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नज़रिया – एक चुनी हुई सरकार को LG द्वारा कार्य न करने देना कहाँ तक सही है?

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दिल्ली के एलजी तो बड़े फ़रज़ी निकले। वे नौकरशाही के मुखिया हैं और उसे शह दे रहे हैं कि सरकार को सहयोग न करें? तीन महीने हो गए, अफ़सर सौंपे गए काम नहीं कर रहे, बुलाने पर आते नहीं, फ़ोन भी सुनने से इनकार कर देते हैं। अगर सरकार पंगु होकर रह गई है तो एलजी और उनके आका समझें कि यह दग़ा सरकार से नहीं, दिल्ली की जनता से है जिसने सरकार को लोकतांत्रिक ढंग से – और अपूर्व समर्थन देकर – चुना है।
मुख्य सचिव के साथ हुआ कथित बर्ताव निंदनीय था, आप के नेताओं-कार्यकर्ताओं को भी समझना चाहिए कि अधिकारियों के साथ भद्र व्यवहार होना चाहिए। लेकिन इस मामले में मुक़दमा दर्ज है, पुलिस अत्यंत सक्रियता के साथ पूछताछ, छापेमारी, विधायक की गिरफ़्तारी तक को अंजाम दे चुकी है। ऐसे में अधिकारियों को न्याय पर भरोसा रखना चाहिए और जन-मानस का ख़याल करते हुए काम करना चाहिए, न कि एक क़िस्म की सरासर हड़ताल।
और अफ़सरों के सिरमौर एलजी को अपने घर में दुबक कर नहीं बैठ जाना चाहिए। कोई मुख्यमंत्री उनके घर के भीतर धरने पर बैठा है। मंत्री उनके घर में अनशन पर है। औंस इतिहास में पहले शायद ही हुआ हो। फिर भी एलजी उनसे बात तक करने को राजी नहीं। ऐसे में अफ़सर क्या ख़ाक काम करेंगे। इसमें नुक़सान एलजी, केजरीवाल या अफ़सरों का नहीं – जनता का है।
जनता आहत होगी तो इसका राजनीतिक लाभ आप पार्टी को मिलेगा, क्या इतना सामान्य गणित केंद्र पर क़ाबिज़ भाजपा के नेता नहीं समझ पा रहे? दिल्ली उनके हाथ से फिर फिसला समझो; आप इसे मेरी भविष्यवाणी कह सकते हैं।
और तो और, इस मामले में कांग्रेस भी, सोच-समझ कर, आप सरकार का विरोध नहीं कर रही। अनेक विपक्षी दल केजरीवाल के हक़ में आ खड़े हुए हैं। आज शरद यादव ने भी कड़ा बयान जारी किया है। कल दिल्ली में बड़ा आंदोलन केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ छिड़ सकता है।
जो हो, जनता की परेशानियाँ और न बढ़ें, इसके लिए फ़िलहाल देश की अदालत को ही एलजी की कुहनी पकड़नी चाहिए।

नोट : यह लेख ओम थानवी जी की फ़ेसबुक वाल से लिया गया है