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महेंद्र सिंह धोनी पर ये क्या लिख दिया राजदीप ने

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पत्रकार राजदीप सरदेसाई की नई बुक लांच हुई है, जिसमें उन्होंने भारत के क्रिकेट और उसके बदलते स्वरुप का ज़िक्र किया है. पेश है राजदीप सरदेसाई की किताब “डेमोक्रेसिस 11”- द ग्रेट इंडियन क्रिकेट स्टोरी में से महेंद्र सिंह धोनी पर लिखे गए शब्दों के कुछ अंश-
भारतीय क्रिकेट हमेशा के लिए बदल गया. साल था 2007. उस वक़्त ललित मोदी बीसीसीआई के उपाध्यक्ष पद पर थे. 13 सितंबर को एक चमक-धमक से भरे समारोह में ललित मोदी ने अपने नए और भारतीय क्रिकेट इतिहास में अब तक के सबसे साहसिक और महत्वाकांक्षी विचार को सामने रखा. उस विचार का नाम था – ‘इंडियन प्रीमियर लीग’ (आईपीएल). जब इस कॉन्सेप्ट की घोषणा की गई, स्टेज पर भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े नाम खड़े थे. इनमें सचिन तेंदुलकर, अनिल कुम्बले, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली शामिल थे. इनके साथ ही विदेशी खिलाड़ियों में ग्लेन मैक्ग्राथ, स्टीफेन फ़्लेमिंग भी थे.

राजदीप सरदेसाई अपनी किताब के साथ


कुछ 48 घंटे पहले ही बीसीसीआई के अध्यक्ष शरद पवार ने भारतीय क्रिकेट के पहले ट्वेंटी-20 फ्रेंचाइज़ी टूर्नामेंट की तैयारी करने के लिए ललित मोदी को 25 मिलियन (ढाई करोड़) डॉलर का चेक दिया था. मोदी जब उस वक़्त को याद करते हैं तो बताते हैं, “मुझे इतना तो विश्वास था ही कि मैं ये सब कर ले जाऊंगा. लेकिन शरद पवार को छोड़कर बीसीसीआई में शामिल कोई भी शख्स मुझमें विश्वास नहीं दिखा पा रहा था. ज़्यादातर लोगों को ऐसा लगता था कि आईपीएल पैसों की बर्बादी साबित होगा.” स्टाइल और शानोशौकत से भरे ललित मोदी जिस रात आईपीएल नाम के इस महंगे कार्यक्रम को मैनेज करने वाले की भूमिका में पूरी तरह से उतर चुके थे, उसी रात की अगली सुबह, बेहद युवा क्रिकेटर्स से लैस इंडियन क्रिकेट टीम पहले वर्ल्ड टी-20 टूर्नामेंट के लिए साउथ अफ्रीका की ओर कूच कर रही थी.
उस टीम की अगुवाई कर रहा था 26 साल का एक लड़का जो पहली बार इंडियन क्रिकेट टीम की कप्तानी करने जा रहा था. धोनी के लंबे लहरदार बालों की वजह से ये कतई नहीं लग रहा था कि वो किसी अधपकी टीम की वर्ल्ड कप में कप्तानी करने जैसे बड़े काम को अपने कंधे पर संभाले हुए हैं. उन्हें देखकर ऐसा ज़्यादा लग रहा था कि वो किसी रॉक बैंड के गिटारिस्ट हैं. धोनी के कप्तान बनने के पीछे असल में एक संयोग था. कोई भी सीनियर प्लेयर टी-20 क्रिकेट खेलने के विचार को लेकर ज़्यादा उत्साहित नहीं था. इनमें से कई प्लेयर्स ने इस क्रिकेट को ‘मिकी-माउस क्रिकेट’ कहकर झिड़क दिया था. इन प्लेयर्स ने खुद अपनी मर्ज़ी से इस टूर्नामेंट में खेलने से इन्कार कर दिया था.
सेलेक्टर्स के पास इंडियन टीम की कप्तानी के लिए युवराज और धोनी में से एक को चुनने का पेचीदा काम था. इस मौके पर टीम के सेलेक्टर दिलीप वेंगसरकर ने धोनी को बतौर कप्तान चुना. उनके इस फैसले के पीछे सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ की सलाह भी थी. वेंगसरकर कहते हैं, “मुझे उसका आक्रामक रवैया अच्छा लगता था. हमेशा ऐसा लगता था कि उसे गेम की अच्छी समझ है और सबसे बड़ी बात ये थी कि ड्रेसिंग रूम में उसकी मौजूदगी एक शांत माहौल लेकर आती थी.” टूर्नामेंट का पहला मैच इंडिया और पाकिस्तान के बीच खेला गया.
ये एक ऐसा मुकाबला था जिसे हमेशा करोड़ों की संख्या में दर्शक मिलते हैं. मज़ेदार बात ये हुई कि मैच टाई हो गया. इंटरनेशनल टी-20 मैचों में ये पहला मौका था जब किसी मैच के टाई होने की वजह से बॉल-आउट होने जा रहा था. बॉल-आउट क्रिकेट की दुनिया में एक नया और एकदम अनोखा प्रयोग था. किसी भी टी-20 मैच के टाई हो जाने की स्थिति में दोनों टीमों को पांच-पांच प्लेयर्स चुनने होते थे जिन्हें बॉलिंग करते हुए स्टम्प्स पर निशाना लगाना होता था. किसी ने भी अब तक बॉल-आउट को टीवी पर नहीं देखा था और पाकिस्तान की टीम ने तो इसकी तैयारी भी नहीं की थी.
इसके ठीक उलट, इंडियन टीम ने मैच टाई होने की इस संभावना को ध्यान में रखते हुए इसकी तैयारी की हुई थी. धोनी जब इसके बारे में याद करते हैं तो बताते हैं, “हमने नियम पढ़े हुए थे. जब हमें इस बॉल-आउट के बारे में मालूम चला तो हमने तीन टीमें बनाईं, और मज़े करते हुए प्रैक्टिस सेशन्स करवाए. इन सेशन्स से हमें मालूम चल गया था कि कौन स्टंप्स को कितने अच्छे से हिट कर सकता है और ऐसे हमने मैच के पहले ही अपने पांच बेस्ट बॉलर चुन रखे थे.” जब इंडिया ने आसानी से बॉल-आउट जीत लिया, क्रिकेट की दुनिया ये देख रही थी कि धोनी क्या नया लाने वाला है. एक चालाक क्रिकेटर जो हमेशा एक मुश्किल स्थिति में अपने प्रतिद्वंद्वी से एक कदम आगे रहता था.

