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व्यक्तित्व – सरोजिनी नायडू भारत की "स्वर कोकिला"

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भारत को स्वतंत्र कराने में कई महापुरुषों ने योगदान दिया है, वहीँ महिलाओं की भूमिका को भी नकारा नही जा सकता है.महिलाओं ने भी स्वतंत्रता के संग्राम में कड़ा संघर्ष किया है.उन नामों में से एक नाम सरोजनी नायडू का भी है, जिन्हें लोग “भारत कोकिला” के नाम से भी जानते हैं.सरोजिनी नायडू पहली महिला थी जो ने इंडियन नेशनल कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष(भारतीय) और यूपी की पहली महिला राज्यपाल बनी.
“भारत कोकिला” के नाम से प्रसिद्ध श्रीमती सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था. उनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था, जो एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे.उनकी माता का नाम वरद सुंदरी था, वे कवयित्री थीं और बंगला में लिखती थीं.

शिक्षा और विवाह

बचपन से ही सरोजिनी नायडू पढ़नें में काफी तेज थीं,उन्हें इंग्लिश, बंगला, उर्दू, तेलुगु और फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था.उन्होंने घर पर ही अंग्रेजी का अध्ययन किया.12 साल की उम्र में सरोजनी जी ने मद्रास यूनिवर्सिटी में मैट्रिक की परीक्षा में टॉप किया था, जिससे उनकी बहुत वाहवाही और नाम हुआ.
महज 14 साल की उम्र में उन्होंने अंग्रेजी के सभी कवियों की रचनाओं का अध्ययन कर लिया था.सरोजनी जी के पिता चाहते थे की वे वैज्ञानिक बने या गणित में आगे पढाई करें, लेकिन उनकी रूचि कविता लिखने में थी, एक बार उन्होंने अपनी गणित की पुस्तक में 1300 लाइन की कविता लिख डाली, जिसे उनके पिता देख अचंभित हो गए और इसकी कॉपी बनवाकर सब जगह बंटवाया.इसे उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम को भी दिखाया, इससे निजाम काफी प्रभावित हुए और सरोजनी को विदेश में पढने के लिए स्कालरशिप दिलवाई. इसके बाद वे आगे की पढाई के लिए लन्दन के किंग कॉलेज चली गई, इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के गिरतों कॉलेज से पढाई की. कॉलेज में पढाई के दौरान भी सरोजनी जी की रूचि कविता पढने व लिखने में थी, जो कि उन्हें उनकी माता से विरासत में मिली थी.
वे अपनी आगे की शिक्षा पूरी नहीं कर सकीं, परंतु अंग्रेजी भाषा में काव्य सृजन में वे प्रतिभावान रहीं.गीतिकाव्य की शैली में नायडू ने काव्य सृजन किया और 1905, 1912 और 1917 में उनकी कविताएं प्रकाशित हुईं. सन् 1898 में 19 वर्ष की उम्र सरोजिनी की शादी डॉ. गोविन्द राजालु नायडू से हुई.
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राजनीति और आजादी की लड़ाई

