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धर्म रक्षा नहीं, बल्कि जनता के लिये सुविधाओं को मुहैया कराना सरकारों का काम है

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एक बहुत बड़ी साज़िश चल रही है हमारे देश में। मुसलमानों के धर्म पर ऊँगली उठाओ। वो बदले में हिंदुओं के धर्म पर सवाल करेंगें। पूरे देश के मुसलमान एक जगह हो जाएँगे और हिंदू एक जगह और एक दूसरे के धार्मिक, राजनैतिक व वैचारिक दुश्मन बन इस तरह से हम सब अपने अपने धर्म के रखवाले तो बन जाएँगे पर हमारा भारत बिखर जाएगा। इसका फ़ायदा सिर्फ़ और सिर्फ़ कुछ राजनैतिक दल उठाएँगे। फिर ना कोई ग़रीबी पर सवाल होगा ना बेरोज़गारी पर ना सामाजिक असमानता पर ना गुंडागर्दी पर ना भूकमरी पर ना शिक्षा पर ना स्वास्थ्य सेवाओं पर। बस रह जाएगा तो सिर्फ़ और सिर्फ़ धर्म की राजनीति और राजनीति में धर्म। मुझे डर है कहीं हम पाकिस्तान ना बन जाएँ।
इस वक़्त हम सबको चाहिए की हम एक दूसरे के धर्म और आस्था का सम्मान करें। ख़ुद को और देश को राजनीतिक पार्टियों के छलावे से बचायें। अगर आपको किसी भी धर्म के बारे में कोई जानकारी चाहिए तो उस धर्म के विशेषगयों से मालूम करें ना की सोशल मीडिया पर टिप्पणी करें। हम सब को इस वक़्त एकता की बहुत ज़रूरत है। जो लोग दूसरों की बुराई करें उनका बहिष्कार करें।
एक बार इराक़ के बादशाह हरूंन रशीद ने अपने बेटे से कहा था कि बादशाह बे औलाद होते हैं। बेटे ने हैरत से पूछा वो कैसे मैं तो आपका बेटा हूँ फिर आप बे औलाद कैसे हुए? जवाब दिया कि तुम हरूंन रैशीद के बेटे हो बादशाह के नहीं अगर कल को तुम भी मेरी गद्दी की दावेदारी करोगे तो उसका जवाब मेरी तलवार देगी तुम्हारा बाप नहीं।
यही हाल हमारी राजनीति का है हर पार्टी किसी ना किसी समुदाय के मसीहा होने का दावा करती है। कोई धर्म के हिसाब से कोई ज़ाती के हिसाब से कोई भाषा के हिसाब से तो कोई प्रान्त के हिसाब तो कोई आर्थिक हालात के हिसाब से आम जनता का भरोसा जीतने की कोशिश करती हैं और कुछ हद तक कामयाब भी हो जाती हैं। लेकिन इस सबके पीछे मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ता हासिल करना होता है। सत्ता के हासिल होते ही इनके रंग बदल जाते हैं और यह अपने समर्थकों को भूल अपने स्वार्थ में लग जाते हैं।

हर पाँच साल में यह खेल दोहराया जाता है और जनता फिर धर्म,ज़ाती, भाषा और प्रान्तवाद में बँट जाती है। हमारा राजनीतिक समर्थन हमेशा इनहि ग़ैर बुनियादी बातों पर निर्भर करता है। यही वजह है की आज़ादी के सत्तर सालों के बाद भी देश की अधिकतर जनसख्या ग़रीब है शिक्षा, स्वास्थ, सुरक्षा, समाजिक समानता, राशन, साफ़ पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है। चुनाव आते ही अचानक सारे धर्म और ज़ाती ख़तरे में आ जाते है और जनता को समझाया जाता है की धर्म और ज़ाती बच जायेगी तो विकास भी हो जायेगा बस इस बार जितवादो सरकार बनते ही सब ठीक हो जायेगा।
भारत वर्ष के लोग बुनियादी तौर पर जज़्बाती होते हैं और हर बार इसी तरह की बातों में आकर अपना वोट देते हैं। अक्सर लोगों को कहते सुना है “अरे चाहे पार्टी और उम्मीदवार कैसा भी है, है तो अपने समाज का इसिको वोट देंगे”। सरकार बन ने के बाद क्या होता है वो सबके सामने है। हमारे इसी रवैये की वजह से हमारी सियासत ऐसी बाँझ हो गयी है जिसके यहाँ विकास नाम की सन्तान पैदा हो ही नहीं सकती।
इस वक़्त की सबसे बड़ी ज़रूरत यही है कि हम सबको यह समझना पड़ेगा कि सरकारों का काम धर्म की रक्षा करना नहीं है बल्कि उनका काम है जनता के लिये सुविधाओं को मुहैया कराना। यक़ीन जानिये जिस दिन देश की आधी जनता भी इन राजनेताओं से यह माँग करना शुरू कर देगी उस से देश और देश की राजनीति बदलनी शुरू हो जायेगी। किसी भी राजनैतिक दल के इतने भक्त मत बनिए की आप उनसे सवाल करने की और अपना अधिकार माँगने की हिम्मत ही खो दो। मतदाता बनिए फ़ैन नहीं
आपका भाई
ख़ालिद सैफ़ी।