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"राजकुमारी अमृत कौर" ने इसलिए त्याग दिया था शाही जीवन

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भारतीय स्वाधीनता आंदोलन ने कई महापुरुषों को जन्म दिया है जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता और भारत के सामाजिक, आर्थिक विकास को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर इसके लिए अथक प्रयास किए। लेकिन इतने सारे महापुरुषों में एक महिला भी थी जिसने भारत की स्वतंत्रता के लिए और रूढ़िवादी सोच को खत्म करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर डिया, व शाही जीवन त्याग कर एक साधारण जीवन अपनाया।
राजकुमारी अमृत कौर भारत की प्रथम ऐसी महिला है  जिनको केंद्र सरकार में मंत्री बनने का गौरव हासिल है।  राजकुमारी अमृत कौर ने  महात्मा गांधी के प्रभाव में अपना सारा जीवन समाज सेवा और महिलओं की स्थिति सुधारने में लगा दिया। जलियांवाला हत्याकांड के बाद उन्होंने भारत को ही अपना  पूरा जीवन देने का निर्णय किया। वह सोलह वर्षो तक गांधी जी की सचिव रही व उनके साथ हर आंदोलन में भाग लिया।

जीवन परिचय

राजकुमारी अमृत कौर का जन्म दो फ़रवरी 1889 में लख़नऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ, उनके पिता राजा हरनाम सिंह कपूरथला, पंजाब के राजा थे और माता रानी हरनाम सिंह थी। राजा हरनाम सिंह ने बाद में ईसाई धर्म अपना लिया। राजा हरनाम सिंह गोपाल कृष्ण गोखले जे अच्छे मित्र थे जिससे राजकुमारी पर भी उनका प्रभाव पड़ा और वह सामाजिक और राजनीतिक कार्यो में भाग लेने लगी।
राजकुमारी की आरम्भ से लेकर उच्च शिक्षा तक इंग्लैंड में हुई, उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से एमए किया।  राजकुमारी की खेलो में काफी रुचि थी वह टेनिस की अच्छी प्लेयर थी और इसमें कई चैंपियनशिप जीत चुकी थी। भारत आने के बाद राजकुमारी ने भारत मे महिलाओ की दयनीय स्थिति देखकर अपना सबकुछ छोड़ कर इसी के उत्थान में जुट गई।

स्वतंत्रता अंदोलन में योगदान

भारत लौटने के बाद राजकुमारी की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई उनके प्रभाव में आकर वह स्वतंत्रता संग्राम में ओर सक्रिय होकर भाग लेने लगी अमृत कौर सोलह सालो तक गांधी जी की सचिव रही , 1930 में जब गांधी जी ने दांडी यात्रा शुरू की तब राजकुमारी ने भी उनके साथ यात्रा की व साथ मे जेल की सज़ा भी काटी।
1934 में में वह महल छोड़कर गांधी जी के साथ आश्रम में ही रहने लगी। 1937 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में बन्नू गई तब ब्रिटिश  सरकार ने उनपर राजद्रोह का आरोप लगाते हुए जेल में बंद कर दिया।

जन कल्याणकारी कार्य

राजकुमारी ने महिलाओं और पिछड़ो के उद्धार के लिए कई कल्याणकारी कार्य किए वह बाल विवाह और पर्दा प्रथा के खिलाफ थी उनके अनुसार ऐसी प्रथाएं महिलाओ को शिक्षा से वंचित करती है और समाज मे पीछे धकेल देती है।
उन्हीने 1927 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना की जिसकी वह 1930 में सचिव व 1933 में अध्यक्ष बनी। उन्होंने ऑल इंडिया वीमेंस एजुकेशन फंड सोसाइटी के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें शिक्षा सलाहकार बोर्ड का सदस्य बनाया जिससे उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस्तीफा दे दिया।

राजनीतिक सफर व उपलब्धियां

वह भारत की पहली महिला थी जो केंद्रीय मंत्री बनी, पंडित जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल में उन्हें स्वास्थ्य मंत्री का कार्यभार दिया गया जिसे उन्होंने 1957 तक संभाला।
स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए  “अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ” AIMS की स्थापना करना उनकी बड़ी उपलब्धि रही।  उन्होंने शिमला स्थित अपना पैतृक मकान व संपत्ति को संस्थान के कर्मचारियों और नर्सो के लिए दान कर दिया। 1950 में उन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन का अध्यक्ष बनाया गया यह पद संभालने वाली वह पहली भारतीय व एशियाई महिला थी।
वह यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि दल की दो बार डिप्टी लीडर रह चुकी है, 1948  में ऑल इंडिया कॉन्फ्रेंस ऑफ सोशल वर्क की अध्यक्ष बनी व बाद में 1950 में वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की अध्यक्ष भी निर्वाचित हुई। वह 1950  से  1964 तक लीग ऑफ रेडक्रॉस सोसाइटी की सहायक अध्य्क्ष रही।
वह ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (AIIMS)  की अध्यक्ष भी रही। राजकुमारी को खेलो से बेहद लगाव था वह टेनिस की चेम्पियन भी रही इन्होंने ही नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना की व शुरू से ही इसकी अध्यक्ष रही। वह हिन्दू कुष्ठ निवारण संघ  व दिल्ली म्यूजिक  सोसाइटी की आरंम्भ से अध्यक्ष रही।
राजकुमारी अमृत कौर आजीवन अविवाहित रहकर सिर राष्ट्र के हितों पर ध्यान देती रही राजकुमारी होते हुए सादा जीवन निर्वाह किया, अपनी सम्पति को राष्ट्र के नाम कर दिया, धर्म की राह पर शांति और सहयोग को बढ़ावा दिया राजकुमारी ने पुरुषवादी सोच और पुरुषों की बड़ी संख्या के बीच अपनी अलग पहचान बनाई । उनकी मृत्यु 2 अक्टूबर 1964 को हुई उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें दफनाया नही बल्कि जलाया गया।