2007 विश्वकप की विजेता टीम


पाकिस्तान पर मिली जीत ने टीवी के दर्शकों को खूब खुश किया और इसके बाद वो ऐसे और पलों का इंतज़ार कर रहे थे. इसी बीच एक बेहद ऊर्जावान ललित मोदी साउथ अफ़्रीका पहुंच चुके थे. वहां उन्हें आईपीएल के पहले सीज़न के लिए विदेशी प्लेयर्स को साइन करना था. अपने जाने-पहचाने मस्ती भरे अंदाज़ में वो इंडियन ड्रेसिंग रूम में आए और एक भारी-भरकम अनाउन्समेंट किया. उन्होंने कहा, “जो भी एक ओवर में 6 छक्के मार के दिखाएगा उसे उसकी पसंद का गिफ्ट दिया जाएगा.” जिस वक़्त टीम के प्लेयर्स रोलेक्स की घड़ी का सुझाव दे रहे थे, मोदी ने कहा, “मैं एकदम नई, चमचमाती पोर्शे कार दूंगा.” बस दो गेम बाद ही इंडियन टीम एक ऐसी स्थिति में थी जहां उसे इंग्लैंड के खिलाफ़ मैच जीतना ही जीतना था. युवराज सिंह ने अपनी पूरी ताकत लगाते हुए फ़ास्ट बॉलर स्टुअर्ट ब्रॉड पर हमला बोल दिया. युवराज ने ओवर का छठा छक्का डरबन के क्षितिज पर जड़ा, और वो उसी तरफ दौड़े जिधर ललित मोदी खड़े होकर अपने हाथों में कार की चाभी लहराते हुए युवराज को दिखा रहे थे. “मैं मानता हूं कि भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली थी. मेरी प्रार्थना थी कि किसी को ऐसा कुछ कर लेने दो जो अब तक किसी और ने नहीं किया था. और हमें एक ओवर में 6 छक्के देखने को मिले. हर घर में टीवी स्क्रीन चमक रहे थे. ऐसी चीज़ें पैसों से नहीं खरीदी जा सकतीं. इस एक घटना ने टी-20 क्रिकेट को उस जगह पहुंचा दिया जहां इसे हर कोई देखने वाला था,” ललित मोदी बेहद उत्साह से बोले.

2007 के T20 विश्वकप की आखिरी बॉल


जब युवराज अपने इस कारनामे का जश्न मना रहे थे, कप्तान धोनी हमेशा की तरह शांत बने हुए थे. उस वक़्त टीम के कोच लालचंद राजपूत बताते हैं, “एमएस धोनी के बारे में सबसे बेहतरीन बात ये है कि वो ज़िंदगी को हर दिन जीते हैं. इसलिए उन्हें जीत का दंभ नहीं होता और हार का गम नहीं.” डर्बन के उस ऐतिहासिक मैच के बाद टीम इंडिया फाइनल में खड़ी थी. फाइनल मैच किसी भी टीवी ब्रॉडकास्टर का सच हुआ सपना था. जोहानसबर्ग में इंडिया बनाम पाकिस्तान. सारे टिकट बिक चुके थे. इस बड़े मैच के पहले फिर से धोनी को एक महत्वपूर्ण फ़ैसला लेना पड़ा. उनके सबसे ज़्यादा अनुभवी प्लेयर वीरेंद्र सहवाग को हल्की सी चोट लगी थी. उन्हें फ़ैसला लेना था कि वो उन्हें खिलाने का खतरा उठाएं या किसी युवा खिलाड़ी को मौका दें. लालचंद उस वक़्त को याद करते हैं, “हमने मैच की एक रात पहले ये डिस्कस किया और मैंने आख़िरी फ़ैसला धोनी पर छोड़ दिया.” अगली सुबह धोनी ने बताया कि मैच में सहवाग की जगह एकदम नया प्लेयर युसूफ पठान खेलेगा. ये धोनी की एक और निशानी थी – मुश्किल वक़्त में शांत मन से कड़े फ़ैसले लेने की फ़ितरत.
24 सितंबर को खेला गया फाइनल एक भयानक रोमांचक मैच था. इंडिया ने पहले बैटिंग करते हुए 157 रन बनाए. गौतम गंभीर ने सबसे ज़्यादा 75 रन बनाए. पाकिस्तान 104 रन पर 7 विकेट के साथ मैच हारता हुआ दिख रहा था लेकिन तभी मिस्बाह-उल-हक़ ने गियर बदले और इंडियन बॉलिंग को मैदान के हर कोने में मारना शुरू किया. पाकिस्तान को आखिरी ओवर में 13 रन चाहिए थे. उनके पास मात्र 1 विकेट बचा था. अनुभवी हरभजन का एक ओवर बचा हुआ था लेकिन धोनी ने इसी वर्ल्ड कप में सामने आए जोगिन्दर शर्मा को तरजीह दी. इंडिया के लिए जोगिन्दर पहली बार कोई टूर्नामेंट खेल रहे थे. “मैंने जोगिन्दर को इसलिए बॉलिंग दी क्योंकि भज्जी अपने पिछले ओवर में काफी रन दे चुका था. इसके अलावा एक फैक्टर ये भी था कि सामने वाली टीम ने जोगिन्दर का बहुत ज़्यादा सामना नहीं किया है. उसके पास अच्छी स्लोअर बॉल थी और वो अपनी गेंद की गति में बहुत अच्छे से बदलाव ला सकता था. मुझे लगता है ऐसे मौके पर इसी की ज़रूरत थी,” धोनी ने बताया. जोगिन्दर शर्मा से जब उस मौके के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, “माही ने मुझसे कहा कि सब कुछ एकदम सिंपल रखो. और इस बात में विश्वास रखो कि अंत में हम ही विजेता होंगे.”
पहली गेंद वाइड गई और दूसरी को मिस्बाह ने बाउंड्री पार छक्के के लिए भेज दिया. पाकिस्तान अब इंडिया के स्कोर से मात्र 5 रन दूर था. “जब मैंने एक गेंद वाइड फेंक दी और अगली पर छक्का खा गया, फिर भी माही ने मुझसे थोड़ी सी भी शिकायत नहीं की. उसने बस कहा कि मैं अपने हिसाब से करता रहूं.” तीसरी बॉल फिर से एक स्लोअर बॉल थी जिसे मिस्बाह ने स्कूप खेलना चाहा. श्रीसंत ने गेंद को कैच किया. इंडिया 5 रन से जीत चुका था. जोगिन्दर शर्मा रातों-रात एक स्टार बन चुके थे और अंततः धोनी के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान देखने को मिल रही थी. धोनी ने अभी-अभी अपनी एक और खासियत दिखाई थी – दबाव भरी स्थिति में भी वो शांत बने रहते थे. “टी-20 क्रिकेट के लिए इससे अच्छी कोई भी स्क्रिप्ट नहीं हो सकती थी. पाकिस्तान से बॉल-आउट में जीत, फिर 6 छक्के और फिर पहले ही वर्ल्ड टी-20 को नई टीम के साथ और पुराने अनुभवी प्लेयर्स के बिना जीतना. मैं इस खुशी में अपने हाथों को रगड़ रहा था कि अब यहां से सब कुछ बदलने वाला था. हम टी-20 जीत चुके थे और हमें कोई रोक नहीं सकता था,” मोदी उस जीत को याद करते हुए कहते हैं.