सरोजिनी नायडू के राजनीति में सक्रिय होने में गोखले के 1906 के कोलकाता अधिवेशन के भाषण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.उन्होंने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों के लिए भारतीय महिलाओं को जागृत किया. भारत की स्वतंत्रता के लिए विभिन्न आंदोलनों में सहयोग दिया.काफी समय तक वे कांग्रेस की प्रवक्ता रहीं.
जलियांवाला बाग हत्याकांड से दुःखी होकर उन्होंने 1908 में मिला ‘कैसर-ए-हिन्द’ सम्मान लौटा दिया था.भारत छोड़ो आंदोलन में उन्हें आगा खां महल में सजा दी गई.
1903 से 1917 के बीच वे टैगोर, गांधी, नेहरू व अन्य नायकों से भी मिलीं. महात्मा गांधी से उनकी प्रथम मुलाकात 1914 में लंदन में हुई और गांधीजी के व्यक्तित्व ने उन्हें बहुत प्रभावित किया. दक्षिण अफ्रीका में वे गांधीजी की सहयोगी रहीं.वे गोपालकृष्ण गोखले को अपना ‘राजनीतिक पिता’ मानती थीं. उनके विनोदी स्वभाव के कारण उन्हें ‘गांधीजी के लघु दरबार में विदूषक’ कहा जाता था.
एनी बेसेंट और अय्यर के साथ युवाओं में राष्ट्रीय भावनाओं का जागरण करने हेतु उन्होंने 1915 से 18 तक भारत भ्रमण किया.1919 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में वे गांधीजी की विश्वसनीय सहायक थीं.होमरूल के मुद्दे को लेकर वे 1919 में इंग्लैंड गईं.1922 में उन्होंने खादी पहनने का व्रत लिया.1922 से 26 तक वे दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के समर्थन में आंदोलनरत रहीं और गांधीजी के प्रतिनिधि के रूप में 1928 में अमेरिका गईं.
सरोजिनी नायडू ने गांधीजी के अनेक सत्याग्रहों में भाग लिया और ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में वे जेल भी गईं. 1925 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष बनीं.

नायडू ने कानपुर कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्षीय भाषण के समय कहा था-

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को (सभी को) जो उसकी परिधि में आते हों, एक आदेश देना चाहिए कि केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं में वे अपनी सीटें खाली करें और कैलाश से कन्याकुमारी तक, सिन्धु से ब्रह्मपुत्र तक एक गतिशील और अथक अभियान का श्रीगणेश करें।’

भारतीय महिलाओं उन्होंने कहा था-

‘जब आपको अपना झंडा संभालने के लिए किसी की आवश्यकता हो और जब आप आस्था के अभाव से पीड़ित हों तब भारत की नारी आपका झंडा संभालने और आपकी शक्ति को थामने के लिए आपके साथ होगी और यदि आपको मरना पड़े तो यह याद रखिएगा कि भारत के नारीत्व में चित्तौड़ की पद्मिनी की आस्था समाहित है’

स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद, देश को उस लक्ष्य तक पहुँचाने वाले नेताओं के सामने अब दूसरा ही कार्य था.आज तक उन्होंने संघर्ष किया था.किन्तु अब राष्ट्र निर्माण का उत्तरदायित्व उनके कंधों पर आ गया. कुछ नेताओं को सरकारी तंत्र और प्रशासन में नौकरी दे दी गई थी.उनमें सरोजिनी नायडू भी एक थीं. उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया. वह विस्तार और जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा प्रांत था. उस पद को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा,

‘मैं अपने को ‘क़ैद कर दिये गये जंगल के पक्षी’ की तरह अनुभव कर रही हूँ’

लेकिन वह प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इच्छा को टाल न सकीं जिनके प्रति उनके मन में गहन प्रेम व स्नेह था.इसलिए वह लखनऊ में जाकर बस गईं और वहाँ सौजन्य और गौरवपूर्ण व्यवहार के द्वारा अपने राजनीतिक कर्तव्यों को निभाया.
श्रीमती एनी बेसेन्ट की प्रिय मित्र और गाँधीजी की इस प्रिय शिष्या ने अपना सारा जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया.2 मार्च 1949 को उनका देहांत हुआ.13 फरवरी 1964  को भारत सरकार ने उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में 15 पैसे का एक डाकटिकट भी जारी किया था.

प्रसिद्ध रचनाएं

सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने 1300 पंक्तियों की कविता ‘द लेडी ऑफ लेक’ लिखी थी.फारसी भाषा में एक नाटक ‘मेहर मुनीर’ लिखा.’द बर्ड ऑफ टाइम’, ‘द ब्रोकन विंग’, ‘नीलांबुज’, ट्रेवलर्स सांग’ उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं.