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क्या है तेल कीमतो का खेल

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2009 में शाहिद कपूर की एक फिल्म आई थी ‘कमीने’…उसी फिल्म के एक गाने के बोल थे-
आजा आजा दिल निचोड़े,
रात की मटकी फोड़े,
कोई गुडलक निकाले,
आज गुल्लक तो फोड़े,
है दिल दिलदारा मेरा तेली का तेल,
कौड़ी कौड़ी पैसा पैसा पैसे का खेल,
चल चल सड़कों पे होगी ठैन ठैन
डैन टड़ैन…डैन टड़ैन…डैन टड़ैन…
 
ऐसा ही ‘तेली का तेल, कौड़ी कौड़ी पैसे का खेल’ देश में ऑयल कंपनियों और सरकार की ओर से खेला जा रहा है. इसी खेल से हमारी-आपकी जेब में आग लगी हुई है. पेट्रोल और डीजल की कीमतें 2014 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई हैं. आज यानि 15 सितंबर को मुंबई में उपभोक्ता को पेट्रोल के दाम 79.54 रुपए प्रति लीटर चुकाने पड़ रहे हैं.
चार मेट्रो शहरों में पेट्रोल के दाम प्रति लीटर (15 सितंबर 2017)
मुंबई- 79.54 रुपए
दिल्ली- 70.43 रुपए
कोलकाता- 73.17 रुपए
चेन्नई- 73.01 रुपए
आखिर क्यों पेट्रोल के दाम पिछले 3 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर हैं? ऐसा क्या हो गया है जो कच्चे तेल (क्रूड) के अंतरराष्ट्रीय दाम गिरने के बावजूद भारत में पेट्रोलियम उत्पादों के दाम बढ़ते जा रहे हैं. तेल के खेल की बारीकियों को आसान भाषा में समझना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि ये मसला हम और आप सभी से जुड़ा है…
चलिए सबसे पहली बात, जब 2014 में मोदी सरकार ने केंद्र में सत्ता संभाली थी तो उस वक्त कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम 108 डॉलर प्रति बैरल थे. वहीं आज की तारीख में कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम 53 डॉलर प्रति बैरल हैं. यानि कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दामों में इस दौरान 53 फीसदी की कमी आई है. फिर इसका फायदा हम और आप जैसे उपभोक्ताओं को क्यों नहीं मिला? क्यों मुंबई में पेट्रोल 80 रुपए छू रहा है. कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों से देश में पेट्रोल उत्पादों की कीमत को जोड़कर देखना बड़ा जेनेरिक सा है. इसकी पेचीदगियों को समझना ज़रूरी है.
आपने देखा होगा कि जब कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों का हवाला दिया जाता है या पड़ोस देशों में भारत की तुलना में पेट्रोल-डीजल के कम दामों की बात कही जाती है, तो सत्ता पक्ष की ओर से तर्क दिए जाते हैं कि पेट्रोल कंपनियां घाटे में हैं, सब्सिडी घटाई जानी चाहिए या खत्म की जानी चाहिए. पेट्रोल उत्पादों के दामों की डि-कंट्रोलिंग की वकालत भी ऐसे ही तर्कों का नतीजा है.
चलिए अब सीधे देश में चल रहे तेल के खेल पर आते हैं-
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि कच्चा तेल यानि ब्लैक गोल्ड अरब देशों में सबसे ज़्यादा होता है. रूस में भी इसकी प्रचुरता है. इसके साथ ही अमेरिका में शेल तेल (कच्चे तेल का विकल्प) खूब निकलने लगा है. यही वजह है कि कच्चे तेल की मांग गिरने की वजह से सऊदी अरब जैसे तेल निर्यातक देशों का बाजा बजा हुआ है. कच्चे तेल के दाम गिरने की वजह से अरब देशों की अर्थव्यवस्था ही हिली हुई है.
भारत अरब देशों से कच्चे तेल का आयात करता है तो ये वहां से समुद्र के रास्ते जहाजों से हमारे बंदरगाहों तक पहुंचता है. वहां से ये सीधे तेल कंपनियों की रिफाइनरी में पहुंचता है. वहां से रिफाइन होकर पेट्रोल, डीजल ऑयल टैंकरों के जरिए पेट्रोल पंपों तक पहुंचता है. वहां से हमारी गाड़ियों में.
यहां 13 सितंबर को देश में पेट्रोल-डीजल के जो दाम थे, उसको लेकर एक आसान हिसाब जानिए. उस दिन रिफाइनरी से एक लीटर पेट्रोल खरीदने का दाम 26.65 रुपए था. इस पर रिफाइनरी यानि ऑयल कंपनी का मार्केटिंग मार्जिन और पेट्रोल पंप पर पहुंचाने का खर्च 4.05 और जोड़िए. फिर इस पर सेट्रल टैक्स लगाइए 21.48 रुपए. यानि डीलर (पेट्रोल पंप मालिक) को एक लीटर पेट्रोल 52.48 रुपए का पड़ा. यही पेट्रोल डीलर ने आप-हम जैसे उपभोक्ताओं को दिल्ली में 70.38 रुपए प्रति लीटर बेचा. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उसने अपनी कमीशन 3.24 रुपए प्रति लीटर के साथ 14.96 रुपए लोकल टैक्स (वैट) और सेस के भी जोड़े.
13 सितंबर 2017 दिल्ली के रेट
रिफाइनरी से पेट्रोल खरीदने के दाम- 26.65 रु लीटर
मार्केटिंग मार्जिन, पेट्रोल पंप तक पहुंचाने का खर्च- 04.05 रु लीटर