लालचंद राजपूत ने आगे बताया, “वो एक नए कप्तान के नेतृत्व में नई और युवा टीम थी जिससे आशाएं लेशमात्र की थीं. सबसे अच्छी बात ये थी कि धोनी खिलाड़ियों को पूरी तरह से सपोर्ट करते थे और उसमें विश्वास दिखाते थे. वो टीम में काट-छांट नहीं करना चाहते थे बल्कि हर प्लेयर को बराबर मौका देने के पक्षधर थे.” इसने धोनी की एक और विशेषता दिखाई – वो ऐसा कप्तान बना जिसपर सभी प्लेयर्स भरोसा कर सकते थे. जिस वक़्त टीम मैदान पर जश्न मना रही थी, धोनी ने एक बार फिर से ऐसा कुछ किया जिसने सभी को चौंका दिया. उसने अपनी इंडिया की टीशर्ट उतारी और एक बच्चे को दे दी और और खुद उघाड़े बदन मैदान में चलने लगा. उसका गठीला शरीर और लंबे बाल ऊर्जा और आत्मविश्वास से भरे देश के साहस की बानगी लिख रहे थे. पांच साल पहले जब गांगुली ने लॉर्ड्स में शर्ट उतार कर हवा में लहराई थी, उन्हें खेल भावना के विरुद्ध जाने की वजह से काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था. इसके उलट धोनी को अपनी इस दरियादिली के लिए भरपूर शाबाशी मिली थी और इंडियन फैन्स के ज़हन में वो एक तस्वीर हमेशा के लिए दर्ज हो गई.
धोनी ने मुझे बताया, “वो बहुत ही अचानक से हो गया. मुझे लगा कि मुझे वैसा करना चाहिए.” मुंबई या किसी दूसरे मेट्रो शहर से उलट रांची में रेगुलर क्रिकेट खेलने के कम मौके मिलते हैं. झारखंड में हॉकी खेलने की पुरानी परंपरा थी और वहां से कई नामचीन ओलंपिक प्लेयर्स आए लेकिन अब तक कोई भी क्रिकेट में नाम नहीं कमा पाया था. (1928 में भारत को पहला ओलंपिक स्वर्ण दिलाने वाली हॉकी टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा एक झारखंडी थे जो बाद में आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाली प्रमुख आवाज़ बने.) शहर के मुख्य स्टेडियम में सिर्फ एक टर्फ विकेट था इसलिए सभी इंटर-स्कूल मैच मैटिंग विकेट पर खेले जाते थे. ये मैच ज़्यादातर 25-25 ओवर के होते थे. “यहां तक कि हमारे स्कूल की प्रैक्टिस पिच मैटिंग की थी जिसे बार बार हटाया और लगाया जाता था. हमें उसे हर सुबह स्कूल के ऑडिटोरियम से निकालना पड़ता था. मैट ऊबड़-खाबड़ थी और पिच स्कूल बिल्डिंग के ठीक बगल में थी. अक्सर मुझसे किसी खिड़की का कांच टूट जाता था और जब गार्ड हमसे पूछता था तो हम उसे बताते थे कि किसी ने पत्थर फेंक के मारा होगा,” धोनी खिलखिलाते हुए उन दिनों को याद करते हैं.
ये बात है 1997 की जब इंटरस्कूल टूर्नामेंट के फाइनल में 16 साल के धोनी ने अपनी दावेदारी ठोंकी. धोनी ने 378 रन की पार्टनरशिप के दौरान डबल सेंचुरी ठोंककर एक हार्ड-हिटिंग बैट्समैन के रूप में अपना परिचय दिया. उनके साथ पार्टनरशिप करने वाला बैट्समैन था धोनी के स्कूल का दोस्त शब्बीर हुसैन. कोच बनर्जी उस मैच को याद करते हैं तो उन्हें एक बारीक बात याद आती है. “मैंने धोनी को उस मैच में ओपेनिंग करने के लिए परमिशन दी थी लेकिन मेरी एक शर्त थी. शर्त ये थी कि वो पूरे 40 ओवर बैटिंग करेगा. मज़ाक में ये भी कहा था कि अगर वो आउट हो गया तो टीम में कोई भी नंबर 3 पर बैटिंग करने के लिए नहीं था.”