाषण दिया था, कि आपकी हिम्मत कैसे हुई, अपनी मेरी सपने चुरा लिया है और भावी पीढ़ियों के लिए सिवाय चिंता के कुछ नहीं बचा है।इस तरह के भाषण से दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को लेकर क्रांति का आह्वान किया था।

स्वीडन की ग्रेटा जो मिसाल बनीं।

अगस्त 2018 में ग्रेटा थनबर्ग ने अपने स्कूल से समय निकालकर हाथ में स्वीडन की भाषा में (skolstrejk for climate) जलवायु के लिए स्कूल बंदी लिखी तख्ती लिए स्वीडन की संसद के बाहर प्रदर्शन किया था।

जब ग्रेटा के द्वारा स्वीडन की संसद के बाहर हर शुक्रवार को अपना स्कूल छोड़ा था तभी सभी में इसका प्रभाव भी देखने को मिलने लगा था। शीघ्र ही अन्य आस पड़ोस के कई देशों में #फ्राईडेज फॉर फ्यूचर के साथ एक मुहिम शुरू हो गई थी। सबने मिलकर जलवायु के लिए स्कूली बंदी का एक आंदोलन ही शुरु कर दिया।

तब से इन्हें स्वीडन की एक पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है। ग्रेटा एक ऐसी पर्यावरण कार्यकर्ता है जो कि सीधे और सरल शब्दों में बात करने के लिए जानी जाती हैं। वे जहां भी जाती है और जिन सभाओं में अपने भाषण देती है उनमें वो अपने सभी राजनीतिक नेताओं के साथ वार्ता में जलवायु संकट पर तुरंत कार्यवाही करने का आग्रह करती हैं। उनकी प्रसिद्धि को देखते हुए एक तरफ तो वो नेता के रूप में उभरी है दूसरी तरफ उनकी आलोचना भी की गई है। इसी बीच उन्हें कुछ सम्मान और पुरस्कार भी प्रदान की जा चुके हैं।

आंदोलन की शुरुआत।

स्वीडिश जलवायु और पर्यावरण कार्यकर्ता ने इस मुहिम की शुरुआत पहले अपने घर से ही की थी उन्होंने अपने माता पिता को एक ऐसी जीवन शैली के लिए प्रेरित किया था जिसमें जलवायु को नुकसान ना पहुंचे।

ग्रेटा थनबर्ग पर्यावरण और जलवायु संकट का अहम चेहरा बन चुकी है.
ग्रेटा थनबर्ग को एक फैशन पत्रिका जिसका नाम वोग् स्कैंडिनेविया है ने अपनी मैगजीन के पहले क़वर पेज पर चित्रित किया है। जिस का विरोध करते हुए ग्रेटा ने फैशन उद्योग को जलवायु संकट का विशाल कर्ता-धर्ता माना है।

किशोर जलवायु प्रचारक ग्रेटा थनबर्ग वोग स्कैंडिनेविया के पहले अंक के कवर पर दिखाई दीं और जिसमें उन्होंने फैशन उद्योग की आलोचना करनी शुरू कर दी। रविवार शाम को थनबर्ग ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पत्रिका के पहले पेज की एक तस्वीर शेयर करते हुए एक बड़े आकार का ट्रेंचकोट पहने हुए दिखाई दे रही है।

ग्रेटा का मानना यह है कि जलवायु और पारिस्थितिकी आपातकाल में फैशन उद्योग का बहुत बड़ा योगदान है दुनिया भर में उन अनगिनत श्रमिकों और समुदायों का आंकड़ों का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलेगा जहां पर इनका शोषण किया जाता है।

वो कहती हैं कि फैशन उद्योग सिर्फ दिखावे के लिए महंगे प्रचार अभियानों का प्रयोग करता है। जिससे वे टिकाऊ स्थिति में बने रहे। दुनिया भर में फैशन एक आनंद की तरह बन गया है । इसलिए वास्तविकता में देखा जाए तो फैशन उद्योग सिर्फ और सिर्फ दिखावा मात्र के लिए पर्यावरण रक्षा प्रचार प्रसार करता है। जिसमें आगे ग्रेटा यह भी कहती हैं कि उन्होंने लगभग 3 वर्ष से कोई भी नया वस्त्र नहीं खरीदा है।

वे किसी भी अपनी जान पहचान वाले से वस्त्र उधार ले लेती हैं। क्योंकि उनका मानना है कि दुनिया भर में कपड़ों के उत्पादन और खपत के तरीके में बदलाव आना चाहिए। ग्रेटा कहती है कि आप बड़े पैमाने पर फैशन का उत्पादन नहीं कर सकते यह स्थाई रूप से उपयोग भी नहीं कर सकते क्योंकि आज दुनिया आकार ले रही है। यहीं कई कारणों में से एक है कि हमें सिस्टम में बदलाव की आवश्यकता होगी।

ग्रेटा थनबर्ग कहती हैं कि तकनीक की तरफ कोई कार्यवाही ना करना सबसे बड़ा खतरा नहीं है वास्तविक खतरा यह है कि जब राजनेता और सीओ यह दिखावा करते हैं कि हकीकत में कार्यवाही की जा रही है जबकि वास्तविकता यह है कि चालाकी भरे आंकड़े बाजी और क्रिएटिव पीआर के सिवाय कुछ भी नहीं हो रहा है। अंत में कहती है कि “आप हार गए हैं, भविष्य में अगर हम इसकी चिंता नहीं करेंगे”.

ग्रेटा थनबर्ग के अलावा और भी विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् है जो कि पर्यावरण की सुरक्षा हेतु और इसके संरक्षण हेतु कार्य करते आए हैं और वे नहीं चाहते कि पर्यावरण संरक्षण कानून सिर्फ और सिर्फ कानून बन कर रह जाए।

इसलिए बड़े पैमाने पर पर्यावरण आंदोलन एक राजनीतिक और नैतिक आंदोलन के रूप में सुधार और पर्यावरण की दृष्टि से हानिकारक मानव गतिविधियों में परिवर्तन माध्यम से प्राकृतिक पर्यावरण की गुणवत्ता की रक्षा करना चाहते हैं। ये अपना कर्म और धर्म पर्यावरण संरक्षण को ही मानते हैं।

विश्व के जाने-माने पर्यावरणविदों के नाम –
काजी खोलिकुज्जामन अहमद (पर्यावरण कार्यकर्ता और बांग्लादेश के अर्थशास्त्री) वंगारी माथई(केन्या), हंटर लोविंस आदि शामिल हैं।