सेंट्रल टैक्स (एक्साइज ड्यूटी आदि)- 21.48 रु लीटर

पेट्रोल डीलर को पेट्रोल की कीमत 52.48 रु लीटर
डीलर का मुनाफ़ा- 03.24 रु लीटर

लोकल टैक्स (वैट) और सेस 14.96 रु लीटर

दिल्ली में उपभोक्ता को खर्च करने पड़े 70.38 रु लीटर
 
इसे दूसरी तरह भी समझिए. पेट्रोल के वास्तविक दाम कितने थे और उस पर टैक्स कितना लगा. रिफाइनरी, डीलर का मुनाफा, ट्रांसपोर्टेशन का सब खर्च मिलाकर एक लीटर पेट्रोल सिर्फ 33.94 (26.05+4.05+3.24) रुपए का ही था लेकिन दिल्ली में इस पर सेंट्रल और लोकल टैक्स लग गया 36.44 (21.48+14.96) रुपए. यानि टैक्स पेट्रोल की कीमत से भी ज्यादा हो गया. दिल्ली में उपभोक्ता पर ये टैक्स का बोझ 107 % बैठा.
दिल्ली में 13 सितंबर को पेट्रोल 70.38 रुपए प्रति लीटर बिक रहा था तो उसी दिन मुंबई में पेट्रोल 79.48 रुपए प्रति लीटर बिक रहा था. यानि मुंबई के उपभोक्ताओं को टैक्स का बोझ और ज्यादा उठाना पड़ रहा है. ये इसलिए है क्योंकि वहां लोकल टैक्स के रेट ज्यादा होने के साथ सूखे के लिए सेस (उपकर) भी उपभोक्ताओं से वसूला जाता है.
ऐसे भी कहा जा सकता है कि एक लीटर पेट्रोल की जो वास्तविक कीमत है, उससे कहीं ज़्यादा पैसा टैक्स के तौर पर सरकारों (केंद्र और राज्य) के पास जा रहा है. सीधी सी बात है कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से एक्साइज ड्यूटी और अन्य टैक्सों को कम कर दिया जाता है तो हमें पेट्रोल-डीजल भी सस्ता मिलने लगा. सिर्फ पेट्रोल-डीजल ही नहीं, कच्चे तेल से बनने वाले अन्य उत्पाद भी- जैसे कि पेट्रोलियम व्हाइट जेली (पैराफिन वैक्स), टॉर (कोलतार) एविएशन फ्यूल, एलपीजी, केरोसिन, नैफ्था, पैट बॉटल्स, खास किस्म के टायर (आर्टिफिशियल रबर से बनने वाले जो कि पेट्रो प्राडक्ट है) आदि.
 
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें कम करने की बात आती है तो केंद्र की ओर से तर्क दिए जाते हैं कि राज्य सरकारों को लोकल टैक्स कम करने चाहिएं. जब केंद्र से ये पूछा जाता है कि वो अपने हिस्से की ड्यूटी कम क्यों नहीं करती, तो इस पर पेट्रोलियम मंत्रालय का जवाब है कि ये ड्यूटी तय करना उसका नहीं वित्त मंत्रालय का काम होता है. केंद्र की ओर से ये तर्क भी दिया जाता है कि पेट्रोल पर सेंट्रल टैक्स के तौर पर जो पैसा आता है वो विकास कार्यों पर खर्च होता है. केंद्र के मुताबिक एक्साइज ड्यूटी का 42 फीसदी हिस्सा तो राज्यों को ही भेज दिया जाता है.
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का कहना है कि देश भर में हर जगह पेट्रोल-डीजल समान कीमत पर मिले इसके लिए ज़रूरी है कि लोकल टैक्सों को हटाकर इसे जीएसटी व्यवस्था में लाया जाए. इसके लिए राज्य सरकारों को तैयार होना होगा. अब राज्य सरकारों के राजस्व का मोटा हिस्सा पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स से ही आता है. जहां तक जीएसटी की बात है तो उसकी अधिकतम दर देश में 28 फीसदी ही है. लेकिन पेट्रोलियम उत्पादों पर उससे कहीं ज्यादा टैक्स फिलहाल वसूले जा रहे हैं. ऐसे में हकीकत तो यही है कि ना तो केंद्र और ना ही राज्य सरकारें पेट्रोलियम उत्पादों से अपने राजस्व में कमी नहीं आने देना चाहतीं.
हैरानी की बात है कि नेपाल, श्रीलंका जैसे देशों में जहां भारत से पेट्रोलियम उत्पाद भेजे जाते हैं वहां भी पेट्रोल की कीमतें भारत से कम है. इन दो देशों में क्या सभी पड़ोसी देशों में पेट्रोल के दाम भारत से कम हैं-
पाकिस्तान – 43.58 रुपए
श्रीलंका- 53.84
नेपाल- 61.53
भूटान- 62.17
चीन- 64.74
बांग्लादेश- 69.21 रुपए
अगर दुनिया की बात की जाए तो सबसे सस्ता पेट्रोल वेनेजुएला में 64 पैसे प्रति लीटर मिलता है. और सबसे महंगा नॉर्वे में 130 रुपए प्रति लीटर.
 
तेल के इस खेल में अभी आपके लिए सबसे ज़्यादा चौंकाने वाला हिस्सा आना बाकी है. किस तरह ऑयल कंपनियों को पेट्रोलियम उत्पादों के मनमाने दाम तय करके मोटा मुनाफा कूटने का मौका दिया जा रहा है. और किस तरह फिर सरकार उनसे डिविडेंट लेकर अपना खजाना भर रही है. यही नहीं ऑयल कंपनियों (पीएसयू) को सरकार के कहने पर किन-किन कामों के लिए पैसे लगाने पड़ रहे हैं वो जानना भी आपको हैरान करेगा. वो सब अगली कड़ी में…
(यह ब्लॉग खुशदीप सहगल जी के ब्लॉग देशनामा से लिया गया है )